Prayag Culture

होली पर करें ये उपाय

1-यदि कोई व्यक्ति निरन्तर बीमार रहता है, और काफी दवा कराने के बावजूद भी रोग में कोई लाभ नहीं हो रहा है, तो होली दहन के समय देशी घी में दो लौंग, एक बताशा, एक पान का पत्ता इन सभी वस्तुओं को होली जलने वाली आग में डाल दें। अगले दिन होली की राख रोगी के शरीर में लगायें और तत्पश्चात गर्म जल से स्नान करायें। इस उपाय से रोगी शीघ्र ही स्वस्थ्य होने लगेगा।
2-कोई व्यक्ति अभिचार कर्म के कारण अर्थात मारण, विद्वेषण, उच्चाटन, सम्मोहन व वशीकरण से आक्रान्त हो तो वह व्यक्ति उपरोक्त विधि से होलिका की राख शरीर में लगाकर गर्म जल से स्नान कराने से नकारात्मक प्रभाव निर्मूल हो जाता है।
3-यदि किसी का पति दूसरी महिला के सम्पर्क में रहता है, तो आप होली पर उपरोक्त सामग्री अर्पित करें एंव 7 बार होली की जलती आग की परिक्रमा करें। परिक्रमा करते समय 1 गोमती चक्र अपने पति का नाम लेकर आग में डालें। ऐसा करने से महिला का पति उसके पास वापस लौट आयेगा।
4- यदि आपको ऐसा प्रतीत होता है कि किसी ने आपके उपर तान्त्रिक प्रयोग करवा दिया है, तो आप होली दहन के समय देशी घी में दो लौंग, एक बताशा, एक पान का पत्ता और थोड़ी सी मिश्री इन सभी वस्तुओं को होली जलने वाली आग में डाल दें। अगले दिन होली की राख को चांदी के ताबीज में भर कर गलें में धारण करने से तान्त्रिक प्रभाव निष्क्रिय हो जायेगा।
5-यदि कोई व्यक्ति आपका लिया हुआ धन वापिस नहीं कर रहा है, तो आप होली जलने वाले स्थान पर अनार की लकड़ी से उसका नाम लिखकर होलिका माता से अपने धन वापसी का निवेदन करते हुये उसके नाम पर हरा गुलाल छिड़क दें। इस उपाय से आपका धन मिल जायेगा।
6- यदि आप किसी से शत्रुता समाप्त करना चाहते है तो होलिका दहन के अगले दिन उसी स्थान पर रात्रि 12 बजे जाकर होली जलने के स्थान पर अनार की लकड़ी से उसका नाम लिख दें और फिर उसे बांये हाथ से मिटा दें और उस स्थान की थोड़ी सी राख लाकर। अगले दिन उस व्यक्ति के सिर पर डाल दें। ऐसा करने से वह व्यक्ति आपके प्रति शत्रुता का भाव समाप्त कर देगा।
7-यदि आपकी जन्मपत्री में कोई ग्रह दूषित हो तो आप होली दहन के समय देशी घी में दो लौंग, एक बताशा, एक पान का पत्ता इन सभी वस्तुओं को होली जलने वाली आग में डाल दें। अगले दिन उस राख को लाकर सर्वार्थ सिद्धि योग में शुद्ध करके बहते जल में प्रवाहित कर दें।
8- अगर आपको राज्यपक्ष से बाधा आ रही है तो आप होलिका के उल्टे फेरे प्रारम्भ करें। प्रत्येक फेरे की समाप्ति पर आक (मंदार) की जड़ जलती होली में डालें। इस उपाय को करने से आपको राज्य पक्ष से मिलने वाली सारी बाधायें समाप्त हो जायेगी।
9-वास्तुदोषों से मुक्ति पाने के लिए होली दहन के अगले दिन आप सर्वप्रथम अपने इष्ट देव को गुलाल अर्पित कर अपने निवास के ईशान कोण पर पूजन कर गुलाल चढ़ायें। यह उपाय करने से आपका घर वास्तुदोष से मुक्त हो जायेगा।
10- यदि किसी के उपर कोई भय का साया है तो वह होली के दिन एक नारियल, एक जोड़ा लौंग व पीली सरसों इन सभी वस्तुओं को लेकर पीडि़त व्यक्ति के उपर से 21 बार उतार होली की अग्नि में डाल दें। सारा दुष्प्रभाव समाप्त हो जायेगा।
11-यदि आपको बार-2 आर्थिक हानि का सामना करना पड़ रहा है तो आप होलिका दहन की शाम को अपने मुख्यद्वार की चौखट पर दोमुखी आटे का दीपक बनायें। चौखट पर थोड़ा सा गुलाल छिड़ककर दीपक जलाकर रख देना चाहिए। दीपक जलने के साथ ही मानसिक रूप से आर्थिक हानि दूर होने के लिए निवेदन करना चाहिए। यह उपाय कारगर सिद्ध होगा।
12- किसी बालक अथवा बड़े को शीघ्र ही नजर लगती हो तो होली दहन के समय देशी घी में दो लौंग, एक बताशा, एक पान का पत्ता इन सभी वस्तुओं को होली जलने वाली आग में डाल दें। अगले दिन होली की राख को तांबे या चांदी के ताबीज में भरकर काले धागे में बांधकर गले में धारण करने से कभी भी नजर दोष नहीं लगता है।
।। सबका मंगल हो ।।
आचार्य धीरज द्विवेदी “याज्ञिक”
(ज्योतिष, वास्तु शास्त्र एवं वैदिक अनुष्ठानों के विशेषज्ञ
संपर्क सूत्र-09956629515)

आइये जानते हैं – ग्रहों का घर के वास्तु पर कितना असर, किस हिस्से में कौन सी चीज रखना शुभ

किसी भी वास्तु में नौ ग्रहों का आधिपत्य होता है एवं वास्तु में इनका स्थान निश्चित कोण पर होता है। इसी प्रकार प्रत्येक दिशा के देवता भी अलग-अलग होते हैं। घर में इनके संतुलित होने पर सुख-समृद्धि रहती है वहीं इनके स्वभाव के विपरीत निर्माण करने पर वास्तु दोष उत्पन्न हो जाता है जिससे अनेकों प्रकार की परेशानियों का जीवन में सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में आइए जानते हैं ज्योतिषाचार्य पं. देवतादीन शुक्ल से सभी नौ ग्रहों का घर के वास्तु पर कैसा असर होता है……….


