नवम्बर 2020

PMBJP प्रधानमंत्री जन औषधि

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  • हर सफलता और समृद्धि का आधार है स्वास्थ्य , फिर वो प्रगति चाहे एक व्यक्ति से जुड़ी हो , परिवार या समाज से जुड़ी हो या पूरे राष्ट्र से जुड़ी हो , उसकी बुनियाद स्थास्थ्य पर ही टिकी होती है …
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कथन विश्व बैंक की वर्ष 2014 में जारी एक रिपोर्ट के संदर्भ में बेहद महत्वपूर्ण हैं । इस रिपोर्ट के अनुसार देश के 6.3 करोड़ लोग गंभीर बीमारियों के इलाज में भारी – भरकम खर्च की वजह से हर वर्ष गरीबी रेखा के नीचे चले जाते थे ।
  • आम आदमी के इसी बोझ को कम करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1 जुलाई 2015 को प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना की शुरुआत की फिर 23 सितंबर को अपने लक्ष्य को आगे बढ़ाते हुए गरीबों के लिए 5 लाख रुपये के स्वास्थ्य बीमा देने के लिए पीएमजय – आयुष्मान भारत योजना शुरु की गई ।
  • दिल की गंभीर बीमारियों से जूझ रहे मरीजों के हित में कदम उठाते हुए फरवरी 2017 में स्टेट्स की कीमतों में 50 से 70 फीसदी तक की कटौती की गई । घुटने के इंप्लांट केप की कीमत में भी 70 % तक की कमी की गई है । डॉक्टरों के लिए भी अब जेनरिक दवाएं लिखना अनिवार्य कर दिया गया है ।
  • केंद्र सरकार की फ्लैगशिप योजना में इस बार हम प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना की चात करेंगे , जिसके तहत आज देशभर में 6 हजार 634 जन औषधि केंद्र लोगों को सस्ती दवाएं उपलब्ध करा रहे इन केंद्रों पर आप 1250 तरह की दवाएं और 204 सर्जरी के उपकरण 50 से 90 फीसदी तक सस्ते दामों पर खरीद सकते हैं ।
  • वेबसाइट http://janaushadhi.gov.in/ProductList.aspx पर क्लिक कर इन दवाओं की पूरी सूची और बाजार के मुकाबले दवाओं के दाम चेक किए जा सकते हैं । दरअसल , जन औषधि योजना की शुरुआत वर्ष 2008 में भी की गई थी । लेकिन , उचित दृष्टिकोण और बिना किसी लक्ष्य के यह दम तोड़ने लगी और वर्ष 2014 तक पूरे देश में मात्र 99 जन औषधि केंद्र ही खुल पाए । इसके बाद वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना ( पीएम – बीजेपी ) के रूप में इसे विस्तार देकर दोबारा शुरू किया गया ।
  • यही नहीं , इसकी सही निगरानी हो सके और ज्यादा से ज्यादा लोगों तक इसका लाभ पहुंचे , इस उद्देश्य को हासिल करने के लिए बाकायदा ऑफ फामा पीएसयू ऑफ इंडिया ( बीपीपीआई ) की स्थापना कर , उसे इस योजना का काम सौंपा गया ।
  • मौजूदा सरकार के प्रयासों का ही नतीजा कि वर्ष 2014 तक जहां देश में केवल 99 जन औषधि केंद्र खुल पाए थे , 12 अक्टूबर 2020 तक इनकी संख्या 6,634 पहुंच चुकी है यह व देश के 732 जिलों में मौजूद है केंद्र सरकार का लक्ष्य वर्ष 2024 तक देश के हर जिले में जन औषधि केंद्र की शुरुआत करना है , ताकि म लोगों को उचित मूल्य पर सही दवा मिल सके । इन जन औषधि पर 2000 तरह की और सर्जिकल उपकरण सस्ते दामों पर खरीदे गंदे जा सकेंगे ।
  • केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने नवंबर 2020 के पहले सप्ताह में पीएमबीजेपी की समीक्षा व ब्यूरो ऑफ फार्मा पीएसयू ऑफ इंडिया ( बीपीपीआई ) को जन औषधि दवाओं के प्रभाव , गुणवत्ता , ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंच बढ़ाने के लिए एक कार्य योजना तैयार करने के निर्देश दिए हैं

