अध्यात्म, Astro (ज्योतिष)

आइये जानते हैं – ग्रहों का घर के वास्तु पर कितना असर, किस हिस्से में कौन सी चीज रखना शुभ

किसी भी वास्तु में नौ ग्रहों का आधिपत्य होता है एवं वास्तु में इनका स्थान निश्चित कोण पर होता है। इसी प्रकार प्रत्येक दिशा के देवता भी अलग-अलग होते हैं। घर में इनके संतुलित होने पर सुख-समृद्धि रहती है वहीं इनके स्वभाव के विपरीत निर्माण करने पर वास्तु दोष उत्पन्न हो जाता है जिससे अनेकों प्रकार की परेशानियों का जीवन में सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में आइए जानते हैं ज्योतिषाचार्य पं. देवतादीन शुक्ल से सभी नौ ग्रहों का घर के वास्तु पर कैसा असर होता है……….


सूर्य ग्रह:- पूर्व दिशा के स्वामी सूर्य ग्रह एवं देवता इंद्र है। सूर्य स्वास्थ्य, ऐश्वर्य और तेजस्व प्रदान करने वाला ग्रह है यदि घर की पूर्व दिशा दोषमुक्त रहे तो उस भवन का स्वामी और उसमें रहने वाले सदस्य महत्वकांक्षी, सत्वगुणों से युक्त और उनके चेहरे पर तेज होता है। ऐसे में भवन स्वामी को खूब मान-सम्मान मिलता है। इसलिए वास्तु में पूर्व दिशा को खुला छोड़ने की सलाह दी जाती है ताकि अंनत गुणधर्म वाली सूर्य की रश्मियां भवन में प्रवेश कर सकें। कभी भी इस दिशा को भारी व बंद नहीं करें।


शुक्र ग्रह:- शुक्र आग्नेय कोण के अधिपति ग्रह एवं इस दिशा के देवता अग्निदेव हैं। शुक्र ग्रह ऐश्वर्य के स्वामी हैं। जिस भवन में दक्षिण-पूर्व या आग्नेय कोण शुभगुणों से युक्त और दोष रहित होता है ऐसे वास्तु की आंतरिक ऊर्जा स्वस्थ्य और शुक्र के गुणधर्म वाली होती है। इस दिशा में रसोई, बिजली के सामान एवं विद्युत केंद्र होना वास्तु के अनुसार शुभ माने गए हैं।


मंगल ग्रह:- दक्षिण दिशा मंगल ग्रह के अधीन होती है एवं इस दिशा के देवता यम हैं। मंगल ग्रह समस्त प्रकार का साहस एवं धन लाभ प्रदान करने वाला होता है। मंगल ग्रह निडर, साहसी और दिलेर होता है और यह युद्ध, लड़ाई, क्रोध का अधिपति भी है। दक्षिणदिशा विधि, न्याय, मुकदमेबाजी, आराम, जीवन और मृत्यु से संबंधित है। इसलिए इस दिशा में शयन कक्ष तथा भण्डार गृह रखना चाहिए।


राहु ग्रह:- दक्षिण पश्चिम दिशा या नैऋत्य कोण का स्वामी राहु ग्रह है एवं इस दिशा की देवी आसुरी शक्ति वाली हैं। इस दिशा में तमस तत्व सर्वाधिक होता है इसलिए वास्तु में इस दिशा को सबसे अधिक भारी रखना शुभ होता है। घर में भूलकर भी इस दिशा को हल्की एवं खुली नहीं रखें। इस दिशा में बैडरूम, ऑफिस, बाथरूम या स्टोर रूम बनाना लाभदायक रहता है।


शनि ग्रह:- पश्चिम दिशा लाभ एवं प्रसन्नता की दिशा है। इस दिशा के ग्रह शनि एवं देवता वरुण देव है। शनि ग्रह भाग्य, कर्म, यश तथा पौरुष संबंधी कार्यों का कारक होता है। इस दिशा को हमेशा स्वस्थ्य रखना चाहिए। इस दिशा में ड्राइंगरूम, बेडरूम, पुस्तकालय होना शुभ होता है।


चन्द्रमा ग्रह:- वायव्य दिशा का स्वामी चन्द्रमा है। यह शांत चित्त एवं भाग्य का अधिपति ग्रह है। यह मन, चित्तवृत्ति, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य, संपत्ति व माता का कारक है। वहीं वास्तु में वायव्य कोण वायुदेव का स्थान है। वायुदेव हमें शक्ति, प्राण, स्वास्थ्य प्रदान करते है। सामाजिक जीवन एवं व्यापार पर इसका विशेष प्रभाव होता है। इस दिशा में भोजनकक्ष,अतिथि गृह, विवाह योग्य कन्याओं का कमरा एवं बिना टॉयलेट के बाथरूम होना शुभ होता है।


बुध ग्रह:- यह ग्रह उत्तर दिशा के स्वामी एवं इस दिशा के देवता कुबेरदेव होते हैं। बुध वाक्चातुर्य एवं विद्धता का प्रतिनिधि ग्रह है। जिस घर में उत्तर दिशा शुभ होती है वहां के लोग अत्यंत बुद्धिमान, विद्वान, लेखन एवं कविता में रूचि रखने वाले होते हैं। बुध सम्पन्नता और करियर का प्रतिनिधि ग्रह है इसलिए इस दिशा में अध्ययन कक्ष, तिजोरी और पुस्तकालय शुभ माने गए हैं।


गुरु ग्रह:- यह उत्तर-पूर्व या ईशान कोण का स्वामी ग्रह है एवं विष्णुदेव इस दिशा के देवता हैं । गुरु, ईश्वरीय तेज एवं आध्यात्मिक वृत्ति का प्रदाता ग्रह है। बौद्धिक विकास एवं बौद्धिक शांति के लिए तथा ईश्वर की कृपा पाने के लिए यह दिशा स्वस्थ्य रखनी चाहिए। इस दिशा में पूजा स्थल एवं योग कक्ष बनाना अत्यंत शुभकारी है।

श्रीमहाकाल भैरवाष्टक….