सूर्य ग्रह:- पूर्व दिशा के स्वामी सूर्य ग्रह एवं देवता इंद्र है। सूर्य स्वास्थ्य, ऐश्वर्य और तेजस्व प्रदान करने वाला ग्रह है यदि घर की पूर्व दिशा दोषमुक्त रहे तो उस भवन का स्वामी और उसमें रहने वाले सदस्य महत्वकांक्षी, सत्वगुणों से युक्त और उनके चेहरे पर तेज होता है। ऐसे में भवन स्वामी को खूब मान-सम्मान मिलता है। इसलिए वास्तु में पूर्व दिशा को खुला छोड़ने की सलाह दी जाती है ताकि अंनत गुणधर्म वाली सूर्य की रश्मियां भवन में प्रवेश कर सकें। कभी भी इस दिशा को भारी व बंद नहीं करें।


शुक्र ग्रह:- शुक्र आग्नेय कोण के अधिपति ग्रह एवं इस दिशा के देवता अग्निदेव हैं। शुक्र ग्रह ऐश्वर्य के स्वामी हैं। जिस भवन में दक्षिण-पूर्व या आग्नेय कोण शुभगुणों से युक्त और दोष रहित होता है ऐसे वास्तु की आंतरिक ऊर्जा स्वस्थ्य और शुक्र के गुणधर्म वाली होती है। इस दिशा में रसोई, बिजली के सामान एवं विद्युत केंद्र होना वास्तु के अनुसार शुभ माने गए हैं।


मंगल ग्रह:- दक्षिण दिशा मंगल ग्रह के अधीन होती है एवं इस दिशा के देवता यम हैं। मंगल ग्रह समस्त प्रकार का साहस एवं धन लाभ प्रदान करने वाला होता है। मंगल ग्रह निडर, साहसी और दिलेर होता है और यह युद्ध, लड़ाई, क्रोध का अधिपति भी है। दक्षिणदिशा विधि, न्याय, मुकदमेबाजी, आराम, जीवन और मृत्यु से संबंधित है। इसलिए इस दिशा में शयन कक्ष तथा भण्डार गृह रखना चाहिए।


राहु ग्रह:- दक्षिण पश्चिम दिशा या नैऋत्य कोण का स्वामी राहु ग्रह है एवं इस दिशा की देवी आसुरी शक्ति वाली हैं। इस दिशा में तमस तत्व सर्वाधिक होता है इसलिए वास्तु में इस दिशा को सबसे अधिक भारी रखना शुभ होता है। घर में भूलकर भी इस दिशा को हल्की एवं खुली नहीं रखें। इस दिशा में बैडरूम, ऑफिस, बाथरूम या स्टोर रूम बनाना लाभदायक रहता है।


शनि ग्रह:- पश्चिम दिशा लाभ एवं प्रसन्नता की दिशा है। इस दिशा के ग्रह शनि एवं देवता वरुण देव है। शनि ग्रह भाग्य, कर्म, यश तथा पौरुष संबंधी कार्यों का कारक होता है। इस दिशा को हमेशा स्वस्थ्य रखना चाहिए। इस दिशा में ड्राइंगरूम, बेडरूम, पुस्तकालय होना शुभ होता है।


चन्द्रमा ग्रह:- वायव्य दिशा का स्वामी चन्द्रमा है। यह शांत चित्त एवं भाग्य का अधिपति ग्रह है। यह मन, चित्तवृत्ति, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य, संपत्ति व माता का कारक है। वहीं वास्तु में वायव्य कोण वायुदेव का स्थान है। वायुदेव हमें शक्ति, प्राण, स्वास्थ्य प्रदान करते है। सामाजिक जीवन एवं व्यापार पर इसका विशेष प्रभाव होता है। इस दिशा में भोजनकक्ष,अतिथि गृह, विवाह योग्य कन्याओं का कमरा एवं बिना टॉयलेट के बाथरूम होना शुभ होता है।


बुध ग्रह:- यह ग्रह उत्तर दिशा के स्वामी एवं इस दिशा के देवता कुबेरदेव होते हैं। बुध वाक्चातुर्य एवं विद्धता का प्रतिनिधि ग्रह है। जिस घर में उत्तर दिशा शुभ होती है वहां के लोग अत्यंत बुद्धिमान, विद्वान, लेखन एवं कविता में रूचि रखने वाले होते हैं। बुध सम्पन्नता और करियर का प्रतिनिधि ग्रह है इसलिए इस दिशा में अध्ययन कक्ष, तिजोरी और पुस्तकालय शुभ माने गए हैं।


गुरु ग्रह:- यह उत्तर-पूर्व या ईशान कोण का स्वामी ग्रह है एवं विष्णुदेव इस दिशा के देवता हैं । गुरु, ईश्वरीय तेज एवं आध्यात्मिक वृत्ति का प्रदाता ग्रह है। बौद्धिक विकास एवं बौद्धिक शांति के लिए तथा ईश्वर की कृपा पाने के लिए यह दिशा स्वस्थ्य रखनी चाहिए। इस दिशा में पूजा स्थल एवं योग कक्ष बनाना अत्यंत शुभकारी है।

श्रीमहाकाल भैरवाष्टक….