नई शुरुआत …

1 रुपये में सेनेटरी नैपकिन अब तक 7 करोड़ से ज्यादा बिके

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पर्यावरण के अनुकूल ” जनऔषधि सुविधा ऑक्सी – बायोडिग्रेडेबल सेनेटरी नैपकिन भी जन औषधि केंद्रों पर उपलब्ध हैं , वो भी मात्र । रुपये में जी हां 4 जून , 2018 को फार्मास्युटिकल्स विभाग की तरफ इसकी शुरुआत की गई थी । 30 सितंबर 2020 तक जन औषधि केद्रों से 7 करोड़ सेनेटरी नैपिकिन बेचे जा चुके हैं । 15 अगस्त 2020 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले की प्राचीर र र से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इसका जिक्र करते रते हुए कहा था- ” गरीब बहन – बेटियों स्वास्थ्य की चिंता की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है ”

सुगम एप से खोजें नजदीकी केंद्र और दवा

  • कोई भी आम नागरिक अपने नजदीक में जन औषधि केंद्र से सस्ते दामों पर दवाएं ले सकता है । यदि आपको जन औषधि केंद्र का पता नहीं मालूम तो आपकी सुविधा के लिए एक डिजिटल प्लेटफॉर्म या मोबाइल एप्लीकेशन ” जन औषधि सुगम ” शुरू किया गया है ।
  • यह एप आप गूगल प्ले स्टोर या एप्पल स्टोर से डाउनलोड कर सकते हैं।एप पर आप अपना नजदीकी केंद्र खोज सकते हैं जनऔषधि केंद्र पर कौन सी दवाएं उपलब्ध हैं , जेनरिक दवा और ब्रांडेड दवा की तुलना , कीमत और बचत के आधार पर भी इसी एप के जरिए कर सकते हैं।
  • एक साल में जन औषधि केंद्रों ने लोगों के 2200 करोड़ रुपए बचाए मार्च , 2020 तक 700 जिलों में 6200 से अधिक जन औषधि केंद्र से वित्त वर्ष 2019-20 में 433 करोड़ रुपए की सस्ती दवा बेची गई । ये दवा बाँडेड कंपनियों के मुकाबले 50-90 % तक सस्ती है ।
  • यानी अनुमान के मुताबिक इससे बीमार लोगों या उनके परिवार की दवा जन औषधि खर्च में 2200 करोड़ रुपए की बचत हुई है रोजगार का सहारा भी बने जन औषधि केंद्र …

कौन खोल सकता हैं

पीएम – बीजेपी केंद्र पीएमवीजेपी केंद्र कोई भी व्यक्ति , बेरोजगार फार्मासिस्ट , डॉक्टर , रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर , ट्रस्ट , एनजीओ , प्राइवेट हॉस्पिटल , सोसायटी और सेल्फ हेल्प पुप या राज्य सरकारों की तरफ से नामित एजेंसी दुकान खोल सकती है ।

केंद्र खोलने के लिए रिटेल ड्रग सेल्स का लाइसेंस जन औषधि केंद्र के नाम पर लेना होगा । 120 वर्गफुट क्षेत्र की दुकान होनी चाहिए । यदि आप पौषम – बीजेपी सेंटर खोलना चाहते है तो ऑनलाइन आवेदन करने के लिए https://janaushadhi.gov.in/onlineregistration पर क्लिक करें ।

