क्या होते हैं? नोवा ( Nova ) और सुपरनोवा ( Supernova )।
क्या होते हैं? नोवा ( Nova ) और सुपरनोवा ( Supernova )।
विज्ञान की बहुत सी रोचक घटनाएँ एवं तथ्य है जिनके विषय मे अन्जान है उन रोचक तथ्यों में एक है “नोवा”। आइए जानते है आखिरकार ये है क्या?
कुछ तारे जो लाखों वर्षों से लगातार सामान्य तारों की तरह चमक रहे होते हैं , आश्चर्यजनक रूप इनकी चमक एकाएक बढ़ जाती है । एक सामान्य दर्शक को ऐसा अनुभव होता है कि एक नया बेहद चमकदार सितारा आकाश में उग आया है । इसीलिए इन तारों को नवतारा या “नोवा” कहते हैं । नोवा शब्द का अर्थ- नया भी है ।
चमक में यह बढ़ोतरी इसलिये होती है , क्योंकि तार में हुआ कोई एक विस्फोट उस तारे के एक लाखवें भाग से भी कम पदार्थ को ऊपर उछाल देता है । यह पदार्थ वास्तव में गैस का एक विशाल गोला होता है , जो अन्तरिक्ष में बहुत तेजी के साथ फैलता है । नोवा के प्रकाश की अधिकतम चमक कुछ घंटों या कुछ दिनों में पहुंच जाता है और फिर धीरे – धीरे अपनी मूल चमक पर वापस आ जाता है।
अब तक खगोलशास्त्री निश्चित रूप से यह नहीं जान पाये हैं कि नवतारा आखिर किस कारण से बनता है । ऐसा अनुमान है कि हमारी मन्दाकिनी में प्रति वर्ष लगभग 20-30 नवतारे बनते हैं । कुछ तारे एक से अधिक बार नवतारों में बदलते हैं , इसलिए इन्हें प्रत्यावती ( recurrent ) नवतारे कहा जाता है।
प्रत्यावर्ती नवतारे काफी दीर्घ अन्तराल के बाद भड़कते हैं। हमारी मन्दाकिनी में इस तरह के पांच तारे पहचाने जा चुके हैं। ऐसा देखा गया है, कि सामान्य नवतारे की चमक सूर्य की चमक से 10,000 से 10,00,000 गुना तक अधिक होती है।
नोवा के विस्फोट में उत्सर्जित होने वाली ऊर्जा 1045 अर्ग के लगभग होती है । इतनी ऊर्जा का विकिरण सूर्य से 10,000 वर्षों में होता है । यदि कभी सूर्य पर इस तरह का विस्फोट हो जाये तो पृथ्वी कुछ ही घंटों या दिनों में नष्ट हो जायेगी, पर सूर्य जैसे तारों में ऐसे विस्फोट की सम्भावना नहीं के बराबर है । अधिकतम चमक प्राप्त करने के बाद एक सामान्य नवतारा अलग – अलग दर से पहली स्थिति तक वापस पहुचता है । चमक कम होने की दर भी एक समान नहीं होती । कछ सालों के बाद इस तारे की चमक स्थिर हो जाती है , लेकिन गैस का बादल फिर भी इसके चारों तरफ देखा जा सकता है , जो सैकड़ों किलोमीटर प्रति सेकिंड की रफ्तार से फैल रहा होता है ।
सुपरनोवा का बनना नवतारे से बहुत अधिक भव्य दृश्य होता है । इस विस्फोट में तारा अपने पदार्थ का लगभग दसवां भाग उछाल देता है । इसमें तारे की चमक अरब गुना से भी अधिक हो जाती है । 1054 में टॉरस तारे पर सुपरनोवा विस्फोट हुआ था । उस समय यह इतना चमकदार हो गया था कि दिन में भी दिखाई पड़ता था । इसके अवशिष्ट भाग से आकाश में केकड़े की शक्ल की नीहारिका बन गई , जो आज आकाश की सबसे मनोहारी चीज कही जा सकती है । 1572 में टाइको ब्राहे ने एक सुपरनोवा देखा था , जो दिन में भी दिखाई देता था । इस तरह 1604 में जोहान्स कैपलर को भी ऐसा ही अनुभव हुआ । हमारी मन्दाकिनी में अन्तिम बार यही सपरनोवा देखा गया था । किसी भी मन्दाकिनी में सुपरनोवा विस्फोट 300 साल में एक बार होता है । दूसरी मन्दाकिनियों में भी नोवा और सुपरनोवा के विस्फोट इसी अन्तराल में घटते हैं ।