फ़रवरी 2021

भोजन के प्रकार

भीष्म पितामह ने अर्जुन को 4 प्रकार से भोजन न करने के लिए बताया था …

पहला भोजन ….
जिस भोजन की थाली को कोई लांघ कर गया हो वह भोजन की थाली नाले में पड़े कीचड़ के समान होती है …!

दूसरा भोजन ….
जिस भोजन की थाली में ठोकर लग गई,पाव लग गया वह भोजन की थाली भिष्टा के समान होता है ….!

तीसरे प्रकार का भोजन ….
जिस भोजन की थाली में बाल पड़ा हो, केश पड़ा हो वह दरिद्रता के समान होता है ….

चौथे नंबर का भोजन ….
अगर पति और पत्नी एक ही थाली में भोजन कर रहे हो तो वह मदिरा के तुल्य होता है …..
और सुनो अर्जुन अगर पत्नी,पति के भोजन करने के बाद थाली में भोजन करती है उसी थाली में भोजन करती है या पति का बचा हुआ खाती है तो उसे चारों धाम के पुण्य का फल प्राप्त होता है ..
अगर दो भाई एक थाली में भोजन कर रहे हो तो वह अमृतपान कहलाता है

चारों धाम के प्रसाद के तुल्य वह भोजन हो जाता है ….

और सुनो अर्जुन …..
बेटी अगर कुमारी हो और अपने पिता के साथ भोजन करती है एक ही थाली में तो उस पिता की कभी अकाल मृत्यु नहीं होती ….
क्योंकि बेटी पिता की अकाल मृत्यु को हर लेती है ! इसीलिए बेटी जब तक कुमारी रहे तो अपने पिता के साथ बैठकर भोजन कर सकती है।

संस्कार दिये बिना सुविधायें देना, पतन का कारण है …

“सुविधाएं अगर आप ने बच्चों को नहीं दिए तो हो सकता है वह थोड़ी देर के लिए रोए …
पर संस्कार नहीं दिए तो वे जीवन भर रोएंगे।

क्या है रामायण ?

छोटा सा वृतांत है

एक रात की बात हैं,माता कौशिल्या जी को सोते में अपने महल की छत पर किसी के चलने की आहट सुनाई दी।
नींद खुल गई ।
पूछा कौन हैं ?

मालूम पड़ा श्रुतिकीर्ति जी हैं ।
नीचे बुलाया गया

श्रुतिकीर्ति जी,
जो सबसे छोटी बहु हैं, आईं, चरणों में प्रणाम कर खड़ी रह गईं

माता कौशिल्या जी ने पूछा, श्रुति ! इतनी रात को अकेली छत पर क्या कर रही हो बिटिया ?
क्या नींद नहीं आ रही ?

शत्रुघ्न कहाँ है ?

श्रुतिकीर्ति की आँखें भर आईं, माँ की छाती से चिपटी,
गोद में सिमट गईं, बोलीं, माँ उन्हें तो देखे हुए तेरह वर्ष हो गए ।

उफ !
कौशल्या जी का ह्रदय काँप कर झटपटा गया ।

तुरंत आवाज लगी, सेवक दौड़े आए ।
आधी रात ही पालकी तैयार हुई, आज शत्रुघ्न जी की खोज होगी,
माँ चली ।

आपको मालूम है शत्रुघ्न जी कहाँ मिले ?

अयोध्या जी के जिस दरवाजे के बाहर भरत जी नंदिग्राम में तपस्वी होकर रहते हैं, उसी दरवाजे के भीतर एक पत्थर की शिला हैं, उसी शिला पर, अपनी बाँह का तकिया बनाकर लेटे मिले ।

माँ सिराहने बैठ गईं,
बालों में हाथ फिराया तो शत्रुघ्न जी नेआँखें खोलीं,

माँ !

उठे, चरणों में गिरे, माँ ! आपने क्यों कष्ट किया ?
मुझे बुलवा लिया होता ।

माँ ने कहा,
शत्रुघ्न ! यहाँ क्यों ?”

शत्रुघ्न जी की रुलाई फूट पड़ी, बोले- माँ ! भैया राम जी पिताजी की आज्ञा से वन चले गए,
भैया लक्ष्मण जी उनके पीछे चले गए, भैया भरत जी भी नंदिग्राम में हैं, क्या ये महल, ये रथ, ये राजसी वस्त्र, विधाता ने मेरे ही लिए बनाए हैं ?