स्वास्थ्य हमारे जीवन । सबसे बड़ी पूंजी है । ऐसे में बेहतर स्वास्थ्य के लिए केंद्र सरकार द्वारा पीएमजस – आयुष्मान भारत योजना के साथ प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना खुशहाल भारत की दिशा में वरदान साबित हो रही है।

बेका समझौता

भारत और अमेरिका रक्षा क्षेत्र में अहम साझेदार हैं । दक्षिण एशिया के साथ दुनिया में बढ़ती हुई भूमिका के चलते अब भारत साझेदार है। इसी कड़ी में भारत और अमेरिका की प्लस टू वार्ता का आयोजन 27 अक्टूबर को दिल्ली में किया गया । अमेरिका की ओर से इसमें विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो , रक्षा मंत्री मार्क एस्पर और भारत की ओर से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस . जयशंकर मौजूद रहे । दोनों देशों के बीच सहमति के बाद बेका ( बेसिक एक्सचेंजएंड कोऑपरेशन फॉर जिओ स्पेशल कोऑपरेशन ) समझौते पर हस्ताक्षर किए गए । यह समझौता भारत और अमेरिका के बीच रक्षा क्षेत्र से जुड़े चार महत्वपूर्ण समझौतों की अंतिम कड़ी है।

क्या है टू प्लस टू वार्ता

रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण साझेदार दो देशों के बीच समकक्ष स्तर की बातचीत को टू प्लस टू वार्ता कहा जाता है । दुनिया में पहली बार जापान ने इसकी शुरुआत की थी । भारत और अमेरिका के बीच सितंबर 2018 में दिल्ली में ही इसकी शुरुआत हुई थी । दिसंबर 2019 में दूसरी वार्ता न्यूयॉर्क में हुई थी ।

बेका समझौता क्या है

  • ‘ बेका ‘ भारत और अमरीका के बीच होने वाले चार मूलभूत समझौतों में से आख़िरी है । इससे दोनों देशों के बीच लॉजिस्टिक्स और सैन्य सहयोग को बढ़ावा मिलेगा ।
  • पहला समझौता 2002 में किया गया था जो सैन्य सूचना की सुरक्षा को लेकर था । इसके बाद दो समझौते 2016 और 2018 में हुए जो लॉजिस्टिक्स और सुरक्षित संचार से जुड़े थे।
  • ताज़ा समझौता भारत और अमेरीका के बीच भू – स्थानिक सहयोग है। इसमें क्षेत्रीय सुरक्षा में सहयोग करना , रक्षा सूचना साझा करना , सैन्य बातचीत और रक्षा व्यापार के समझौते शामिल हैं।
  • इस समझौते पर हस्ताक्षर का मतलब है कि भारत को अमरीकी से सटीक भू – स्थानिक ( जिओ स्पेशल ) डेटा मिलेगा जिसका इस्तेमाल सैन्य कार्रवाई में बेहद कारगर साबित होगा।
  • इस समझौते का एक महत्वपूर्ण हिस्सा यह है कि अमेरीकी सैटेलाइट्स से जुटाई गई जानकारियां भारत को साझा की जा सकेंगी । इसका रणनीतिक फायदा भारतीय मिसाइल सिस्टम को मिलेगा । इसके साथ ही भारत उन देशों की श्रेणी में भी शामिल हो जाएगा जिसके मिसाइल हज़ार किलोमीटर तक की दूरी से भी सटीक निशाना साध सकेंगे।
  • इसके अलावा भारत को अमेरीका से प्रिडेटर – बी जैसे सशस्त्र ड्रोन भी उपलब्ध होंगे । हथियारों से लैस ये ड्रोन दुश्मन के ठिकानों का पता लगा कर तबाह करने में सक्षम हैं।

बेका समझौते के बाद दोनों देशों के प्रतिनिधियों ने आतंकवाद और विस्तारवाद के खिलाफ अपनी प्रतिबद्धता जताई है । आतंकवाद के खिलाफ दुनिया के सामने अपनी बात सबसे जोरदार तरीके से रखने वाला भारत अब अमेरिका के साथ अहम समझौते कर रहा है । अमेरिका , जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ क्वॉड समूह में भारत भी अहम साझेदार है । भावी चुनौतियों और आतंकवाद के मुद्दे पर भारत को हमेशा से इन देशों का साथ मिलता रहा है ।

Contact Lens (कॉन्टैक्ट लेन्स) आइए जानें!

