हिंदू धर्म में पुराणों का विशेष महत्व है। इन्हीं पुराणों में माता के शक्तिपीठों का भी वर्णन है। पुराणों की ही मानें तो जहां जहां देवी सती के अंग के टुकड़े वस्त्र और आभूषण गिरे वहां वहां मां के शक्तिपीठ बन गए। ये शक्तिपीठ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हैं। देवी भागवत में 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का जिक्र है। वहीं देवी पुराण में 51 शक्तिपीठ बताए गए हैं।
आइए जानें कहांकहां हैं ये शक्तिपीठ
- किरीट शक्तिपीठ
पश्चिम बंगाल के हुगली नदी के तट लालबाग कोट पर स्थित है किरीट शक्तिपीठ, जहां सती माता का किरीट यानी शिराभूषण या मुकुट गिरा था। यहां की शक्ति विमला अथवा भुवनेश्वरी तथा भैरव संवर्त हैं। इस स्थान पर सती के ‘किरीट (शिरोभूषण या मुकुट)’ का निपात हुआ था। कुछ विद्वान मुकुट का निपात कानपुर के मुक्तेश्वरी मंदिर में मानते हैं। - कात्यायनी पीठ
वृन्दावन मथुरा में स्थित है कात्यायनी वृन्दावन शक्तिपीठ जहां सती का केशपाश गिरा था। यहां की शक्ति देवी कात्यायनी हैं। यहाँ माता सती ‘उमा’ तथा भगवन शंकर ‘भूतेश’ के नाम से जाने जाते है। - करवीर शक्तिपीठ
महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित ‘महालक्ष्मी’ अथवा ‘अम्बाईका मंदिर’ ही यह शक्तिपीठ है। यहां माता का त्रिनेत्र गिरा था। यहां की शक्ति ‘महिषामर्दिनी’ तथा भैरव क्रोधशिश हैं। यहां महालक्ष्मी का निज निवास माना जाता है। - श्री पर्वत शक्तिपीठ
यहां की शक्ति श्री सुन्दरी एवं भैरव सुन्दरानन्द हैं। कुछ विद्वान इसे लद्दाख (कश्मीर) में मानते हैं, तो कुछ असम के सिलहट से 4 कि.मी. दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्यकोण) में जौनपुर में मानते हैं। यहाँ सती के ‘दक्षिण तल्प’ (कनपटी) का निपात हुआ था। - विशालाक्षी शक्तिपीठ
उत्तर प्रदेश, वाराणसी के मीरघाट पर स्थित है शक्तिपीठ जहां माता सती के दाहिने कान के मणि गिरे थे। यहां की शक्ति विशालाक्षी तथा भैरव काल भैरव हैं। यहाँ माता सती का ‘कर्णमणि’ गिरी थी। यहाँ माता सती को ‘विशालाक्षी’ तथा भगवान शिव को ‘काल भैरव’ कहते है। - गोदावरी तट शक्तिपीठ
आंध्र प्रदेश के कब्बूर में गोदावरी तट पर स्थित है यह शक्तिपीठ, जहाँ माता का वामगण्ड यानी बायां कपोल गिरा था। यहां की शक्ति विश्वेश्वरी या रुक्मणी तथा भैरव दण्डपाणि हैं। गोदावरी तट शक्तिपीठ आन्ध्र प्रदेश देवालयों के लिए प्रख्यात है। वहाँ शिव, विष्णु, गणेश तथा कार्तिकेय (सुब्रह्मण्यम) आदि की उपासना होती है तथा अनेक पीठ यहाँ पर हैं। यहाँ पर सती के ‘वामगण्ड’ का निपात हुआ था। - शुचींद्रम शक्तिपीठ
तमिलनाडु में कन्याकुमारी के त्रिासागर संगम स्थल पर स्थित है यह शुचींद्रम शक्तिपीठ, जहाँ सती के ऊर्ध्वदंत (मतान्तर से पृष्ठ भागद्ध गिरे थे। यहां की शक्ति नारायणी तथा भैरव संहार या संकूर हैं। यहाँ माता सती के ‘ऊर्ध्वदंत’ गिरे थे। यहाँ माता सती को ‘नारायणी’ और भगवान शंकर को ‘संहार’ या ‘संकूर’ कहते है। तमिलनाडु में तीन महासागर के संगम-स्थल कन्याकुमारी से 13 किमी दूर ‘शुचीन्द्रम’ में स्याणु शिव का मंदिर है। उसी मंदिर में ये शक्तिपीठ है। - पंच सागर शक्तिपीठ
इस शक्तिपीठ का कोई निश्चित स्थान ज्ञात नहीं है लेकिन यहां माता के नीचे के दांत गिरे थे। यहां की शक्ति वाराही तथा भैरव महारुद्र हैं। पंच सागर शक्तिपीठ में सती के ‘अधोदन्त’ गिरे थे। यहाँ सती ‘वाराही’ तथा शिव ‘महारुद्र’ हैं। - ज्वालामुखी शक्तिपीठ
हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा में स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां सती का जिह्वा गिरी थी। यहां की शक्ति सिद्धिदा व भैरव उन्मत्त हैं। यह ज्वालामुखी रोड रेलवे स्टेशन से लगभग 21 किमी दूर बस मार्ग पर स्थित है। यहाँ माता सती ‘सिद्धिदा’ अम्बिका तथा भगवान शिव ‘उन्मत्त’ रूप में विराजित है। मंदिर में आग के रूप में हर समय ज्वाला धधकती रहती है। - हरसिद्धि शक्तिपीठ
(उज्जयिनी शक्तिपीठ) इस शक्तिपीठ की स्थिति को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं। कुछ उज्जैन के निकट शिप्रा नदी के तट पर स्थित भैरवपर्वत को, तो कुछ गुजरात के गिरनार पर्वत के सन्निकट भैरवपर्वत को वास्तविक शक्तिपीठ मानते हैं। अत: दोनों ही स्थानों पर शक्तिपीठ की मान्यता है। उज्जैन के इस स्थान पर सती की कोहनी का पतन हुआ था। अतः यहाँ कोहनी की पूजा होती है। - अट्टहास शक्तिपीठ
अट्टाहास शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के लाबपुर (लामपुर) रेलवे स्टेशन वर्धमान से लगभग 95 किलोमीटर आगे कटवा-अहमदपुर रेलवे लाइन पर है, जहाँ सती का ‘नीचे का ह