माता कौशल्या जी निरुत्तर रह गईं ।

देखो क्या है ये रामकथा…

यह भोग की नहीं….
त्याग की कथा हैं, यहाँ त्याग की प्रतियोगिता चल रही हैं और सभी प्रथम हैं, कोई पीछे नहीं रहा

चारो भाइयों का प्रेम और त्याग एक दूसरे के प्रति अद्भुत-अभिनव और अलौकिक हैं ।

रामायण जीवन जीने की सबसे उत्तम शिक्षा देती हैं ।

भगवान राम को 14 वर्ष का वनवास हुआ तो उनकी पत्नी माँ सीता ने भी सहर्ष वनवास स्वीकार कर लिया।
परन्तु बचपन से ही बड़े भाई की सेवा मे रहने वाले लक्ष्मण जी कैसे राम जी से दूर हो जाते!
माता सुमित्रा से तो उन्होंने आज्ञा ले ली थी, वन जाने की..
परन्तु जब पत्नी उर्मिला के कक्ष की ओर बढ़ रहे थे तो सोच रहे थे कि माँ ने तो आज्ञा दे दी,
परन्तु उर्मिला को कैसे समझाऊंगा!! क्या कहूंगा!

यहीं सोच विचार करके लक्ष्मण जी जैसे ही अपने कक्ष में पहुंचे तो देखा कि उर्मिला जी आरती का थाल लेके खड़ी थीं और बोलीं- “आप मेरी चिंता छोड़ प्रभु की सेवा में वन को जाओ।
मैं आपको नहीं रोकूँगीं। मेरे कारण आपकी सेवा में कोई बाधा न आये, इसलिये साथ जाने की जिद्द भी नहीं करूंगी।”

लक्ष्मण जी को कहने में संकोच हो रहा था।
परन्तु उनके कुछ कहने से पहले ही उर्मिला जी ने उन्हें संकोच से बाहर निकाल दिया।
वास्तव में यहीं पत्नी का धर्म है। पति संकोच में पड़े,
उससे पहले ही पत्नी उसके मन की बात जानकर उसे संकोच से बाहर कर दे!

लक्ष्मण जी चले गये परन्तु 14 वर्ष तक उर्मिला ने एक तपस्विनी की भांति कठोर तप किया।
वन में भैया-भाभी की सेवा में लक्ष्मण जी कभी सोये नहीं परन्तु उर्मिला ने भी अपने महलों के द्वार कभी बंद नहीं किये और सारी रात जाग जागकर उस दीपक की लौ को बुझने नहीं दिया।

मेघनाथ से युद्ध करते हुए जब लक्ष्मण को शक्ति लग जाती है और हनुमान जी उनके लिये संजीवनी का पहाड़ लेके लौट रहे होते हैं, तो बीच में अयोध्या में भरत जी उन्हें राक्षस समझकर बाण मारते हैं और हनुमान जी गिर जाते हैं।
तब हनुमान जी सारा वृत्तांत सुनाते हैं कि सीता जी को रावण ले गया, लक्ष्मण जी मूर्छित हैं।

यह सुनते ही कौशल्या जी कहती हैं कि राम को कहना कि लक्ष्मण के बिना अयोध्या में पैर भी मत रखना। राम वन में ही रहे।
माता सुमित्रा कहती हैं कि राम से कहना कि कोई बात नहीं। अभी शत्रुघ्न है।
मैं उसे भेज दूंगी। मेरे दोनों पुत्र राम सेवा के लिये ही तो जन्मे हैं। माताओं का प्रेम देखकर हनुमान जी की आँखों से अश्रुधारा बह रही थी। परन्तु जब उन्होंने उर्मिला जी को देखा तो सोचने लगे कि यह क्यों एकदम शांत और प्रसन्न खड़ी हैं?

क्या इन्हें अपनी पति के प्राणों की कोई चिंता नहीं?

हनुमान जी पूछते हैं- देवी!
आपकी प्रसन्नता का कारण क्या है? आपके पति के प्राण संकट में हैं। सूर्य उदित होते ही सूर्य कुल का दीपक बुझ जायेगा।
उर्मिला जी का उत्तर सुनकर तीनों लोकों का कोई भी प्राणी उनकी वंदना किये बिना नहीं रह पाएगा।
वे बोलीं- “
मेरा दीपक संकट में नहीं है, वो बुझ ही नहीं सकता। रही सूर्योदय की बात तो आप चाहें तो कुछ दिन अयोध्या में विश्राम कर लीजिये, क्योंकि आपके वहां पहुंचे बिना सूर्य उदित हो ही नहीं सकता।
आपने कहा कि प्रभु श्रीराम मेरे पति को अपनी गोद में लेकर बैठे हैं।
जो योगेश्वर राम की गोदी में लेटा हो, काल उसे छू भी नहीं सकता।
यह तो वो दोनों लीला कर रहे हैं।
मेरे पति जब से वन गये हैं,
तबसे सोये नहीं हैं।
उन्होंने न सोने का प्रण लिया था। इसलिए वे थोड़ी देर विश्राम कर रहे हैं। और जब भगवान् की गोद मिल गयी तो थोड़ा विश्राम ज्यादा हो गया। वे उठ जायेंगे। और शक्ति मेरे पति को लगी ही नहीं शक्ति तो राम जी को लगी है।
मेरे पति की हर श्वास में राम हैं, हर धड़कन में राम, उनके रोम रोम में राम हैं, उनके खून की बूंद बूंद में राम हैं, और जब उनके शरीर और आत्मा में हैं ही सिर्फ राम, तो शक्ति राम जी को ही लगी, दर्द राम जी को ही हो रहा।
इसलिये हनुमान जी आप निश्चिन्त होके जाएँ। सूर्य उदित नहीं होगा।”