यं यं यं यक्षरूपं दशदिशिविदितं भूमिकम्पायमानं
सं सं संहारमूर्तिं शिरमुकुटजटा शेखरंचन्द्रबिम्बम् ।
दं दं दं दीर्घकायं विक्रितनख मुखं चोर्ध्वरोमं करालं
पं पं पं पापनाशं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ १॥

रं रं रं रक्तवर्णं, कटिकटिततनुं तीक्ष्णदंष्ट्राकरालं
घं घं घं घोष घोषं घ घ घ घ घटितं घर्झरं घोरनादम् ।
कं कं कं कालपाशं द्रुक् द्रुक् दृढितं ज्वालितं कामदाहं
तं तं तं दिव्यदेहं, प्रणामत सततं, भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ २॥

लं लं लं लं वदन्तं ल ल ल ल ललितं दीर्घ जिह्वा करालं
धूं धूं धूं धूम्रवर्णं स्फुट विकटमुखं भास्करं भीमरूपम् ।
रुं रुं रुं रूण्डमालं, रवितमनियतं ताम्रनेत्रं करालम्
नं नं नं नग्नभूषं , प्रणमत सततं, भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ३॥

वं वं वायुवेगं नतजनसदयं ब्रह्मसारं परन्तं
खं खं खड्गहस्तं त्रिभुवनविलयं भास्करं भीमरूपम् ।
चं चं चलित्वाऽचल चल चलिता चालितं भूमिचक्रं
मं मं मायि रूपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ४॥

शं शं शं शङ्खहस्तं, शशिकरधवलं, मोक्ष सम्पूर्ण तेजं
मं मं मं मं महान्तं, कुलमकुलकुलं मन्त्रगुप्तं सुनित्यम् ।
यं यं यं भूतनाथं, किलिकिलिकिलितं बालकेलिप्रदहानं
आं आं आं आन्तरिक्षं , प्रणमत सततं, भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ५॥

खं खं खं खड्गभेदं, विषममृतमयं कालकालं करालं
क्षं क्षं क्षं क्षिप्रवेगं, दहदहदहनं, तप्तसन्दीप्यमानम् ।
हौं हौं हौंकारनादं, प्रकटितगहनं गर्जितैर्भूमिकम्पं
बं बं बं बाललीलं, प्रणमत सततं, भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ६॥

वं वं वं वाललीलं सं सं सं सिद्धियोगं, सकलगुणमखं,
देवदेवं प्रसन्नं पं पं पं पद्मनाभं, हरिहरमयनं चन्द्रसूर्याग्नि नेत्रम् ।
ऐं ऐं ऐं ऐश्वर्यनाथं, सततभयहरं, पूर्वदेवस्वरूपं
रौं रौं रौं रौद्ररूपं, प्रणमत सततं, भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ७॥

हं हं हं हंसयानं, हसितकलहकं, मुक्तयोगाट्टहासं, ?
धं धं धं नेत्ररूपं, शिरमुकुटजटाबन्ध बन्धाग्रहस्तम् ।
तं तं तंकानादं, त्रिदशलटलटं, कामगर्वापहारं,
भ्रुं भ्रुं भ्रुं भूतनाथं, प्रणमत सततं, भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ८॥

इति महाकालभैरवाष्टकं सम्पूर्णम् ।
नमो भूतनाथं नमो प्रेतनाथं नमः कालकालं नमः रुद्रमालम् ।
नमः कालिकाप्रेमलोलं करालं नमो भैरवं काशिका क्षेत्रपालम् ॥

भोजन के प्रकार

भीष्म पितामह ने अर्जुन को 4 प्रकार से भोजन न करने के लिए बताया था …

पहला भोजन ….
जिस भोजन की थाली को कोई लांघ कर गया हो वह भोजन की थाली नाले में पड़े कीचड़ के समान होती है …!

दूसरा भोजन ….
जिस भोजन की थाली में ठोकर लग गई,पाव लग गया वह भोजन की थाली भिष्टा के समान होता है ….!

तीसरे प्रकार का भोजन ….
जिस भोजन की थाली में बाल पड़ा हो, केश पड़ा हो वह दरिद्रता के समान होता है ….

चौथे नंबर का भोजन ….
अगर पति और पत्नी एक ही थाली में भोजन कर रहे हो तो वह मदिरा के तुल्य होता है …..
और सुनो अर्जुन अगर पत्नी,पति के भोजन करने के बाद थाली में भोजन करती है उसी थाली में भोजन करती है या पति का बचा हुआ खाती है तो उसे चारों धाम के पुण्य का फल प्राप्त होता है ..
अगर दो भाई एक थाली में भोजन कर रहे हो तो वह अमृतपान कहलाता है

चारों धाम के प्रसाद के तुल्य वह भोजन हो जाता है ….