कॉन्टैक्ट लेंस आंख के गोले के ऊपर फिट किया जाता है, यह आमतौर पर दृष्टि दोषों को ठीक करने के लिये प्रयोग किये जाते हैं।

चिकित्सकों द्वारा बनाया गया सॉफ्ट लेंस का उपयोग अक्सर आंख के गैर-अपवर्तक विकारों के उपचार और प्रबंधन में किया जाता है। एक पट्टी संपर्क लेंस रोगी को पलक झपकने की लगातार रगड़ से घायल या रोगग्रस्त कॉर्निया की सुरक्षा करते हुए देखने की अनुमति देता है, जिससे वह ठीक हो सकता है। दृष्टि स्थितियों के उपचार में किया जाता है ।

जलस्फोटी keratopathy, सूखी आंखें, कॉर्निया खरोंच और कटाव, स्वच्छपटलशोथ, कॉर्निया शोफ, descemetocele, कॉर्निया विस्फारण, मूरेन के अल्सरपूर्वकाल कॉर्नियल डिस्ट्रोफी, और न्यूरोट्रोफिक केराटोकोनजैक्टिवाइटिस। कॉन्टेक्ट लेंस जो आंखों तक ड्रग्स पहुंचाते हैं, उन्हें भी विकसित किया गया है।

दोषों को ठीक करने के लिये कन्टैक्ट लेन्सों का सबसे पहले सन् 1887 में ए.ई. फिक ने विकास किया था।

आरम्भ में ये लेंस कांच को ब्लो करके या ग्लास की टेस्ट ट्यूब की तली को घिस कर और पालिश करके बनाये जाते थे। पहले ये लेंस सफल नहीं हुए और कुछ दिनों तक ये केवल चर्चा का विषय ही बने रहे।

कुछ समय पाश्चात, इस विषय में सार्थक प्रगति 1938 में हुई जब मिथाइल मेथाक्रलेट (methyl methacrylate) जैसे प्लास्टिक से बने कन्टैक्ट लेन्स विकसित किए गए।

1938 से 1950 तक आंखों की छाप लेकर और उसका मोल्ड बनाकर अनेक कन्टैक्ट लेंस बनाये जाते रहे। ये लेंस आंख के सम्मुख भाग को पूरी तरह ढक लेते हैं और इसके लिए इनके नीचे एक तरल पदार्थ का प्रयोग किया जाता है।

1950 के बाद छोटे लेंस तैयार होने लगे जो केवल कार्निया (cornea) को ही ढकते थे। ये एक तरह से आंसुओं की एक तह पर तैरते हैं।

इस लेंस के लिए आंख की छाप लेने की जरूरत नहीं है, क्योंकि कार्निया का नाप उपकरणों से लिया जा सकता है। इन लेंसों का व्यास सामान्य तौर पर 7 से 11 मिमी. और इनकी मोटाई 0.1 से 1 मिमी. तक होती है। ये पूरे दिन बिना हटाये पहने जा सकते हैं।

कन्टैक्ट लेंस फिट करने से पहले आंख का परीक्षण किया जाता है। यह परीक्षण ठीक उसी प्रकार से किया जाता है, जिस प्रकार से चश्मा लेने से पहले कराते हैं।

फिर “कराटोमीटर” नाम के उपकरण से पुतली का कर्वेचर (curvature) नाप लिया जाता है। लेंस के व्यास और शक्ति का निर्णय हो जाने पर इसी नाप और शक्ति का लेंस निर्मित कर लिया जाता है।