राम राज्य की नींव जनक की बेटियां ही थीं…
कभी सीता तो कभी उर्मिला। भगवान् राम ने तो केवल राम राज्य का कलश स्थापित किया
परन्तु वास्तव में राम राज्य इन सबके प्रेम, त्याग, समर्पण , बलिदान से ही आया।

बसंत पंचमी के टोटके

माँ सरस्वती

वसंत पंचमी माघ महीने की शुक्लपक्ष की पंचमी के दिन मनाई जाती है । वसंत पंचमी के दिन माँ सरस्वती की पूजा करने सरस्वती माँ का आशिर्वाद मिलता है। इस दिन लोग माँ से विद्या और वाकपटुता की प्रार्थना करते है।
बसन्त पंचमी बसंत ऋतु में मनाई जाती है , बसंत प्रेम का हर्ष उल्लास का समय है वस्तुतः इसे भारत का वैलेंटाइन डे भी कहते है। यह दिन प्रेम, दोस्ती के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है । इस दिन माँ सरस्वती के साथ कामदेव और रति की भी पूजा करने से प्रेम में सफलता मिलती है, सच्चा प्यार मिलता है दाम्पत्य जीवन में प्रेम बढ़ता है , दामपत्य जीवन लम्बा और सुखमय होता है ।
वसंत पंचमी पर देवी सरस्वती के विशेष पूजन से कटु वाणी से मुक्ति मिलती है, अध्ययन में सफलता मिलती है व असाध्य कार्य पूरे होते हैं। `
यहाँ पर हम आपको बसंत पंचमी के उपाय बता रहे है जिसको करने से अवश्य ही लाभ मिलेगा । जानिए बसन्त पंचमी के उपाय, बसंत पंचमी के टोटके
इस दिन सभी विद्यार्थियों को माँ सरस्वती की पूजा अवश्य ही करनी चाहिए । शास्त्रो के अनुसार सरस्वती देवी की महिमा से, इनकी कृपा से मंदबुद्धि भी महा विद्धान बन सकता है। इसीलिए बसंत पंचमी के दिन प्रत्येक विद्यार्थी के लिए सरस्वती पूजा अति शुभ मानी गयी है।
बसंत पंचमी के दिन सरस्वती माता के चरणों पर गुलाल चढ़ाकर देवी सरस्वती को श्वेत वस्त्र पहनाएं / अर्पण करें। इस दिन पीले फल, मालपुए और खीर का भोग लगाने से माता सरस्वती शीघ्र प्रसन्न होती है ।
बसंत पंचमी के दिन “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महा सरस्वत्यै नम:” ॥ अथवा
“ॐ सरस्वत्यै नम:”॥ मन्त्र की एक माला का जाप अवश्य ही करे । इससे बुद्दि का विकास होता है, ज्ञान, यश की प्राप्ति होती है ।
बसंत पंचमी के दिन माँ सरस्वती को बेसन के लड्डू अथवा बेसन की बर्फी, बूंदी के लड्डू अथवा बूंदी का प्रशाद चढ़ाएं ।
बसंत पंचमी के दिन अध्ययन में श्रेष्ठ सफलता प्राप्ति के लिए देवी सरस्वती पर हल्दी चढ़ाकर उस हल्दी से अपनी पुस्तक पर “ऐं” लिखें।
बसंत पंचमी के दिन कटु वाणी से मुक्ति हेतु, वाणी में मधुरता लाने के लिए देवी सरस्वती पर चढ़ी शहद को नित्य प्रात: सबसे पहले थोड़ा से अवश्य चखे ।
बसंत पंचमी के दिन किसी भी असाध्य कार्य पूरा करने हेतु देवी सरस्वती पर मोर पंख चढ़ा कर उस मोरपंख को तिजोरी में छुपाकर रखें।
बसन पंचमी के दिन से अपने मस्तक पर केसर अथवा पीले चंदन का तिलक करें, इससे ज्ञान और धन में वृद्धि होती है।
बसन्त पंचमी के दिन “मोर का एक पंख” अपने पास रखे इस दिन इसे अपने पास रखने से स्कूल कॉलेज में उस विद्यार्थी का मान सम्मान बढ़ता है।
बसन्त पंचमी के दिन “सिद्ध अष्ट सरस्वती यंत्र” गले में धारण करने से विद्यार्थी विद्या – बुद्धि में अत्यंत तेजस्वी हो जाता है।
बसंत पंचमी के दिन गहने, कपड़े, वाहन आदि की खरीदारी आदि भी अति शुभ है । इस दिन यथा संभव ब्राह्मण को दान आदि भी अवश्य ही करना चाहिए ।
आज के दिन मंदिरों में सरस्वती देवी के साथ साथ राधा कृष्ण एवं विष्णु लक्ष्मी के दर्शन भी अति फलदायी माने गए है ।
प्रेम में सफलता के लिए बसंत पँचमी के दिन किसी भी कृष्ण मंदिर में बांसुरी और पान अर्पण करें ।
आज के दिन किसी भी धार्मिक स्थल में अपने प्रेम की सफलता के लिए फूल एवं इत्र चढ़ाएँ ।
भगवान विष्णु और लक्ष्मी के मंदिर या उनकी मूर्ति या फोटो के सम्मुख पीला प्रसाद चढ़ायें और ऐसा इसके बाद से कम से कम 7 गुरुवार तक लगातार करें ।
आज के दिन अपने प्रियतम को लाल,गुलाबी,पीले और सुनहरे पीले रंग की वस्तुओं को उपहार में देना अत्यंत श्रेष्ठ माना गया है।
आज के दिन पीले वस्त्र धारण करें, कन्याएँ पीली चूड़ियाँ पहने और विवाहित स्त्रियाँ भी लाल एवं पीली चूड़ियाँ धारण करें ।
आज पीला वस्त्र, पीले आभूषण अति शुभ माने जाते है इसलिए सभी लोग इन्हे अवश्य ही धारण करें , स्त्रियाँ – कन्याएँ , आभूषणो की जगह पीले फूल, पीली आर्टिफिशियल जवैलरी भी धारण कर सकती है।
आज के दिन आप अपने प्रियतम को पीले फूल,लाल गुलाब ( ध्यान रहे गुलाब में काँटे नहीं हो ) कोई अछी चॉकलेट या कोई भी सुगन्धित इत्र भेटं करें तो अति उत्तम है ।
बसंत पंचमी में आप अपने व्यापारिक साझेदार / पार्टनर को कलम, फूलों का गुलदस्ता, अच्छा इत्र अथवा खूबसूरत फोटो फ्रेम जिसमें आप दोनों का हँसता-मुस्कुराता फोटो लगा हो उपहार में दें आप लोगो की साझेदारी और भी प्रगाढ़ रहेगी ।
आज के दिन खाने में पीली वस्तुओं का सेवन करें । आज मेवे युक्त पीले मीठे चावल का भगवान को मंदिर में भोग लगाकर उसे खाएं और अपने प्रियजनों को भी खिलाएं।
बसंत पँचमी के दिन आप अपने सभी बड़े, परिचितों, और गुरुओं के प्रति सम्मान अवश्य ही व्यक्त करें । उनके पास जाकर अभिवादन करें अगर हो सके तो उन्हें कोई उपहार या फूल ही दें, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करें । यह सच्चे मन से बताएँ की वह आपके लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है । इससे माँ सरस्वती की कृपा मिलती है यश कीर्ति बढ़ती है ।