और सुनो अर्जुन …..
बेटी अगर कुमारी हो और अपने पिता के साथ भोजन करती है एक ही थाली में तो उस पिता की कभी अकाल मृत्यु नहीं होती ….
क्योंकि बेटी पिता की अकाल मृत्यु को हर लेती है ! इसीलिए बेटी जब तक कुमारी रहे तो अपने पिता के साथ बैठकर भोजन कर सकती है।

संस्कार दिये बिना सुविधायें देना, पतन का कारण है …

“सुविधाएं अगर आप ने बच्चों को नहीं दिए तो हो सकता है वह थोड़ी देर के लिए रोए …
पर संस्कार नहीं दिए तो वे जीवन भर रोएंगे।

क्या है रामायण ?

छोटा सा वृतांत है

एक रात की बात हैं,माता कौशिल्या जी को सोते में अपने महल की छत पर किसी के चलने की आहट सुनाई दी।
नींद खुल गई ।
पूछा कौन हैं ?

मालूम पड़ा श्रुतिकीर्ति जी हैं ।
नीचे बुलाया गया

श्रुतिकीर्ति जी,
जो सबसे छोटी बहु हैं, आईं, चरणों में प्रणाम कर खड़ी रह गईं

माता कौशिल्या जी ने पूछा, श्रुति ! इतनी रात को अकेली छत पर क्या कर रही हो बिटिया ?
क्या नींद नहीं आ रही ?

शत्रुघ्न कहाँ है ?

श्रुतिकीर्ति की आँखें भर आईं, माँ की छाती से चिपटी,
गोद में सिमट गईं, बोलीं, माँ उन्हें तो देखे हुए तेरह वर्ष हो गए ।

उफ !
कौशल्या जी का ह्रदय काँप कर झटपटा गया ।

तुरंत आवाज लगी, सेवक दौड़े आए ।
आधी रात ही पालकी तैयार हुई, आज शत्रुघ्न जी की खोज होगी,
माँ चली ।

आपको मालूम है शत्रुघ्न जी कहाँ मिले ?

अयोध्या जी के जिस दरवाजे के बाहर भरत जी नंदिग्राम में तपस्वी होकर रहते हैं, उसी दरवाजे के भीतर एक पत्थर की शिला हैं, उसी शिला पर, अपनी बाँह का तकिया बनाकर लेटे मिले ।

माँ सिराहने बैठ गईं,
बालों में हाथ फिराया तो शत्रुघ्न जी नेआँखें खोलीं,

माँ !

उठे, चरणों में गिरे, माँ ! आपने क्यों कष्ट किया ?
मुझे बुलवा लिया होता ।

माँ ने कहा,
शत्रुघ्न ! यहाँ क्यों ?”

शत्रुघ्न जी की रुलाई फूट पड़ी, बोले- माँ ! भैया राम जी पिताजी की आज्ञा से वन चले गए,
भैया लक्ष्मण जी उनके पीछे चले गए, भैया भरत जी भी नंदिग्राम में हैं, क्या ये महल, ये रथ, ये राजसी वस्त्र, विधाता ने मेरे ही लिए बनाए हैं ?

माता कौशल्या जी निरुत्तर रह गईं ।

देखो क्या है ये रामकथा…

यह भोग की नहीं….
त्याग की कथा हैं, यहाँ त्याग की प्रतियोगिता चल रही हैं और सभी प्रथम हैं, कोई पीछे नहीं रहा

चारो भाइयों का प्रेम और त्याग एक दूसरे के प्रति अद्भुत-अभिनव और अलौकिक हैं ।

रामायण जीवन जीने की सबसे उत्तम शिक्षा देती हैं ।

भगवान राम को 14 वर्ष का वनवास हुआ तो उनकी पत्नी माँ सीता ने भी सहर्ष वनवास स्वीकार कर लिया।
परन्तु बचपन से ही बड़े भाई की सेवा मे रहने वाले लक्ष्मण जी कैसे राम जी से दूर हो जाते!
माता सुमित्रा से तो उन्होंने आज्ञा ले ली थी, वन जाने की..
परन्तु जब पत्नी उर्मिला के कक्ष की ओर बढ़ रहे थे तो सोच रहे थे कि माँ ने तो आज्ञा दे दी,
परन्तु उर्मिला को कैसे समझाऊंगा!! क्या कहूंगा!

यहीं सोच विचार करके लक्ष्मण जी जैसे ही अपने कक्ष में पहुंचे तो देखा कि उर्मिला जी आरती का थाल लेके खड़ी थीं और बोलीं- “आप मेरी चिंता छोड़ प्रभु की सेवा में वन को जाओ।
मैं आपको नहीं रोकूँगीं। मेरे कारण आपकी सेवा में कोई बाधा न आये, इसलिये साथ जाने की जिद्द भी नहीं करूंगी।”

लक्ष्मण जी को कहने में संकोच हो रहा था।
परन्तु उनके कुछ कहने से पहले ही उर्मिला जी ने उन्हें संकोच से बाहर निकाल दिया।
वास्तव में यहीं पत्नी का धर्म है। पति संकोच में पड़े,
उससे पहले ही पत्नी उसके मन की बात जानकर उसे संकोच से बाहर कर दे!