यं यं यं यक्षरूपं दशदिशिविदितं भूमिकम्पायमानं
सं सं संहारमूर्तिं शिरमुकुटजटा शेखरंचन्द्रबिम्बम् ।
दं दं दं दीर्घकायं विक्रितनख मुखं चोर्ध्वरोमं करालं
पं पं पं पापनाशं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ १॥

रं रं रं रक्तवर्णं, कटिकटिततनुं तीक्ष्णदंष्ट्राकरालं
घं घं घं घोष घोषं घ घ घ घ घटितं घर्झरं घोरनादम् ।
कं कं कं कालपाशं द्रुक् द्रुक् दृढितं ज्वालितं कामदाहं
तं तं तं दिव्यदेहं, प्रणामत सततं, भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ २॥

लं लं लं लं वदन्तं ल ल ल ल ललितं दीर्घ जिह्वा करालं
धूं धूं धूं धूम्रवर्णं स्फुट विकटमुखं भास्करं भीमरूपम् ।
रुं रुं रुं रूण्डमालं, रवितमनियतं ताम्रनेत्रं करालम्
नं नं नं नग्नभूषं , प्रणमत सततं, भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ३॥

वं वं वायुवेगं नतजनसदयं ब्रह्मसारं परन्तं
खं खं खड्गहस्तं त्रिभुवनविलयं भास्करं भीमरूपम् ।
चं चं चलित्वाऽचल चल चलिता चालितं भूमिचक्रं
मं मं मायि रूपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ४॥

शं शं शं शङ्खहस्तं, शशिकरधवलं, मोक्ष सम्पूर्ण तेजं
मं मं मं मं महान्तं, कुलमकुलकुलं मन्त्रगुप्तं सुनित्यम् ।
यं यं यं भूतनाथं, किलिकिलिकिलितं बालकेलिप्रदहानं
आं आं आं आन्तरिक्षं , प्रणमत सततं, भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ५॥

खं खं खं खड्गभेदं, विषममृतमयं कालकालं करालं
क्षं क्षं क्षं क्षिप्रवेगं, दहदहदहनं, तप्तसन्दीप्यमानम् ।
हौं हौं हौंकारनादं, प्रकटितगहनं गर्जितैर्भूमिकम्पं
बं बं बं बाललीलं, प्रणमत सततं, भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ६॥

वं वं वं वाललीलं सं सं सं सिद्धियोगं, सकलगुणमखं,
देवदेवं प्रसन्नं पं पं पं पद्मनाभं, हरिहरमयनं चन्द्रसूर्याग्नि नेत्रम् ।
ऐं ऐं ऐं ऐश्वर्यनाथं, सततभयहरं, पूर्वदेवस्वरूपं
रौं रौं रौं रौद्ररूपं, प्रणमत सततं, भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ७॥

हं हं हं हंसयानं, हसितकलहकं, मुक्तयोगाट्टहासं, ?
धं धं धं नेत्ररूपं, शिरमुकुटजटाबन्ध बन्धाग्रहस्तम् ।
तं तं तंकानादं, त्रिदशलटलटं, कामगर्वापहारं,
भ्रुं भ्रुं भ्रुं भूतनाथं, प्रणमत सततं, भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ८॥

इति महाकालभैरवाष्टकं सम्पूर्णम् ।
नमो भूतनाथं नमो प्रेतनाथं नमः कालकालं नमः रुद्रमालम् ।
नमः कालिकाप्रेमलोलं करालं नमो भैरवं काशिका क्षेत्रपालम् ॥

महाशिवरात्रि के दिन शिव जी को ऐसे करें प्रसन्न, राशि अनुसार करें महादेव जी की पूजा

मेष राशि:
इस राशि वाले जातक महाशिवरात्रि के दिन शिव जी की गुलाल से पूजा करें और “ॐ ममलेश्वराय नम:” मंत्र का जाप करें, आपको बहुत अधिक लाभ मिलेगा।

वृषभ राशि:
महाशिवरात्रि के दिन इस राशि के लोग शिव जी का दूध से अभिषेक करें और “ॐ नागेश्वराय नम:” मंत्र का जाप करें, सभी कष्टों से मुक्ति मिलेगी।

मिथुन राशि:
महाशिवरात्रि के दिन मिथुन राशि के जातक शिव जी का गंगा जल से अभिषेक करें और इसके साथ ही “ॐ भूतेश्वराय नम:” मंत्र का जाप करें।

कर्क राशि:
इस राशि के जातकों को महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव का पंचामृत से अभिषेक करना चाहिये और महादेव के “द्वादश” नाम का स्मरण करना चाहिये।

सिंह राशि:
इस राशि के जातक महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव का शहद से अभिषेक करें और “ॐ नम: शिवाय” मंत्र का जाप करें।

कन्या राशि:
कन्या राशि के जातक महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव का जल में दूध मिलाकर अभिषेक करें और “शिव चालीसा” का पाठ करें।

तुला राशि:
भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिये महादेव का दही से अभिषेक करें और इस दिन “शिवाष्टक” का पाठ करें।

वृश्चिक राशि:
इस राशि के लोग दूध और घी से शिवजी का अभिषेक करें और “ॐ अंगारेश्वराय नम:” मंत्र का जाप करें।

धनु राशि:
महाशिवरात्रि के दिन शिव जी का दूध से अभिषेक करें और “ॐ सोमेश्वरायनम:” मंत्र का जाप करें, सभी इच्छाएं जल्द पूरी होंगी।

मकर राशि:
महाशिवरात्रि के दिन मकर राशि वाले जातक भगवान शिव का गन्ने के रस से अभिषेक करें और साथ ही “शिव सहस्त्रनाम” का पाठ करें।