अपनी राशियों के आधार पर करें! माँ सरस्वती की पूजा

वसंत पंचमी के दिन ज्ञान की देवी मां सरस्वती की पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, वसंत पंचमी के दिन ही सरस्वती देवी का जन्म हुआ था। उन्होंने अपनी वीणा से प्राणियों में वाणी प्रदान की। वसंत पंचमी के दिन हम मां सरस्वती की पूजा कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं। यदि आप पूजा के समय अपनी राशि के अनुसार मंत्रों का जाप करते हैं, तो मां सरस्वती प्रसन्न होंगी और शिक्षा के क्षेत्र में आपको अपार सफलताएं प्राप्त होंगी। साथ ही आप में ज्ञान की वृद्धि होगी।


राशि अनुसार सरस्वती मंत्र—-
मेष: इस राशि के जातकों को ओम वाग्देवी वागीश्वरी नम: मंत्र का जाप करना चाहिए। यह आपकी शिक्षा के लिए उत्तम रहेगा।
वृष: वृष राशि वालों को शिक्षा के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए ओम कौमुदी ज्ञानदायनी नम: सरस्वती मंत्र का जाप करना चाहिए।


मिथुन: ऐसे जातकों को वसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए ओम मां भुवनेश्वरी सरस्वत्यै नम: मंत्र का पाठ करना चाहिए।


कर्क: इस राशि के लोगों के लिए मां सरस्वती का मंत्र ओम मां चन्द्रिका दैव्यै नम: का जाप करना सर्वोत्त होगा।


सिंह: सिंह राशि के जातक अपने करियर को बेहतर बनाना चाहते हैं तो वसंत पंचमी के दिन उनके मां सरस्वती के ओम मां कमलहास विकासिनी नम: मंत्र का पाठ करना चाहिए।


कन्या: इस राशि के व्यक्तियों को वसंत पंचमी के दिन ओम मां प्रणवनाद विकासिनी नम: मंत्र का जाप करना चाहिए। उनको मां सरस्वती की कृपा प्राप्त होगी।