लक्ष्मण जी चले गये परन्तु 14 वर्ष तक उर्मिला ने एक तपस्विनी की भांति कठोर तप किया।
वन में भैया-भाभी की सेवा में लक्ष्मण जी कभी सोये नहीं परन्तु उर्मिला ने भी अपने महलों के द्वार कभी बंद नहीं किये और सारी रात जाग जागकर उस दीपक की लौ को बुझने नहीं दिया।

मेघनाथ से युद्ध करते हुए जब लक्ष्मण को शक्ति लग जाती है और हनुमान जी उनके लिये संजीवनी का पहाड़ लेके लौट रहे होते हैं, तो बीच में अयोध्या में भरत जी उन्हें राक्षस समझकर बाण मारते हैं और हनुमान जी गिर जाते हैं।
तब हनुमान जी सारा वृत्तांत सुनाते हैं कि सीता जी को रावण ले गया, लक्ष्मण जी मूर्छित हैं।

यह सुनते ही कौशल्या जी कहती हैं कि राम को कहना कि लक्ष्मण के बिना अयोध्या में पैर भी मत रखना। राम वन में ही रहे।
माता सुमित्रा कहती हैं कि राम से कहना कि कोई बात नहीं। अभी शत्रुघ्न है।
मैं उसे भेज दूंगी। मेरे दोनों पुत्र राम सेवा के लिये ही तो जन्मे हैं। माताओं का प्रेम देखकर हनुमान जी की आँखों से अश्रुधारा बह रही थी। परन्तु जब उन्होंने उर्मिला जी को देखा तो सोचने लगे कि यह क्यों एकदम शांत और प्रसन्न खड़ी हैं?

क्या इन्हें अपनी पति के प्राणों की कोई चिंता नहीं?

हनुमान जी पूछते हैं- देवी!
आपकी प्रसन्नता का कारण क्या है? आपके पति के प्राण संकट में हैं। सूर्य उदित होते ही सूर्य कुल का दीपक बुझ जायेगा।
उर्मिला जी का उत्तर सुनकर तीनों लोकों का कोई भी प्राणी उनकी वंदना किये बिना नहीं रह पाएगा।
वे बोलीं- “
मेरा दीपक संकट में नहीं है, वो बुझ ही नहीं सकता। रही सूर्योदय की बात तो आप चाहें तो कुछ दिन अयोध्या में विश्राम कर लीजिये, क्योंकि आपके वहां पहुंचे बिना सूर्य उदित हो ही नहीं सकता।
आपने कहा कि प्रभु श्रीराम मेरे पति को अपनी गोद में लेकर बैठे हैं।
जो योगेश्वर राम की गोदी में लेटा हो, काल उसे छू भी नहीं सकता।
यह तो वो दोनों लीला कर रहे हैं।
मेरे पति जब से वन गये हैं,
तबसे सोये नहीं हैं।
उन्होंने न सोने का प्रण लिया था। इसलिए वे थोड़ी देर विश्राम कर रहे हैं। और जब भगवान् की गोद मिल गयी तो थोड़ा विश्राम ज्यादा हो गया। वे उठ जायेंगे। और शक्ति मेरे पति को लगी ही नहीं शक्ति तो राम जी को लगी है।
मेरे पति की हर श्वास में राम हैं, हर धड़कन में राम, उनके रोम रोम में राम हैं, उनके खून की बूंद बूंद में राम हैं, और जब उनके शरीर और आत्मा में हैं ही सिर्फ राम, तो शक्ति राम जी को ही लगी, दर्द राम जी को ही हो रहा।
इसलिये हनुमान जी आप निश्चिन्त होके जाएँ। सूर्य उदित नहीं होगा।”

राम राज्य की नींव जनक की बेटियां ही थीं…
कभी सीता तो कभी उर्मिला। भगवान् राम ने तो केवल राम राज्य का कलश स्थापित किया
परन्तु वास्तव में राम राज्य इन सबके प्रेम, त्याग, समर्पण , बलिदान से ही आया।