कन्टैक्ट लेंस बनाने के लिए पहले प्लास्टिक को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लिया जाता है। इन टुकड़ों को खराद पर चढ़ा कर बटन की शक्ल की गोलियां बना ली जाती हैं। इनको बोनेट कहते हैं।

तब मशीनों की मदद से इनको अलग-अलग शक्ति देने के लिये वांछित गोलाई दी जाती है, अन्त में इन पर पालिश कर दी जाती है। इसके बाद लेंस को आंख पर लगा कर देखा जाता है कि वह सही बैठता है या नहीं। सही होता है तो आंख पर लगा लिया जाता है।

अभ्यास करने पर इस लेंस को लगातार बारह घंटों तक आंखों पर लगाये रखा जा सकता है। पुतली पर चढ़ा कन्टैक्ट लेंस दूसरे व्यक्ति को दिखाई नहीं देता। इस गुण के अतिरिक्त यह सामान्य चश्मे से बहुत अधिक विस्तृत दृश्य-विस्तार प्रदान करता है।

खेल-कूद में भी ये बहुत उपयोगी सिद्ध होते हैं, क्योंकि न ये आसानी से खोते हैं न टूटते हैं । इनसे तेज धूप से भी व्यक्ति की रक्षा होती है, पहले ये आंख की बीमारियों में ये काम नहीं आते थे पर वर्तमान में ये आँख की कई समस्यायों के निदान मे काम आने लगे हैं। ये महंगे अधिक होते हैं और कुछ लोगों को इन्हें लगाने में परेशानी भी होती है।

विज्ञान ने पहले से छोटे और अधिक लचकदार लेंस खोज निकाले हैं। सातवें दशक के प्रारम्भ से हाइड्रोक्सी-इथाइल मेथाक्रिलेट (hydroxy-ethyl methacrylate) से मुलायम कन्टैक्ट लेंस बनाये जाने लगे हैं, जो पहनने में अपेक्षाकृत अधिक आरामदेह होते हैं।

कॉन्टैक्ट लेंस लगाने का तरीका

कॉन्टेक्ट लेंस आम तौर पर अवतल पक्ष के साथ सूचकांक या मध्य उंगली के पैड पर रखकर आंख में डाला जाता है और फिर उस उंगली का उपयोग करके लेंस को आंख पर रखा जाता है।

कठोर लेंस को सीधे कॉर्निया पर रखा जाना चाहिए। मुलायम लेंस को श्वेतपटल (आंख का सफेद) पर रखा जा सकता है और फिर जगह पर स्लाइड किया जा सकता है। एक ही हाथ की दूसरी उंगली, या दूसरे हाथ की एक उंगली, का उपयोग आंख को चौड़ा रखने के लिए किया जाता है।

वैकल्पिक रूप से, उपयोगकर्ता अपनी आँखें बंद कर सकते हैं और फिर अपनी नाक की ओर देख सकते हैं, लेंस को कॉर्निया के ऊपर जगह में सरका सकते हैं। समस्या तब उत्पन्न हो सकती है यदि लेंस फोल्ड हो जाता है, समय से पहले अंदर-बाहर हो जाता है, उंगली को बंद कर देता है, या आंख की सतह की तुलना में उंगली को अधिक कसकर पालन करता है। समाधान की एक बूंद लेंस को आंख से चिपकने में मदद कर सकती है।

Fool’s Gold झूठा-सोना

झूठा सोना ( Fool’s Gold ) किसे कहते हैं ? ‘ झूठा सोना दरअसल प्रकृति से प्राप्त होने वाला एक खनिज है । इसे आयरन डाइसल्फाइड़ या आइरन पाइराइट कहते हैं, यह रत्न की श्रेणी मे भी आता है। यह पीतल जैसी पीले रंग की चमकदार धातु होती है, इसलिए कभी-कभी इसे देखकर सोने का भ्रम हो जाता है, और यही कारण है कि इसका नाम ‘झूठा सोना’ पड़ा है। इसे माक्षिक भी कहते हैं।