कुंभ राशि:
इस राशि वाले जातक महाशिवरात्रि के दिन शिव जी का दूध, दही, शक्कर, घी, शहद इन सभी चीजों से अभिषेक करें इसके साथ ही “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें।

मीन राशि:
भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिये महाशिवरात्रि के दिन मौसमी फल के रस से शिव जी का अभिषेक करें, इसके साथ ही “ॐ भामेश्वराय नम:” मंत्र का जाप करें।
(स्वयं न कर पाने की स्थिति में योग्य ब्राम्हण द्वारा करायें)।

भोजन के प्रकार

भीष्म पितामह ने अर्जुन को 4 प्रकार से भोजन न करने के लिए बताया था …

पहला भोजन ….
जिस भोजन की थाली को कोई लांघ कर गया हो वह भोजन की थाली नाले में पड़े कीचड़ के समान होती है …!

दूसरा भोजन ….
जिस भोजन की थाली में ठोकर लग गई,पाव लग गया वह भोजन की थाली भिष्टा के समान होता है ….!

तीसरे प्रकार का भोजन ….
जिस भोजन की थाली में बाल पड़ा हो, केश पड़ा हो वह दरिद्रता के समान होता है ….

चौथे नंबर का भोजन ….
अगर पति और पत्नी एक ही थाली में भोजन कर रहे हो तो वह मदिरा के तुल्य होता है …..
और सुनो अर्जुन अगर पत्नी,पति के भोजन करने के बाद थाली में भोजन करती है उसी थाली में भोजन करती है या पति का बचा हुआ खाती है तो उसे चारों धाम के पुण्य का फल प्राप्त होता है ..
अगर दो भाई एक थाली में भोजन कर रहे हो तो वह अमृतपान कहलाता है

चारों धाम के प्रसाद के तुल्य वह भोजन हो जाता है ….

और सुनो अर्जुन …..
बेटी अगर कुमारी हो और अपने पिता के साथ भोजन करती है एक ही थाली में तो उस पिता की कभी अकाल मृत्यु नहीं होती ….
क्योंकि बेटी पिता की अकाल मृत्यु को हर लेती है ! इसीलिए बेटी जब तक कुमारी रहे तो अपने पिता के साथ बैठकर भोजन कर सकती है।

संस्कार दिये बिना सुविधायें देना, पतन का कारण है …

“सुविधाएं अगर आप ने बच्चों को नहीं दिए तो हो सकता है वह थोड़ी देर के लिए रोए …
पर संस्कार नहीं दिए तो वे जीवन भर रोएंगे।

क्या है रामायण ?

छोटा सा वृतांत है

एक रात की बात हैं,माता कौशिल्या जी को सोते में अपने महल की छत पर किसी के चलने की आहट सुनाई दी।
नींद खुल गई ।
पूछा कौन हैं ?

मालूम पड़ा श्रुतिकीर्ति जी हैं ।
नीचे बुलाया गया

श्रुतिकीर्ति जी,
जो सबसे छोटी बहु हैं, आईं, चरणों में प्रणाम कर खड़ी रह गईं

माता कौशिल्या जी ने पूछा, श्रुति ! इतनी रात को अकेली छत पर क्या कर रही हो बिटिया ?
क्या नींद नहीं आ रही ?

शत्रुघ्न कहाँ है ?

श्रुतिकीर्ति की आँखें भर आईं, माँ की छाती से चिपटी,
गोद में सिमट गईं, बोलीं, माँ उन्हें तो देखे हुए तेरह वर्ष हो गए ।

उफ !
कौशल्या जी का ह्रदय काँप कर झटपटा गया ।

तुरंत आवाज लगी, सेवक दौड़े आए ।
आधी रात ही पालकी तैयार हुई, आज शत्रुघ्न जी की खोज होगी,
माँ चली ।

आपको मालूम है शत्रुघ्न जी कहाँ मिले ?

अयोध्या जी के जिस दरवाजे के बाहर भरत जी नंदिग्राम में तपस्वी होकर रहते हैं, उसी दरवाजे के भीतर एक पत्थर की शिला हैं, उसी शिला पर, अपनी बाँह का तकिया बनाकर लेटे मिले ।

माँ सिराहने बैठ गईं,
बालों में हाथ फिराया तो शत्रुघ्न जी नेआँखें खोलीं,

माँ !

उठे, चरणों में गिरे, माँ ! आपने क्यों कष्ट किया ?
मुझे बुलवा लिया होता ।

माँ ने कहा,
शत्रुघ्न ! यहाँ क्यों ?”

शत्रुघ्न जी की रुलाई फूट पड़ी, बोले- माँ ! भैया राम जी पिताजी की आज्ञा से वन चले गए,
भैया लक्ष्मण जी उनके पीछे चले गए, भैया भरत जी भी नंदिग्राम में हैं, क्या ये महल, ये रथ, ये राजसी वस्त्र, विधाता ने मेरे ही लिए बनाए हैं ?

माता कौशल्या जी निरुत्तर रह गईं ।

देखो क्या है ये रामकथा…

यह भोग की नहीं….
त्याग की कथा हैं, यहाँ त्याग की प्रतियोगिता चल रही हैं और सभी प्रथम हैं, कोई पीछे नहीं रहा

चारो भाइयों का प्रेम और त्याग एक दूसरे के प्रति अद्भुत-अभिनव और अलौकिक हैं ।

रामायण जीवन जीने की सबसे उत्तम शिक्षा देती हैं ।

भगवान राम को 14 वर्ष का वनवास हुआ तो उनकी पत्नी माँ सीता ने भी सहर्ष वनवास स्वीकार कर लिया।
परन्तु बचपन से ही बड़े भाई की सेवा मे रहने वाले लक्ष्मण जी कैसे राम जी से दूर हो जाते!
माता सुमित्रा से तो उन्होंने आज्ञा ले ली थी, वन जाने की..
परन्तु जब पत्नी उर्मिला के कक्ष की ओर बढ़ रहे थे तो सोच रहे थे कि माँ ने तो आज्ञा दे दी,
परन्तु उर्मिला को कैसे समझाऊंगा!! क्या कहूंगा!