तुला: तुला राशि के जातकों को वसंत पंचमी के दिन ओम मां हंससुवाहिनी नम: मंत्र का जाप करना चाहिए।


वृश्चिक: इस राशि के लोगों को ओम शारदे देव्यै चंद्रकांति नम: मंत्र का जाप करने से मां सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है।


धनु: इस राशि के जातकों को वसंत पंचमी के दिन जाप करने के लिए सरस्वती मंत्र है: ओम जगती वीणावादिनी नम:।


मकर: मकर राशि के लोगों को आज के दिन ओम बुद्धिदात्री सुधामूर्ति नम: सरस्वती मंत्र का पाठ करना चाहिए।


कुंभ: इस राशि के व्यक्तियों को वसंत पंचमी के दिन ओम ज्ञानप्रकाशिनी ब्रह्मचारिणी नम: सरस्वती मंत्र का पाठ करना चाहिए। इससे आपके ज्ञान में वृद्धि होगी और शिक्षा में सफलता मिलेगी।


मीन: इस राशि के जातकों को ओम वरदायिनी मां भारती नम: सरस्वती मंत्र का जाप करना चाहिए। मां सरस्वती की कृपा से शिक्षा के क्षेत्र में आपको सफलता प्राप्त होगी।

बसंत पंचमी पर करें विशेष उपाय होगा लाभ


बसंत पंचमी का दिन मां सरस्वती को समर्पित होता है। इस दिन उनकी पूजा करने एवं विशेष मंत्रों का जाप करने से विद्या और बुद्धि की प्राप्ति होती है। देवी मां को प्रसन्न करने के लिए ज्योतिष शास्त्र में दिए गए उपाय कारगर साबित हो सकते हैं।


1- जिन बच्चों का मन पढ़ाई में नहीं लगता है उन्हें बसंत पंचमी के दिन “ऊं ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वत्यै नम:” अथवा “ऊं ऐं सरस्वत्यै नमः” मंत्र का जाप स्वयं करना या ब्राम्हण द्वारा कराना चाहिए। इससे बच्चे का दिमाग कम्प्यूटर से भी ज्यादा तेज हो जायेगा।


2 – विद्या और बुद्धि की प्राप्ति के लिए बसंत पंचमी के दिन अपने घर के पूजा स्थान पर सरस्वती यंत्र की स्थापना कर नित्य पूजन करें। तथा रोजाना पढ़ाई करने से पहले इस यंत्र को नमस्कार कर लें।


3 – अगर आपकी कोई मनोकामना पूर्ण नहीं हो पा रही है तो बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती के सिर पर मोरपंख रख दें। पूजन के अगले दिन इस मोरपंख को संभालकर अपने पास रख लें। इससे आपका काम बन जायेगा।


4 – बसंत पंचमी के दिन सुबह हल्दी और सरसों का तेल मिलाकर नहाने से देवी मां प्रसन्न होती हैं। इससे आपका भाग्य भी मजबूत होगा।


5 – इस दिन पीले वस्त्र पहनें एवं भोजन में पीली चीजों का सेवन करें। बसंत पंचमी को तहरी खाने का विशेष प्रचलन है।


6 – बसंत पंचमी को मां सरस्वती के अलावा श्रीकृष्ण की पूजा से भी लाभ मिलता है। इसलिए कृष्ण भगवान के मंदिर में बसंत पंचमी को पान और बांसुरी चढ़ाने से आपको मनचाहा लाभ मिलेगा।


7- बसंत पंचमी पर मां सरस्वती को पीले वस्त्र पहनाएं एवं पीले पुष्प अर्पित करें। साथ ही बेसन का लड्डू चढ़ाएं। इससे देवी मां प्रसन्न होंगी।


8 – इस दिन ब्राम्हणों को पुस्तक , पीला वस्त्र, स्वर्ण एवं रजत दान करने से ज्ञान की वृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। साथ ही पीले रंग का अनाज दान करने से घर में अन्न और धन की वृद्धि होती है।


9 – जो लोग तुतलाते या हकलाते हैं उन्हें बसंत पंचमी को देवी मां का स्वयं या ब्राम्हण द्वारा पूजन कराके शहद से सरस्वती मंत्र या स्त्रोत द्वारा अभिषेक कराना चाहिए। और प्रतिदिन स्नान के बाद इस शहद को प्रसाद रूप में 41 दिन तक ग्रहण करना चाहिए। इससे जल्द ही समस्या दूर हो जाएगी।


10 – मां सरस्वती की कृपा पाने के लिए उनके किसी भी सिद्ध मंत्र की एक माला का जाप करें। साथ ही सरस्वती जी को मोरपंखी चढ़ाएं। इससे बुद्धि का विकास होगा।