पाइराइट्स सोने से बहुत सख्त और भुरभुरा होता है , इसीलिए उसे अलग पहचाना जा सकता है । पाइराइट शब्द ग्रीक भाषा के पाइर ( pyr ) शब्द से बना है , जिसका अर्थ है आग ( fire ) । वास्तविकता तो यह है कि पाइराइट जब लोहे से टकराता है तो इसमें से आग की चिंगारियां निकलती हैं। पाइराइट के जले हुए अंश प्रागैतिहासिक काल के कब्रिस्तानों में पाये गये हैं । इससे स्पष्ट होता है कि आदिम युग में इस पदार्थ को आग जलाने के काम में लाया जाता था ।

झूठा- सोना

हस्तरेखा विज्ञान क्या है? कैसे करता है काम?

हमारे देश में पिछले 2500 वर्षों से लोगों की यह धारणा रही है कि हाथों की रेखाएं देखकर आदमी का भविष्य बताया जा सकता है । भारत से ही यह धारणा दूसरे देशों में भी फैली । आरम्भ में ज्योतिषी पैरों के तलओं की रेखाएं भी देखा करते थे , परन्तु बाद में यह अनुभव किया गया कि हाथों की रेखाएं देखना अधिक आसान है ।

हाथ की रेखाओं को पढ़ने के विज्ञान को हस्तरेखा विज्ञान कहते हैं । इससे व्यक्ति का चरित्र , उसका भविष्य और भविष्य के उतार – चढ़ाव बताये जाते हैं । यद्यपि हस्तरेखा विज्ञान का कोई वैज्ञानिक आधार अभी तक स्थापित नहीं हो पाया है , परन्तु अनुभव के आधार पर यह कहा जा सकता है कि हाथ की बनावट और रेखाओं के अनुसार व्यक्ति के काम – धन्धों , आदतों और स्वभाव , रुचियों और उसके व्यक्तित्त्व का किसी सीमा तक पता चल सकता है । यह कहना मुश्किल है कि इन रेखाओं में कोई आत्मिक शक्ति होती है ।

Hastrekha
हस्तरेखा

प्राचीन ज्योतिषियों के अनुसार सबसे ऊपर की रेखा का सम्बन्ध हृदय से होता है । यह प्रेम करने की शक्ति के विषय में बताती है । इसके नीचे की रेखा का सम्बन्ध मस्तिष्क से माना जाता है । इसे मस्तिष्क रेखा कहते हैं । भाग्य रेखा इन दोनों को काटती हुई जाती है । मस्तिष्क रेखा के नीचे जो वक्र रेखा है , उसे जीवन रेखा कहते हैं । इस की लम्बाई के आधार पर व्यक्ति की आयु ज्ञात की जाती है ।

हाथ पर और भी अनेक रेखाएं होती हैं , जो जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालती हैं । आज के हस्तरेखा वैज्ञानिक भी इन रेखाओं को इन्हीं नामों से पुकारते हैं, और प्राचीन ज्योतिषियों की तरह ही इनके अर्थ पढ़ते हैं । यदि किसी ज्योतिषी की भविष्यवाणी सही निकलती है तो उसे याद किया जाता है । गलत भविष्यवाणी को लोग भूल जाते हैं । कुछ भी हो इन भविष्यवाणियों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता , परन्तु इसे पूरी तरह नकारा भी नहीं जा सकता । वैसे भविष्य बताने के जो और तरीके बरते जाते हैं , उन पर भी आशिक रूप से ही सही, विश्वास किया जा सकता है ।

कला ( Art )