यहीं सोच विचार करके लक्ष्मण जी जैसे ही अपने कक्ष में पहुंचे तो देखा कि उर्मिला जी आरती का थाल लेके खड़ी थीं और बोलीं- “आप मेरी चिंता छोड़ प्रभु की सेवा में वन को जाओ।
मैं आपको नहीं रोकूँगीं। मेरे कारण आपकी सेवा में कोई बाधा न आये, इसलिये साथ जाने की जिद्द भी नहीं करूंगी।”

लक्ष्मण जी को कहने में संकोच हो रहा था।
परन्तु उनके कुछ कहने से पहले ही उर्मिला जी ने उन्हें संकोच से बाहर निकाल दिया।
वास्तव में यहीं पत्नी का धर्म है। पति संकोच में पड़े,
उससे पहले ही पत्नी उसके मन की बात जानकर उसे संकोच से बाहर कर दे!

लक्ष्मण जी चले गये परन्तु 14 वर्ष तक उर्मिला ने एक तपस्विनी की भांति कठोर तप किया।
वन में भैया-भाभी की सेवा में लक्ष्मण जी कभी सोये नहीं परन्तु उर्मिला ने भी अपने महलों के द्वार कभी बंद नहीं किये और सारी रात जाग जागकर उस दीपक की लौ को बुझने नहीं दिया।

मेघनाथ से युद्ध करते हुए जब लक्ष्मण को शक्ति लग जाती है और हनुमान जी उनके लिये संजीवनी का पहाड़ लेके लौट रहे होते हैं, तो बीच में अयोध्या में भरत जी उन्हें राक्षस समझकर बाण मारते हैं और हनुमान जी गिर जाते हैं।
तब हनुमान जी सारा वृत्तांत सुनाते हैं कि सीता जी को रावण ले गया, लक्ष्मण जी मूर्छित हैं।

यह सुनते ही कौशल्या जी कहती हैं कि राम को कहना कि लक्ष्मण के बिना अयोध्या में पैर भी मत रखना। राम वन में ही रहे।
माता सुमित्रा कहती हैं कि राम से कहना कि कोई बात नहीं। अभी शत्रुघ्न है।
मैं उसे भेज दूंगी। मेरे दोनों पुत्र राम सेवा के लिये ही तो जन्मे हैं। माताओं का प्रेम देखकर हनुमान जी की आँखों से अश्रुधारा बह रही थी। परन्तु जब उन्होंने उर्मिला जी को देखा तो सोचने लगे कि यह क्यों एकदम शांत और प्रसन्न खड़ी हैं?

क्या इन्हें अपनी पति के प्राणों की कोई चिंता नहीं?

हनुमान जी पूछते हैं- देवी!
आपकी प्रसन्नता का कारण क्या है? आपके पति के प्राण संकट में हैं। सूर्य उदित होते ही सूर्य कुल का दीपक बुझ जायेगा।
उर्मिला जी का उत्तर सुनकर तीनों लोकों का कोई भी प्राणी उनकी वंदना किये बिना नहीं रह पाएगा।
वे बोलीं- “
मेरा दीपक संकट में नहीं है, वो बुझ ही नहीं सकता। रही सूर्योदय की बात तो आप चाहें तो कुछ दिन अयोध्या में विश्राम कर लीजिये, क्योंकि आपके वहां पहुंचे बिना सूर्य उदित हो ही नहीं सकता।
आपने कहा कि प्रभु श्रीराम मेरे पति को अपनी गोद में लेकर बैठे हैं।
जो योगेश्वर राम की गोदी में लेटा हो, काल उसे छू भी नहीं सकता।
यह तो वो दोनों लीला कर रहे हैं।
मेरे पति जब से वन गये हैं,
तबसे सोये नहीं हैं।
उन्होंने न सोने का प्रण लिया था। इसलिए वे थोड़ी देर विश्राम कर रहे हैं। और जब भगवान् की गोद मिल गयी तो थोड़ा विश्राम ज्यादा हो गया। वे उठ जायेंगे। और शक्ति मेरे पति को लगी ही नहीं शक्ति तो राम जी को लगी है।
मेरे पति की हर श्वास में राम हैं, हर धड़कन में राम, उनके रोम रोम में राम हैं, उनके खून की बूंद बूंद में राम हैं, और जब उनके शरीर और आत्मा में हैं ही सिर्फ राम, तो शक्ति राम जी को ही लगी, दर्द राम जी को ही हो रहा।
इसलिये हनुमान जी आप निश्चिन्त होके जाएँ। सूर्य उदित नहीं होगा।”

राम राज्य की नींव जनक की बेटियां ही थीं…
कभी सीता तो कभी उर्मिला। भगवान् राम ने तो केवल राम राज्य का कलश स्थापित किया
परन्तु वास्तव में राम राज्य इन सबके प्रेम, त्याग, समर्पण , बलिदान से ही आया।