बसंत पंचमी के टोटके

माँ सरस्वती

वसंत पंचमी माघ महीने की शुक्लपक्ष की पंचमी के दिन मनाई जाती है । वसंत पंचमी के दिन माँ सरस्वती की पूजा करने सरस्वती माँ का आशिर्वाद मिलता है। इस दिन लोग माँ से विद्या और वाकपटुता की प्रार्थना करते है।
बसन्त पंचमी बसंत ऋतु में मनाई जाती है , बसंत प्रेम का हर्ष उल्लास का समय है वस्तुतः इसे भारत का वैलेंटाइन डे भी कहते है। यह दिन प्रेम, दोस्ती के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है । इस दिन माँ सरस्वती के साथ कामदेव और रति की भी पूजा करने से प्रेम में सफलता मिलती है, सच्चा प्यार मिलता है दाम्पत्य जीवन में प्रेम बढ़ता है , दामपत्य जीवन लम्बा और सुखमय होता है ।
वसंत पंचमी पर देवी सरस्वती के विशेष पूजन से कटु वाणी से मुक्ति मिलती है, अध्ययन में सफलता मिलती है व असाध्य कार्य पूरे होते हैं। `
यहाँ पर हम आपको बसंत पंचमी के उपाय बता रहे है जिसको करने से अवश्य ही लाभ मिलेगा । जानिए बसन्त पंचमी के उपाय, बसंत पंचमी के टोटके
इस दिन सभी विद्यार्थियों को माँ सरस्वती की पूजा अवश्य ही करनी चाहिए । शास्त्रो के अनुसार सरस्वती देवी की महिमा से, इनकी कृपा से मंदबुद्धि भी महा विद्धान बन सकता है। इसीलिए बसंत पंचमी के दिन प्रत्येक विद्यार्थी के लिए सरस्वती पूजा अति शुभ मानी गयी है।
बसंत पंचमी के दिन सरस्वती माता के चरणों पर गुलाल चढ़ाकर देवी सरस्वती को श्वेत वस्त्र पहनाएं / अर्पण करें। इस दिन पीले फल, मालपुए और खीर का भोग लगाने से माता सरस्वती शीघ्र प्रसन्न होती है ।
बसंत पंचमी के दिन “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महा सरस्वत्यै नम:” ॥ अथवा
“ॐ सरस्वत्यै नम:”॥ मन्त्र की एक माला का जाप अवश्य ही करे । इससे बुद्दि का विकास होता है, ज्ञान, यश की प्राप्ति होती है ।
बसंत पंचमी के दिन माँ सरस्वती को बेसन के लड्डू अथवा बेसन की बर्फी, बूंदी के लड्डू अथवा बूंदी का प्रशाद चढ़ाएं ।
बसंत पंचमी के दिन अध्ययन में श्रेष्ठ सफलता प्राप्ति के लिए देवी सरस्वती पर हल्दी चढ़ाकर उस हल्दी से अपनी पुस्तक पर “ऐं” लिखें।
बसंत पंचमी के दिन कटु वाणी से मुक्ति हेतु, वाणी में मधुरता लाने के लिए देवी सरस्वती पर चढ़ी शहद को नित्य प्रात: सबसे पहले थोड़ा से अवश्य चखे ।
बसंत पंचमी के दिन किसी भी असाध्य कार्य पूरा करने हेतु देवी सरस्वती पर मोर पंख चढ़ा कर उस मोरपंख को तिजोरी में छुपाकर रखें।
बसन पंचमी के दिन से अपने मस्तक पर केसर अथवा पीले चंदन का तिलक करें, इससे ज्ञान और धन में वृद्धि होती है।
बसन्त पंचमी के दिन “मोर का एक पंख” अपने पास रखे इस दिन इसे अपने पास रखने से स्कूल कॉलेज में उस विद्यार्थी का मान सम्मान बढ़ता है।
बसन्त पंचमी के दिन “सिद्ध अष्ट सरस्वती यंत्र” गले में धारण करने से विद्यार्थी विद्या – बुद्धि में अत्यंत तेजस्वी हो जाता है।
बसंत पंचमी के दिन गहने, कपड़े, वाहन आदि की खरीदारी आदि भी अति शुभ है । इस दिन यथा संभव ब्राह्मण को दान आदि भी अवश्य ही करना चाहिए ।
आज के दिन मंदिरों में सरस्वती देवी के साथ साथ राधा कृष्ण एवं विष्णु लक्ष्मी के दर्शन भी अति फलदायी माने गए है ।
प्रेम में सफलता के लिए बसंत पँचमी के दिन किसी भी कृष्ण मंदिर में बांसुरी और पान अर्पण करें ।
आज के दिन किसी भी धार्मिक स्थल में अपने प्रेम की सफलता के लिए फूल एवं इत्र चढ़ाएँ ।
भगवान विष्णु और लक्ष्मी के मंदिर या उनकी मूर्ति या फोटो के सम्मुख पीला प्रसाद चढ़ायें और ऐसा इसके बाद से कम से कम 7 गुरुवार तक लगातार करें ।
आज के दिन अपने प्रियतम को लाल,गुलाबी,पीले और सुनहरे पीले रंग की वस्तुओं को उपहार में देना अत्यंत श्रेष्ठ माना गया है।
आज के दिन पीले वस्त्र धारण करें, कन्याएँ पीली चूड़ियाँ पहने और विवाहित स्त्रियाँ भी लाल एवं पीली चूड़ियाँ धारण करें ।
आज पीला वस्त्र, पीले आभूषण अति शुभ माने जाते है इसलिए सभी लोग इन्हे अवश्य ही धारण करें , स्त्रियाँ – कन्याएँ , आभूषणो की जगह पीले फूल, पीली आर्टिफिशियल जवैलरी भी धारण कर सकती है।
आज के दिन आप अपने प्रियतम को पीले फूल,लाल गुलाब ( ध्यान रहे गुलाब में काँटे नहीं हो ) कोई अछी चॉकलेट या कोई भी सुगन्धित इत्र भेटं करें तो अति उत्तम है ।
बसंत पंचमी में आप अपने व्यापारिक साझेदार / पार्टनर को कलम, फूलों का गुलदस्ता, अच्छा इत्र अथवा खूबसूरत फोटो फ्रेम जिसमें आप दोनों का हँसता-मुस्कुराता फोटो लगा हो उपहार में दें आप लोगो की साझेदारी और भी प्रगाढ़ रहेगी ।
आज के दिन खाने में पीली वस्तुओं का सेवन करें । आज मेवे युक्त पीले मीठे चावल का भगवान को मंदिर में भोग लगाकर उसे खाएं और अपने प्रियजनों को भी खिलाएं।
बसंत पँचमी के दिन आप अपने सभी बड़े, परिचितों, और गुरुओं के प्रति सम्मान अवश्य ही व्यक्त करें । उनके पास जाकर अभिवादन करें अगर हो सके तो उन्हें कोई उपहार या फूल ही दें, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करें । यह सच्चे मन से बताएँ की वह आपके लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है । इससे माँ सरस्वती की कृपा मिलती है यश कीर्ति बढ़ती है ।

अपनी राशियों के आधार पर करें! माँ सरस्वती की पूजा

वसंत पंचमी के दिन ज्ञान की देवी मां सरस्वती की पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, वसंत पंचमी के दिन ही सरस्वती देवी का जन्म हुआ था। उन्होंने अपनी वीणा से प्राणियों में वाणी प्रदान की। वसंत पंचमी के दिन हम मां सरस्वती की पूजा कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं। यदि आप पूजा के समय अपनी राशि के अनुसार मंत्रों का जाप करते हैं, तो मां सरस्वती प्रसन्न होंगी और शिक्षा के क्षेत्र में आपको अपार सफलताएं प्राप्त होंगी। साथ ही आप में ज्ञान की वृद्धि होगी।