‘कला’ शब्द भारतीय साहित्य में प्राचीन काल से प्रयुक्त होता रहा है। ‘कला’ शब्द ‘कल’ धातु से उत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ है ‘सुन्दर’। ‘कला’ शब्द में ‘ला’ धातु भी लगती है जिसका अर्थ है ‘प्राप्त करना’ । अर्थात् कला का अर्थ है ‘सुंदर को प्राप्त करना’ । अतः कला वह मानवीय क्रिया है , जिसका विशेष लक्षण ध्यान दृष्टि से देखना , चिंतन करना , संकलन करना , स्पष्ट रूप से प्रकट करना है । ‘कला’ शब्द के प्रर्यायवाची के रूप में ‘शिल्प’, आर्ट तथा ‘कौशल’ शब्दों का प्रयोग भी होता रहा है ।

मानव मूलतः सौंदर्य का प्रेमी रहा है । अपने जीवन के हर क्षेत्र में मानव सुन्दरता की कामना करता है । मानव की इसी सौंदर्य भावना से कला का जन्म हुआ । प्राकृतिक सौंदर्य से प्रभावित होकर मानव ने सुंदर कलाकृतियों का निर्माण किया । मानव जब अपने भावों को व्यक्त करने के लिए किसी माध्यम का प्रयोग करता है तो कला का सृजन आरम्भ होता है । कला मानव का अनुभव है । वह उसके विचारों , भावों आदि को व्यक्त करने का एक माध्यम है । सभी मानवीय क्रियाएँ जो सृष्टि में होती हैं कला कही जाती है । मानव अपने मन – मस्तिष्क तथा शरीर से जो कार्य करने की चेष्टा करता है वह ही कला है । अतः जिस कृति का सृजन मानव करता है , वह कला है ।

कला मानव के भावों तथा विचारों को प्रकट करने का माध्यम है । मानव का यह स्वभाव है कि वह नई – नई वस्तुओं के विषय में जानने के लिए उत्सुक रहता है . ज्ञान की प्राप्ति कई प्रकार से करता है , नवीन वस्तुएं बनाता है । मानव के हर कार्य को कला की संज्ञा दी गई है । अतः मानव जो भी कार्य करता है वह कला है । कला एक क्रमिक विकास है । इसके चार चरण हैं |

1. सबसे पहले आंतरिक इच्छा का होना ।

2. इस इच्छा को पूरा करने की पूर्ण चेष्टा करना ।

3. इच्छा , चेष्टा तथा क्रिया से ही कलाकृति का जन्म होना ।

4. कलाकृति से दर्शक पर पड़ने वाला प्रभाव ।

कला का क्षेत्र व्यापक है। हर विद्वान ने अपने-अपने आधार पर कला को वर्गीकृत किया है। मुख्य रूप से मानव शरीर के मन तथा-मस्तिष्क के आधार पर ही कला के वर्गीकरण किए गए हैं । परन्तु अधिकतर व्यक्ति बुद्धि को ही सर्वाधिक महत्व देते हैं । इसी आधार पर कला को दो वर्गों में बाँटा गया है ।

1. यांत्रिक कलाएँ

2. ललित कलाएँ

1. यांत्रिक कलाएँ – उपयोगी कलाएं यांत्रिक कलाएँ कहलाती हैं । ये कलाएँ मानव जीवन के लिए उपयोगी होती है । ये भौतिक सुख प्रदान करती है । इन्हीं कलाओं के द्वारा हमें दैनिक जीवन की आवश्यकता की चीजों की प्राप्ति होती हैं । इन कलाओं में उद्देश्य की पूर्ति के अनुसार ही कल्पना शक्ति का प्रयोग होता है । जैसे एक मिस्त्री कुर्सी बनाते उसे कुछ भी आकृति दे सकता है पर वह यह बात हमेशा ध्यान में रखता है कि कुर्सी का प्रयोग सही रहे अर्थात् वह बैठने में आरामदायक हो ।