बसंत पंचमी के टोटके

माँ सरस्वती

वसंत पंचमी माघ महीने की शुक्लपक्ष की पंचमी के दिन मनाई जाती है । वसंत पंचमी के दिन माँ सरस्वती की पूजा करने सरस्वती माँ का आशिर्वाद मिलता है। इस दिन लोग माँ से विद्या और वाकपटुता की प्रार्थना करते है।
बसन्त पंचमी बसंत ऋतु में मनाई जाती है , बसंत प्रेम का हर्ष उल्लास का समय है वस्तुतः इसे भारत का वैलेंटाइन डे भी कहते है। यह दिन प्रेम, दोस्ती के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है । इस दिन माँ सरस्वती के साथ कामदेव और रति की भी पूजा करने से प्रेम में सफलता मिलती है, सच्चा प्यार मिलता है दाम्पत्य जीवन में प्रेम बढ़ता है , दामपत्य जीवन लम्बा और सुखमय होता है ।
वसंत पंचमी पर देवी सरस्वती के विशेष पूजन से कटु वाणी से मुक्ति मिलती है, अध्ययन में सफलता मिलती है व असाध्य कार्य पूरे होते हैं। `
यहाँ पर हम आपको बसंत पंचमी के उपाय बता रहे है जिसको करने से अवश्य ही लाभ मिलेगा । जानिए बसन्त पंचमी के उपाय, बसंत पंचमी के टोटके
इस दिन सभी विद्यार्थियों को माँ सरस्वती की पूजा अवश्य ही करनी चाहिए । शास्त्रो के अनुसार सरस्वती देवी की महिमा से, इनकी कृपा से मंदबुद्धि भी महा विद्धान बन सकता है। इसीलिए बसंत पंचमी के दिन प्रत्येक विद्यार्थी के लिए सरस्वती पूजा अति शुभ मानी गयी है।
बसंत पंचमी के दिन सरस्वती माता के चरणों पर गुलाल चढ़ाकर देवी सरस्वती को श्वेत वस्त्र पहनाएं / अर्पण करें। इस दिन पीले फल, मालपुए और खीर का भोग लगाने से माता सरस्वती शीघ्र प्रसन्न होती है ।
बसंत पंचमी के दिन “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महा सरस्वत्यै नम:” ॥ अथवा
“ॐ सरस्वत्यै नम:”॥ मन्त्र की एक माला का जाप अवश्य ही करे । इससे बुद्दि का विकास होता है, ज्ञान, यश की प्राप्ति होती है ।
बसंत पंचमी के दिन माँ सरस्वती को बेसन के लड्डू अथवा बेसन की बर्फी, बूंदी के लड्डू अथवा बूंदी का प्रशाद चढ़ाएं ।
बसंत पंचमी के दिन अध्ययन में श्रेष्ठ सफलता प्राप्ति के लिए देवी सरस्वती पर हल्दी चढ़ाकर उस हल्दी से अपनी पुस्तक पर “ऐं” लिखें।
बसंत पंचमी के दिन कटु वाणी से मुक्ति हेतु, वाणी में मधुरता लाने के लिए देवी सरस्वती पर चढ़ी शहद को नित्य प्रात: सबसे पहले थोड़ा से अवश्य चखे ।
बसंत पंचमी के दिन किसी भी असाध्य कार्य पूरा करने हेतु देवी सरस्वती पर मोर पंख चढ़ा कर उस मोरपंख को तिजोरी में छुपाकर रखें।
बसन पंचमी के दिन से अपने मस्तक पर केसर अथवा पीले चंदन का तिलक करें, इससे ज्ञान और धन में वृद्धि होती है।
बसन्त पंचमी के दिन “मोर का एक पंख” अपने पास रखे इस दिन इसे अपने पास रखने से स्कूल कॉलेज में उस विद्यार्थी का मान सम्मान बढ़ता है।
बसन्त पंचमी के दिन “सिद्ध अष्ट सरस्वती यंत्र” गले में धारण करने से विद्यार्थी विद्या – बुद्धि में अत्यंत तेजस्वी हो जाता है।
बसंत पंचमी के दिन गहने, कपड़े, वाहन आदि की खरीदारी आदि भी अति शुभ है । इस दिन यथा संभव ब्राह्मण को दान आदि भी अवश्य ही करना चाहिए ।
आज के दिन मंदिरों में सरस्वती देवी के साथ साथ राधा कृष्ण एवं विष्णु लक्ष्मी के दर्शन भी अति फलदायी माने गए है ।
प्रेम में सफलता के लिए बसंत पँचमी के दिन किसी भी कृष्ण मंदिर में बांसुरी और पान अर्पण करें ।
आज के दिन किसी भी धार्मिक स्थल में अपने प्रेम की सफलता के लिए फूल एवं इत्र चढ़ाएँ ।
भगवान विष्णु और लक्ष्मी के मंदिर या उनकी मूर्ति या फोटो के सम्मुख पीला प्रसाद चढ़ायें और ऐसा इसके बाद से कम से कम 7 गुरुवार तक लगातार करें ।
आज के दिन अपने प्रियतम को लाल,गुलाबी,पीले और सुनहरे पीले रंग की वस्तुओं को उपहार में देना अत्यंत श्रेष्ठ माना गया है।
आज के दिन पीले वस्त्र धारण करें, कन्याएँ पीली चूड़ियाँ पहने और विवाहित स्त्रियाँ भी लाल एवं पीली चूड़ियाँ धारण करें ।
आज पीला वस्त्र, पीले आभूषण अति शुभ माने जाते है इसलिए सभी लोग इन्हे अवश्य ही धारण करें , स्त्रियाँ – कन्याएँ , आभूषणो की जगह पीले फूल, पीली आर्टिफिशियल जवैलरी भी धारण कर सकती है।
आज के दिन आप अपने प्रियतम को पीले फूल,लाल गुलाब ( ध्यान रहे गुलाब में काँटे नहीं हो ) कोई अछी चॉकलेट या कोई भी सुगन्धित इत्र भेटं करें तो अति उत्तम है ।
बसंत पंचमी में आप अपने व्यापारिक साझेदार / पार्टनर को कलम, फूलों का गुलदस्ता, अच्छा इत्र अथवा खूबसूरत फोटो फ्रेम जिसमें आप दोनों का हँसता-मुस्कुराता फोटो लगा हो उपहार में दें आप लोगो की साझेदारी और भी प्रगाढ़ रहेगी ।
आज के दिन खाने में पीली वस्तुओं का सेवन करें । आज मेवे युक्त पीले मीठे चावल का भगवान को मंदिर में भोग लगाकर उसे खाएं और अपने प्रियजनों को भी खिलाएं।
बसंत पँचमी के दिन आप अपने सभी बड़े, परिचितों, और गुरुओं के प्रति सम्मान अवश्य ही व्यक्त करें । उनके पास जाकर अभिवादन करें अगर हो सके तो उन्हें कोई उपहार या फूल ही दें, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करें । यह सच्चे मन से बताएँ की वह आपके लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है । इससे माँ सरस्वती की कृपा मिलती है यश कीर्ति बढ़ती है ।