राशि अनुसार सरस्वती मंत्र—-
मेष: इस राशि के जातकों को ओम वाग्देवी वागीश्वरी नम: मंत्र का जाप करना चाहिए। यह आपकी शिक्षा के लिए उत्तम रहेगा।
वृष: वृष राशि वालों को शिक्षा के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए ओम कौमुदी ज्ञानदायनी नम: सरस्वती मंत्र का जाप करना चाहिए।


मिथुन: ऐसे जातकों को वसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए ओम मां भुवनेश्वरी सरस्वत्यै नम: मंत्र का पाठ करना चाहिए।


कर्क: इस राशि के लोगों के लिए मां सरस्वती का मंत्र ओम मां चन्द्रिका दैव्यै नम: का जाप करना सर्वोत्त होगा।


सिंह: सिंह राशि के जातक अपने करियर को बेहतर बनाना चाहते हैं तो वसंत पंचमी के दिन उनके मां सरस्वती के ओम मां कमलहास विकासिनी नम: मंत्र का पाठ करना चाहिए।


कन्या: इस राशि के व्यक्तियों को वसंत पंचमी के दिन ओम मां प्रणवनाद विकासिनी नम: मंत्र का जाप करना चाहिए। उनको मां सरस्वती की कृपा प्राप्त होगी।


तुला: तुला राशि के जातकों को वसंत पंचमी के दिन ओम मां हंससुवाहिनी नम: मंत्र का जाप करना चाहिए।


वृश्चिक: इस राशि के लोगों को ओम शारदे देव्यै चंद्रकांति नम: मंत्र का जाप करने से मां सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है।


धनु: इस राशि के जातकों को वसंत पंचमी के दिन जाप करने के लिए सरस्वती मंत्र है: ओम जगती वीणावादिनी नम:।


मकर: मकर राशि के लोगों को आज के दिन ओम बुद्धिदात्री सुधामूर्ति नम: सरस्वती मंत्र का पाठ करना चाहिए।


कुंभ: इस राशि के व्यक्तियों को वसंत पंचमी के दिन ओम ज्ञानप्रकाशिनी ब्रह्मचारिणी नम: सरस्वती मंत्र का पाठ करना चाहिए। इससे आपके ज्ञान में वृद्धि होगी और शिक्षा में सफलता मिलेगी।


मीन: इस राशि के जातकों को ओम वरदायिनी मां भारती नम: सरस्वती मंत्र का जाप करना चाहिए। मां सरस्वती की कृपा से शिक्षा के क्षेत्र में आपको सफलता प्राप्त होगी।

“हत्था-जोड़ी” क्या है इसका प्रयोग !

जानिए क्या होती है तांत्रिक साधना में काम आने वाली हत्था जोड़ी:क्यों है इसका इतना गहरा प्रभाव..!

पूर्व काल से ही तांत्रिक वस्तुयें भाग्य वृद्धि/सुरक्षा के लिये प्रयोग में लाई जारही है। इनमे से प्रमुख है हत्था जोड़ी जब व्यक्ति को जीवन मे कोई साधन/रास्ता न मिले, तो दीपावली की रात को यह मन्त्र पूजा से सिद्ध करके अपने पास में रखने से साधनो की प्राप्ति में सहायता मिलती है क्योकि इस दीपावली की विशेष रात्रि को मंत्रो द्वारा सिद्धि प्राप्त करने की विशेष योग है।

हत्था जोडी की बात करें तो यह एक प्रभावशाली तांत्रिक वस्तु है, यह बहुत पुराने जंगलों में दाब नाम की घास के पेड की जड से निकलती है। इस जड़ की आकृति दो जुड़े हुए हाथों के रूप में होती है, इसलिए इसे हत्था जोड़ी कहा गया है। तंत्र शास्त्र में हत्था जोड़ी एक विशिष्ट स्थान रखती है।हत्था जोड़ी

तांत्रिक प्रयोगों में काम आने वाली एक दुर्लभ एवं चमत्कारिक वस्तु है। ये एक प्रकार की वनस्पति बिरवा की जड़ है, लेकिन इसे दुर्लभ माना जाता है, क्योकि ये सहज उपलब्ध नहीं होती है।

हत्था जोड़ी के प्रभाव

ये साक्षात् माँ महाकाली और कामाख्या देवी का स्वरुप मानी जाती है। देखने में ये भले ही किसी पक्षी के पंजे या मनुष्य के हाथो के समान दिखे लेकिन असल में ये एक पौधे की जड़ है।

तांत्रिको के अनुसार दीपावली की रात को सिद्ध की गई हत्था जोड़ी जीवन भर संकटों, बाधाओं, ऊपरी हवा, किसी किये कराये या बुरे तांत्रिक प्रभाव से साधक की रक्षा करती है।

हत्था जोड़ी का प्रयोग दांपत्य जीवन में आ रही समस्यओं को दूर करने में, व्यापार वृद्धि में, धन प्राप्ति इत्यादि में की जाती है | इसे स्त्रियों को छूना मना होता है स्त्रियों के छूने से इसकी शक्ति ख़त्म हो जाती है.ऐसा शस्त्रों मे लिखा है.इसे पीले सिंदूर मे चाँदी की डिब्बी मे लौंग ,इलायची ,गुग्गूल,चाँदी आदि वस्तुओं के साथ आभिमंत्रित करके रक्खा जाता है|