मोह-विसर्जन का सुख


किसी नगर में एक आदमी रहता था। वह पढ़ा-लिखा और चतुर था।

एक बार उसमें धन कमाने की लालसा पैदा हुई। उसके लिए उसने प्रयत्न आरंभ किया। देखते-देखते उसके पास लाखों की संपदा हो गई…

पर उसके पास ज्यों-ज्यों पैसा आता गया, उसका लोभ बढ़ता गया। साथ ही धन का ढेर भी ऊंचा होता गया।

वह बड़ा खुश था। पहले तो उसके पास एक फूटी कौड़ी भी नहीं थी और अब उसकी तिजोरियां भरी थीं और एक-से-एक बढ़िया उसके मकान खड़े थे।

उसे सब प्रकार की सुविधाएं थीं। धन के बल पर वह जो चाहे प्राप्त कर सकता था, लेकिन एक चीज थी जिसका उसके जीवन में बड़ा अभाव था.. उसके कोई लड़का नहीं था।

धीरे-धीरे उसकी किशोरावस्था बीतने लगी, पर धन संपत्ति के प्रति उसकी मूर्च्छा में कोई अंतर नहीं पड़ा।

अचानक एक दिन, रात को बिस्तर पर पड़े-पड़े उसने देखा कि सामने कोई अस्पष्ट-सी आकृति खड़ी है।

उसने घबराकर पूछा… कौन..?

उत्तर मिला… ‘मृत्यु’ … इतना कहकर वह आकृति अंतर्धान हो गई।

आदमी बेहाल हो गया। मारे बेचैनी के उसे नींद नहीं आई।

इतना ही नहीं, उस दिन से जब भी वह एकांत में होता, मौत उसके सामने आ जाती, उसका सारा सुख मिट्टी हो गया।

मन चिंताओं से भर गया… वह हर घड़ी भयभीत रहने लगा।

कुछ ही दिनों में उसके चेहरे का रंग बदल गया। वह वैद्य-डॉक्टरों के पास गया, लेकिन उससे कोई लाभ नहीं हुआ।

ज्यों-ज्यों दवा की, रोग घटने के बजाय बढ़ता ही गया।

लोगों ने उसकी यह दशा देखी तो कहा कि नगर के उत्तरी छोर पर एक साधु रहता है, वह सब प्रकार की व्याधियों को दूर कर देता है।

बड़ी आशा से वह दौड़ता हुआ साधु के पास गया और उसे अपनी सारी दास्तान सुनाई।

अंत में उनके चरण पकड़कर रोते हुए प्रार्थना की… भगवन् मेरा कष्ट दूर करो.. मौत मेरा पीछा नहीं छोड़ती।

साधु ने उसकी सारी बात ध्यान से सुनी और कहा, भले आदमी ! मोह और मृत्यु परम मित्र हैं।

जब तक तुम्हारे पास मोह है, मृत्यु आती ही रहेगी। मृत्यु से छुटकारा तभी मिलेगा जबकि तुम मोह का पल्ला छोड़ोगे।

आदमी ने गिड़गिड़ाकार कहा, महाराज, मैं क्या करूं ? मोह छूटता ही नहीं…

साधु सांत्वना देते हुए बड़े प्यार से बोले, परेशान मत होओ, मैं तुम्हें मोह-विसर्जन का उपाय बताता हूं।

कल से ही तुम एक काम करो.. एक हाथ से लो दूसरे से दो, मुट्ठी मत बांधो। हाथ को खुला रखो.. तुम्हारा रोग तत्काल दूर हो जाएगा।

साधु की बात उसके दिल में घर कर गई। नए जीवन का आरंभ हुआ।

कुछ ही दिन में उसने देखा कि उसका न केवल रोग ही दूर हुआ, बल्कि उसको उस आनंद की उपलब्धि भी हुई जो उसे पहले कभी नहीं मिला था।

बेटी की चाह


40-42 साल की परिपक्व घरेलू स्त्री थी ‘सुधा’,भरापूरा परिवार था। धन-धान्य की कोई कमी नहीं थी। सुधा भी ख़ुश ही थी अपने घर-संसार में, लेकिन कभी-कभी अचानक बेचैन हो उठती।

इसका कारण वह ख़ुद भी नहीं जानती थी। पति उससे हमेशा पूछते कि उसे क्या परेशानी है? पर वह इस बात का कोई उत्तर न दे पाती।
तीनों ही बच्चे बड़े हो गए थे। सबसे बड़ा बेटा इंजीनियरिंग के तीसरे वर्ष में, मंझला पहले वर्ष में और छोटा दसवीं में था।