अपनी राशियों के आधार पर करें! माँ सरस्वती की पूजा

वसंत पंचमी के दिन ज्ञान की देवी मां सरस्वती की पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, वसंत पंचमी के दिन ही सरस्वती देवी का जन्म हुआ था। उन्होंने अपनी वीणा से प्राणियों में वाणी प्रदान की। वसंत पंचमी के दिन हम मां सरस्वती की पूजा कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं। यदि आप पूजा के समय अपनी राशि के अनुसार मंत्रों का जाप करते हैं, तो मां सरस्वती प्रसन्न होंगी और शिक्षा के क्षेत्र में आपको अपार सफलताएं प्राप्त होंगी। साथ ही आप में ज्ञान की वृद्धि होगी।


राशि अनुसार सरस्वती मंत्र—-
मेष: इस राशि के जातकों को ओम वाग्देवी वागीश्वरी नम: मंत्र का जाप करना चाहिए। यह आपकी शिक्षा के लिए उत्तम रहेगा।
वृष: वृष राशि वालों को शिक्षा के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए ओम कौमुदी ज्ञानदायनी नम: सरस्वती मंत्र का जाप करना चाहिए।


मिथुन: ऐसे जातकों को वसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए ओम मां भुवनेश्वरी सरस्वत्यै नम: मंत्र का पाठ करना चाहिए।


कर्क: इस राशि के लोगों के लिए मां सरस्वती का मंत्र ओम मां चन्द्रिका दैव्यै नम: का जाप करना सर्वोत्त होगा।


सिंह: सिंह राशि के जातक अपने करियर को बेहतर बनाना चाहते हैं तो वसंत पंचमी के दिन उनके मां सरस्वती के ओम मां कमलहास विकासिनी नम: मंत्र का पाठ करना चाहिए।


कन्या: इस राशि के व्यक्तियों को वसंत पंचमी के दिन ओम मां प्रणवनाद विकासिनी नम: मंत्र का जाप करना चाहिए। उनको मां सरस्वती की कृपा प्राप्त होगी।


तुला: तुला राशि के जातकों को वसंत पंचमी के दिन ओम मां हंससुवाहिनी नम: मंत्र का जाप करना चाहिए।


वृश्चिक: इस राशि के लोगों को ओम शारदे देव्यै चंद्रकांति नम: मंत्र का जाप करने से मां सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है।


धनु: इस राशि के जातकों को वसंत पंचमी के दिन जाप करने के लिए सरस्वती मंत्र है: ओम जगती वीणावादिनी नम:।


मकर: मकर राशि के लोगों को आज के दिन ओम बुद्धिदात्री सुधामूर्ति नम: सरस्वती मंत्र का पाठ करना चाहिए।


कुंभ: इस राशि के व्यक्तियों को वसंत पंचमी के दिन ओम ज्ञानप्रकाशिनी ब्रह्मचारिणी नम: सरस्वती मंत्र का पाठ करना चाहिए। इससे आपके ज्ञान में वृद्धि होगी और शिक्षा में सफलता मिलेगी।


मीन: इस राशि के जातकों को ओम वरदायिनी मां भारती नम: सरस्वती मंत्र का जाप करना चाहिए। मां सरस्वती की कृपा से शिक्षा के क्षेत्र में आपको सफलता प्राप्त होगी।

बसंत पंचमी पर करें विशेष उपाय होगा लाभ


बसंत पंचमी का दिन मां सरस्वती को समर्पित होता है। इस दिन उनकी पूजा करने एवं विशेष मंत्रों का जाप करने से विद्या और बुद्धि की प्राप्ति होती है। देवी मां को प्रसन्न करने के लिए ज्योतिष शास्त्र में दिए गए उपाय कारगर साबित हो सकते हैं।


1- जिन बच्चों का मन पढ़ाई में नहीं लगता है उन्हें बसंत पंचमी के दिन “ऊं ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वत्यै नम:” अथवा “ऊं ऐं सरस्वत्यै नमः” मंत्र का जाप स्वयं करना या ब्राम्हण द्वारा कराना चाहिए। इससे बच्चे का दिमाग कम्प्यूटर से भी ज्यादा तेज हो जायेगा।


2 – विद्या और बुद्धि की प्राप्ति के लिए बसंत पंचमी के दिन अपने घर के पूजा स्थान पर सरस्वती यंत्र की स्थापना कर नित्य पूजन करें। तथा रोजाना पढ़ाई करने से पहले इस यंत्र को नमस्कार कर लें।


3 – अगर आपकी कोई मनोकामना पूर्ण नहीं हो पा रही है तो बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती के सिर पर मोरपंख रख दें। पूजन के अगले दिन इस मोरपंख को संभालकर अपने पास रख लें। इससे आपका काम बन जायेगा।