ज्योतिष के अनुसार यह जड़ बहुत चमत्कारी होती है और किसी कंगाल को भी मालामाल बना सकती है। इस जड़ के असर से मुकदमा, शत्रु संघर्ष, दरिद्रता से जुड़ी परेशानियों को दूर किया जा सकता है। इस जड़ से वशीकरण भी किया जाता है और भूत-प्रेत आदि बाधाओं से भी निजात मिल सकती है।

हत्था जोड़ी जो की एक महातंत्र में उपयोग में लायी जाती है और इसके प्रभाव से शत्रु दमन तथा मुकदमो में विजय हासिल होती है ।

आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है तो आपको अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए उपाय करना चाहिए। इसके लिए किसी भी शनिवार अथवा मंगलवार के दिन हत्था जोड़ी घर लाएं। इसे लाल रंग के कपड़े में बांधकर घर में किसी सुरक्षित स्थान में अथवा तिजोरी में रख दें। इससे आय में वृद्घि होगी एवं धन का व्यय कम होगा।

तिजोरी में सिन्दूर युक्त हत्था जोड़ी रखने से आर्थिक लाभ में वृद्धि होने लगती है। हाथा जोड़ी एक जड़ है। गायत्री मंत्र से पूजने के बाद इलायची तथा तुलसी के पत्तों के साथ एक चांदी की डिब्बी में रख दें। इससे धन लाभ होता है।हाथा जोड़ी को इस मंत्र से सिद्ध करें-

ऊँ किलि किलि स्वाहा।

हत्था जोड़ी मंत्र अगर आप दांपत्य जीवन के लिए इसका प्रयोग कर रहे हो :—-

ॐ हाँ ग़ जू सः अमुक में वश्य वश्य स्वाहा |

हत्था जोड़ी मंत्र अगर आप धन और व्यापार के लिए इसका प्रयोग कर रहे हो :—

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्री महालक्ष्मयै नमः |

हत्था जोड़ी मंत्र अगर आप शिक्षा और नौकरी के लिए इसका प्रयोग कर रहे हो :—-

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सरस्वतये नमः

प्रश्न कुण्डली- बिना जीवन कुण्डली के जाने

इस लेख के माध्यम से मैं आप सभी को बताना चाहता हूं कि प्रश्न कुंडली एक बहुत ही अच्छा तरीका है जब किसी इंसान के पास कुंडली ना हो और उसके पास कोई एक खास सवाल हो तो इस सवाल का जवाब देने के लिए सबसे अच्छा तरीका प्रश्न कुंडली होता है

प्रश्न कुंडली किस तरह काम करती है अगर प्रश्न करने वाला व्यक्ति दिल से ईमानदारी से साफ साफ सवाल पूछता है तो जिस वक्त वह सवाल पूछता है उस वक्त की सभी ग्रहों की स्थिति कुछ इस तरह बनती है कि उनकी वाइब्रेशन उनकी एनर्जी प्रश्नकर्ता के सवाल की एनर्जी के साथ मैच करने लगती है और इसी वजह से प्रश्नकर्ता भी उसी वक्त सवाल करता है।

जब लगन उस सवाल के समकक्ष चल रहा हो इसी वजह से प्रश्न कुंडली हमेशा ऐसे ही बनती है जैसा सवाल पूछा गया है प्रश्न कुंडली में हमेशा सबसे ज्यादा इस बात का ध्यान रखा जाता है की लग्नेश और लग्न क्या है, लग्न चर और उसकी दिशा आदि, जो भी बहुत सारी बाते हमने बेसिक एस्ट्रोलॉजी में राशियों के बारे में पढी, वो सभी बाते यहाँ काम आती है।

1• सामान्य प्रश्न विचार :- प्रश्न ज्योतिष से प्रश्न कर्ता जब प्रश्न करता है उसी समय का लग्न बनाकर प्रश्नों का उत्तर दे तो काफी हद तक जो व्यक्ति अभी नया नया ज्योतिष पढ़ रहा हों और ज्यादा अनुभव नहीं भी हों तो भी प्रश्नों का उत्तर निकाल सकता है।

सबसे पहले जब यह निकलना हो उस समय कि कुंडली बना ले | जो भी लग्न चल रहा हों उस लग्न का स्वामी लग्नेश व जिस भाव के लिए प्रश्न किया गया हों वो कार्येष कहलाता है क्रमश: उन दोनों ग्रहों कि जाती, गुण,अवस्था कि जानकारी कर इष्ट फल बताये |

लग्नेश कार्येष अपने अपने भाव में स्थित हों या कार्येष लग्न में हों लग्नेश कार्य भाव में हों तो वांछित सिद्धी मिलती है परन्तु इनमेसे कोई भी एक भाव पर चंद्रमा कि पूर्ण दृष्टि हों तो कार्य पूर्ण रुप से सिद्ध होता है।

अगर एसी स्थिति में इन पर चंद्रमा नहीं देख रहा हों परन्तु और कोई शुभ ग्रह देखता हों तो यह कार्य तो सिद्ध नहीं होगा परन्तु कोई अन्य कार्य कि सिद्धी होगी |