तीनों ही किशोरावस्था में थे। अब उनके रुचि के विषय अपने पिता के विचारों से ज़्यादा मेल खाते। वे ज़्यादातर समय अपने पिता, टीवी और दोस्तों के साथ बिताते। सुधा चाहती थी कि उसके तीनों बेटे उसके साथ कुछ समय बिताएं, पर उनकी रुचियां कुछ अलग थीं। अब वे तीनों ही बच्चे नहीं रह गए थे, धीरे-धीरे वे पुरुष बनते जा रहे थे।
एक सुबह सुधा ने अपने पति से कहा, “मेरी ख़ुशी के लिए आप कुछ करेंगे?” पति ने कहा, “हां-हां क्यों नहीं? तुम कहो तो सही” सुधा सहमते हुए बोली, “मैं एक बेटी गोद लेना चाहती हूं।” पति को आश्चर्य हुआ, पर सुधा ने कहा, “सवाल-जवाब मत करिएगा, प्लीज़।”

तीनों बच्चों के सामने भी यह प्रस्ताव रखा गया, किसी ने कोई आपत्ति तो नहीं की, पर सबके मन में सवाल था “क्यों?”
जल्द ही सुधा ने डेढ़ महीने की एक प्यारी-सी बच्ची अनाथाश्रम से गोद ले ली। तीन बार मातृत्व का स्वाद चखने के बाद भी आज उसमें वात्सल्य की कोई कमी नहीं थी।

बच्ची के आने की ख़ुशी में सुधा और उसके पति ने एक समारोह का आयोजन किया। सब मेहमानों को संबोधित करते हुए सुधा बोली, “मैं आज अपने परिवार और पूरे समाज के ‘क्यों’ का जवाब देना चाहती हूं। मेरे ख़याल से हर घर में एक बेटी का होना बहुत ज़रूरी है

बेटी के प्रेम और अपनेपन की आर्द्रता ही घर के सभी लोगों को एक-दूसरे से बांधे रखती है। तीन बेटे होने के बावजूद मैं संतुष्ट नहीं थी. मैं स्वयं की परछाईं इनमें से किसी में नहीं ढूंढ़ पाती। बेटी शक्ति है, सृजन का स्रोत है।

मुझे दुख ही नहीं, पीड़ा भी होती है, जब मैं देखती हूं कि किसी स्त्री ने अपने भ्रूण की हत्या बेटी होने के कारण कर दी या उसे कचरे के डिब्बे में कुत्तों के भोजन के लिए छोड़ दिया। मैं समझती हूं कि मेरे पति का वंश ज़रूर मेरे ये तीनों बेटे बढ़ाएंगे, पर मेरे ‘मातृत्व’ का वंश तो एक बेटी ही बढ़ा सकती है।”

वृन्दावन के चींटें


एक सच्ची घटना सुनिए एक संत की
वे एक बार वृन्दावन गए वहाँ कुछ दिन घूमे फिरे दर्शन किए
जब वापस लौटने का मन किया तो सोचा भगवान् को भोग लगा कर कुछ प्रसाद लेता चलूँ..

संत ने रामदाने के कुछ लड्डू ख़रीदे मंदिर गए.. प्रसाद चढ़ाया और आश्रम में आकर सो गए.. सुबह ट्रेन पकड़नी थी

अगले दिन ट्रेन से चले.. सुबह वृन्दावन से चली ट्रेन को मुगलसराय स्टेशन तक आने में शाम हो गयी..

संत ने सोचा.. अभी पटना तक जाने में तीन चार घंटे और लगेंगे.. भूख लग रही है.. मुगलसराय में ट्रेन आधे घंटे रूकती है..

चलो हाथ पैर धोकर संध्या वंदन करके कुछ पा लिया जाय..

संत ने हाथ पैर धोया और लड्डू खाने के लिए डिब्बा खोला..

उन्होंने देखा लड्डू में चींटे लगे हुए थे.. उन्होंने चींटों को हटाकर एक दो लड्डू खा लिए

बाकी बचे लड्डू प्रसाद बाँट दूंगा ये सोच कर छोड़ दिए

पर कहते हैं न संत ह्रदय नवनीत समाना

बेचारे को लड्डुओं से अधिक उन चींटों की चिंता सताने लगी..

सोचने लगे.. ये चींटें वृन्दावन से इस मिठाई के डिब्बे में आए हैं..

बेचारे इतनी दूर तक ट्रेन में मुगलसराय तक आ गए

कितने भाग्यशाली थे.. इनका जन्म वृन्दावन में हुआ था,

अब इतनी दूर से पता नहीं कितने दिन या कितने जन्म लग जाएँगे इनको वापस पहुंचने में..!

पता नहीं ब्रज की धूल इनको फिर कभी मिल भी पाएगी या नहीं..!!

मैंने कितना बड़ा पाप कर दिया.. इनका वृन्दावन छुड़वा दिया

नहीं मुझे वापस जाना होगा..

और संत ने उन चींटों को वापस उसी मिठाई के डिब्बे में सावधानी से रखा.. और वृन्दावन की ट्रेन पकड़ ली।

उसी मिठाई की दूकान के पास गए डिब्बा धरती पर रखा.. और हाथ जोड़ लिए

मेरे भाग्य में नहीं कि तेरे ब्रज में रह सकूँ तो मुझे कोई अधिकार भी नहीं कि जिसके भाग्य में ब्रज की धूल लिखी है उसे दूर कर सकूँ

दूकानदार ने देखा तो आया..