4 – बसंत पंचमी के दिन सुबह हल्दी और सरसों का तेल मिलाकर नहाने से देवी मां प्रसन्न होती हैं। इससे आपका भाग्य भी मजबूत होगा।


5 – इस दिन पीले वस्त्र पहनें एवं भोजन में पीली चीजों का सेवन करें। बसंत पंचमी को तहरी खाने का विशेष प्रचलन है।


6 – बसंत पंचमी को मां सरस्वती के अलावा श्रीकृष्ण की पूजा से भी लाभ मिलता है। इसलिए कृष्ण भगवान के मंदिर में बसंत पंचमी को पान और बांसुरी चढ़ाने से आपको मनचाहा लाभ मिलेगा।


7- बसंत पंचमी पर मां सरस्वती को पीले वस्त्र पहनाएं एवं पीले पुष्प अर्पित करें। साथ ही बेसन का लड्डू चढ़ाएं। इससे देवी मां प्रसन्न होंगी।


8 – इस दिन ब्राम्हणों को पुस्तक , पीला वस्त्र, स्वर्ण एवं रजत दान करने से ज्ञान की वृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। साथ ही पीले रंग का अनाज दान करने से घर में अन्न और धन की वृद्धि होती है।


9 – जो लोग तुतलाते या हकलाते हैं उन्हें बसंत पंचमी को देवी मां का स्वयं या ब्राम्हण द्वारा पूजन कराके शहद से सरस्वती मंत्र या स्त्रोत द्वारा अभिषेक कराना चाहिए। और प्रतिदिन स्नान के बाद इस शहद को प्रसाद रूप में 41 दिन तक ग्रहण करना चाहिए। इससे जल्द ही समस्या दूर हो जाएगी।


10 – मां सरस्वती की कृपा पाने के लिए उनके किसी भी सिद्ध मंत्र की एक माला का जाप करें। साथ ही सरस्वती जी को मोरपंखी चढ़ाएं। इससे बुद्धि का विकास होगा।

मोह-विसर्जन का सुख


किसी नगर में एक आदमी रहता था। वह पढ़ा-लिखा और चतुर था।

एक बार उसमें धन कमाने की लालसा पैदा हुई। उसके लिए उसने प्रयत्न आरंभ किया। देखते-देखते उसके पास लाखों की संपदा हो गई…

पर उसके पास ज्यों-ज्यों पैसा आता गया, उसका लोभ बढ़ता गया। साथ ही धन का ढेर भी ऊंचा होता गया।

वह बड़ा खुश था। पहले तो उसके पास एक फूटी कौड़ी भी नहीं थी और अब उसकी तिजोरियां भरी थीं और एक-से-एक बढ़िया उसके मकान खड़े थे।

उसे सब प्रकार की सुविधाएं थीं। धन के बल पर वह जो चाहे प्राप्त कर सकता था, लेकिन एक चीज थी जिसका उसके जीवन में बड़ा अभाव था.. उसके कोई लड़का नहीं था।

धीरे-धीरे उसकी किशोरावस्था बीतने लगी, पर धन संपत्ति के प्रति उसकी मूर्च्छा में कोई अंतर नहीं पड़ा।

अचानक एक दिन, रात को बिस्तर पर पड़े-पड़े उसने देखा कि सामने कोई अस्पष्ट-सी आकृति खड़ी है।

उसने घबराकर पूछा… कौन..?

उत्तर मिला… ‘मृत्यु’ … इतना कहकर वह आकृति अंतर्धान हो गई।

आदमी बेहाल हो गया। मारे बेचैनी के उसे नींद नहीं आई।

इतना ही नहीं, उस दिन से जब भी वह एकांत में होता, मौत उसके सामने आ जाती, उसका सारा सुख मिट्टी हो गया।

मन चिंताओं से भर गया… वह हर घड़ी भयभीत रहने लगा।

कुछ ही दिनों में उसके चेहरे का रंग बदल गया। वह वैद्य-डॉक्टरों के पास गया, लेकिन उससे कोई लाभ नहीं हुआ।

ज्यों-ज्यों दवा की, रोग घटने के बजाय बढ़ता ही गया।

लोगों ने उसकी यह दशा देखी तो कहा कि नगर के उत्तरी छोर पर एक साधु रहता है, वह सब प्रकार की व्याधियों को दूर कर देता है।

बड़ी आशा से वह दौड़ता हुआ साधु के पास गया और उसे अपनी सारी दास्तान सुनाई।

अंत में उनके चरण पकड़कर रोते हुए प्रार्थना की… भगवन् मेरा कष्ट दूर करो.. मौत मेरा पीछा नहीं छोड़ती।

साधु ने उसकी सारी बात ध्यान से सुनी और कहा, भले आदमी ! मोह और मृत्यु परम मित्र हैं।

जब तक तुम्हारे पास मोह है, मृत्यु आती ही रहेगी। मृत्यु से छुटकारा तभी मिलेगा जबकि तुम मोह का पल्ला छोड़ोगे।

आदमी ने गिड़गिड़ाकार कहा, महाराज, मैं क्या करूं ? मोह छूटता ही नहीं…

साधु सांत्वना देते हुए बड़े प्यार से बोले, परेशान मत होओ, मैं तुम्हें मोह-विसर्जन का उपाय बताता हूं।

कल से ही तुम एक काम करो.. एक हाथ से लो दूसरे से दो, मुट्ठी मत बांधो। हाथ को खुला रखो.. तुम्हारा रोग तत्काल दूर हो जाएगा।

साधु की बात उसके दिल में घर कर गई। नए जीवन का आरंभ हुआ।

कुछ ही दिन में उसने देखा कि उसका न केवल रोग ही दूर हुआ, बल्कि उसको उस आनंद की उपलब्धि भी हुई जो उसे पहले कभी नहीं मिला था।