2• प्रश्नकर्ता सीधा है या कुटिल :- लग्न में चंद्रमा व केतु , {१ ४ ७ १० } शनि हों , बुद्ध अस्त हों चंद्रमा मंगल या शनि पूर्ण दृष्टि से देखते हों तो प्रश्न कर्ता कुटिल है वह ज्योतिषी कि परीक्षा लेने आया है या ज्योतिषी कि मजाक बनाने आया है। जैसा की अक्सर लोग फ्री के नाम पर आते है और ज्योतिषी का वक़्त खराब करते है।
इसलिए आप पृश्नकृता के पृश्न किये बिना भी पृश्न कुंडली बना सकते है। अगर लग्न में शुभ ग्रह हों तो प्रश्नकर्ता सरल व्यक्ति है उसको वाकई अपना भविष्य जानना है |

यदि चंद्रमा , गुरु लग्न या सप्तम स्थान को मित्र दृष्टि से देखते हों तो भी प्रश्नकर्ता सरल स्वभाव का है परन्तु प्रश्न के समय गुरु और चंद्रमा कि शत्रु द्रष्टि सप्तमेश पर हों तो कुटिल है। अगर चंद्रमा व गुरु एक राशी में हों तो प्रश्नकर्ता सरल व्यक्ति है |

3• वर्तमान,भूत या भविष्य कैसा :- यदि चंद्रमा और गुरु का योग सप्तमेश के साथ हों तो प्रश्नकर्ता का वर्तमान समय ठीक है और आगे भी ठीक होगा | यदि ऐसा नहीं है तो वर्तमान भी ठीक नहीं है आगे भी ठीक नहीं होगा |

इसी में लग्नेश व कार्येष का योग जिस दिन हों और कार्येष उदय होकर लग्न में पंहुचे या कार्येष और लग्नेश कि परस्पर दृष्टि हों उसी दिन कार्य होगा | इस तरह से मोटे तोर पर कार्य होगा या नहीं , होगा तो कब होगा यह छोटी छोटी भविष्य वाणी थोड़े से अध्ययन से कि जा सकती है |

मतलब ये सबसे सामान्य नियम है। मेरी आप से विनती है, की आप जब खुद इसकी अभ्यास करेंगे, तो ज्यादा समझ पाएंगे।

हस्तरेखा विज्ञान क्या है? कैसे करता है काम?

हमारे देश में पिछले 2500 वर्षों से लोगों की यह धारणा रही है कि हाथों की रेखाएं देखकर आदमी का भविष्य बताया जा सकता है । भारत से ही यह धारणा दूसरे देशों में भी फैली । आरम्भ में ज्योतिषी पैरों के तलओं की रेखाएं भी देखा करते थे , परन्तु बाद में यह अनुभव किया गया कि हाथों की रेखाएं देखना अधिक आसान है ।

हाथ की रेखाओं को पढ़ने के विज्ञान को हस्तरेखा विज्ञान कहते हैं । इससे व्यक्ति का चरित्र , उसका भविष्य और भविष्य के उतार – चढ़ाव बताये जाते हैं । यद्यपि हस्तरेखा विज्ञान का कोई वैज्ञानिक आधार अभी तक स्थापित नहीं हो पाया है , परन्तु अनुभव के आधार पर यह कहा जा सकता है कि हाथ की बनावट और रेखाओं के अनुसार व्यक्ति के काम – धन्धों , आदतों और स्वभाव , रुचियों और उसके व्यक्तित्त्व का किसी सीमा तक पता चल सकता है । यह कहना मुश्किल है कि इन रेखाओं में कोई आत्मिक शक्ति होती है ।

Hastrekha
हस्तरेखा

प्राचीन ज्योतिषियों के अनुसार सबसे ऊपर की रेखा का सम्बन्ध हृदय से होता है । यह प्रेम करने की शक्ति के विषय में बताती है । इसके नीचे की रेखा का सम्बन्ध मस्तिष्क से माना जाता है । इसे मस्तिष्क रेखा कहते हैं । भाग्य रेखा इन दोनों को काटती हुई जाती है । मस्तिष्क रेखा के नीचे जो वक्र रेखा है , उसे जीवन रेखा कहते हैं । इस की लम्बाई के आधार पर व्यक्ति की आयु ज्ञात की जाती है ।

हाथ पर और भी अनेक रेखाएं होती हैं , जो जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालती हैं । आज के हस्तरेखा वैज्ञानिक भी इन रेखाओं को इन्हीं नामों से पुकारते हैं, और प्राचीन ज्योतिषियों की तरह ही इनके अर्थ पढ़ते हैं । यदि किसी ज्योतिषी की भविष्यवाणी सही निकलती है तो उसे याद किया जाता है । गलत भविष्यवाणी को लोग भूल जाते हैं । कुछ भी हो इन भविष्यवाणियों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता , परन्तु इसे पूरी तरह नकारा भी नहीं जा सकता । वैसे भविष्य बताने के जो और तरीके बरते जाते हैं , उन पर भी आशिक रूप से ही सही, विश्वास किया जा सकता है ।

Malmas 2020: मलमास कब से शुरू हो रहे हैं, जानें इस मास में वर्जित कार्य

अधिकमास
अधिमास (मलमास)

इस वर्ष 18 सित. से 16 अक्टूबर 2020 तक होगा

“इस वर्ष आश्विनमास में ही अधिमास लग रहा है- इस मास में शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से अमावस्या तक सूर्य की संक्रान्ति नहीं होगा । अतः कहा गया है कि ” असंक्रान्ति मासोऽधिमासः स्फुटः स्यात ” अर्थात जिस चान्द्रमास में सूर्य की संक्रान्ति न हो उसे अधिमास कहते हैं ।