महाराज चीटें लग गए तो कोई बात नहीं आप दूसरी मिठाई तौलवा लो..

संत ने कहा.. भईया मिठाई में कोई कमी नहीं थी

इन हाथों से पाप होते होते रह गया उसी का प्रायश्चित कर रहा हूँ..!

दुकानदार ने जब सारी बात जानी तो उस संत के पैरों के पास बैठ गया.. भावुक हो गया

इधर दुकानदार रो रहा था… उधर संत की आँखें गीली हो रही थीं!!

बात भाव की है.. बात उस निर्मल मन की है.. बात ब्रज की है.. बात मेरे वृन्दावन की है..

बात मेरे नटवर नागर और उनकी राधारानी की है.. बात मेरे कृष्ण की राजधानी की है।

बूझो तो बहुत कुछ है.. नहीं तो बस पागलपन है.. बस एक कहानी घर से जब भी बाहर जाये

तो घर में विराजमान अपने प्रभु से जरूर
मिलकर जाएं
और
जब लौट कर आए तो उनसे जरूर मिले
क्योंकि
उनको भी आपके घर लौटने का इंतजार
रहता है

“घर” में यह नियम बनाइए की जब भी आप घर से बाहर निकले तो घर में मंदिर के पास दो घड़ी खड़े रह कर कहें *
“प्रभु चलिए..
आपको साथ में रहना हैं”..!
ऐसा बोल कर ही घर से निकले
क्यूँकिआप भले ही
“लाखों की घड़ी” हाथ में क्यूँ ना पहने हो
पर

“समय” तो “प्रभु के ही हाथ” में हैं न

भगवान से मिलने

एक बार एक संत, एक सेठ के पास आए। सेठ ने उनकी बड़ी सेवा की। उनकी सेवा से प्रसन्न होकर,
संत ने कहा- अगर आप चाहें तो आपको भगवान से मिलवा दूं?
सेठ ने कहा- महाराज! मैं भगवान से मिलना तो चाहता हूँ, पर अभी मेरा बेटा छोटा है। वह कुछ बड़ा हो जाए तब मैं चलूँगा।

बहुत समय के बाद संत फिर आए, बोले- अब तो आपका बेटा बड़ा हो गया है। अब चलें?
सेठ- महाराज! उसकी सगाई हो गई है। उसका विवाह जाता, घर में बहू आ जाती, तब मैं चल पड़ता।

संत तीन साल बाद फिर आए। बहू आँगन में घूम रही थी। संत बोले- सेठ जी! अब चलें?
सेठ- महाराज! मेरी बहू को बालक होने वाला है। मेरे मन में कामना रह जाएगी कि मैंने पोते का मुँह नहीं देखा। एक बार पोता हो जाए, तब चलेंगे।

संत पुनः आए तब तक सेठ की मृत्यु हो चुकी थी। ध्यान लगाकर देखा तो वह सेठ बैल बना सामान ढ़ो रहा था।
संत बैल के कान में बोले- अब तो आप बैल हो गए, अब भी भगवान से मिल लें। सेठ- मैं इस दुकान का बहुत काम कर देता हूँ। मैं न रहूँगा तो मेरा लड़का कोई और बैल रखेगा। वह खाएगा ज्यादा और काम कम करेगा। इसका नुकसान हो जाएगा।
संत फिर आए तब तक बैल भी मर गया था। देखा कि वह कुत्ता बनकर दरवाजे पर बैठा था। संत ने कुत्ते से कहा- अब तो आप कुत्ता हो गए, अब तो भगवान से मिलने चलो।

कुत्ता बोला- महाराज! आप देखते नहीं कि मेरी बहू कितना सोना पहनती है, अगर कोई चोर आया तो मैं भौंक कर भगा दूँगा। मेरे बिना कौन इनकी रक्षा करेगा?

संत चले गए। अगली बार कुत्ता भी मर गया था और सेठ गंदे नाले पर मेंढक बने टर्र टर्र कर रहा था।
संत को बड़ी दया आई, बोले- सेठ जी अब तो आप की दुर्गति हो गई। और कितना गिरोगे?

अब भी चल पड़ो।
मेंढक क्रोध से बोला- अरे महाराज! मैं यहाँ बैठकर, अपने नाती पोतों को देखकर प्रसन्न हो जाता हूँ। और भी तो लोग हैं दुनिया में, आपको मैं ही मिला हूँ भगवान से मिलवाने के लिए? जाओ महाराज किसी और को ले जाओ। मुझे माफ करो।

संत तो कृपालु हैं, बार बार प्रयास करते हैं। पर उस सेठ की ही तरह, दुनियावाले भगवान से मिलने की बात तो बहुत करते हैं, पर मिलना नहीं चाहते।