इस वर्ष 18 सित. से 16 अक्टूबर 2020 तक होगा
“इस वर्ष आश्विनमास में ही अधिमास लग रहा है- इस मास में शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से अमावस्या तक सूर्य की संक्रान्ति नहीं होगा । अतः कहा गया है कि ” असंक्रान्ति मासोऽधिमासः स्फुटः स्यात ” अर्थात जिस चान्द्रमास में सूर्य की संक्रान्ति न हो उसे अधिमास कहते हैं ।
प्रायः अधिकमास ३२ मास १६ दिन ४ घटी पर होता है यह मध्यम मान से हैं । ब्रह्म सिद्धान्त के अनुसार इसको ” मलमास भी कहते हैं , यथा- “ चान्द्रोमासोह्यसंक्रान्तो मलमासः प्रकीर्तितः । ” गृहसूत्र परिशिष्ट में कहा गया है । कि ” मल वदन्ति कालस्य मासं कालक्दिोऽधिकम् ” पुराणों में भगवान् ने इस मास को “ पुरुषोत्तम ” मास कहा है ।
कहते हैं कि हमको चाहने वाले भक्त पुरुषोत्तम मास में मेरा व्रत रखे तो उनके उद्देश्य की पूर्ति होती है , परन्तु अन्य मासों में इसको अधिक मास की संज्ञा दी गयी है ।
अधिमास में कौन कार्य करना चाहिए तथा कौन कार्य नहीं करना चाहिए इसका निरुपण –
अधिमास में करने योग्य कर्म-
1-द्वादशाह , सपिण्डन , कर्मग्रहण , सीमन्त , पुंसवन पितृश्राद्ध और जातकर्म । श्राद्ध को पूर्व तिथि अर्थात अधिमास में युगादि तिथियों में , मन्वादि तिथियों में , तथा अधिमास में दैनिक दान करना निषेध नहीं है ।
2- तिल , गेहूँ , सोना का दान तथा सन्ध्योपासन कर्म एवं पर्व का होम ग्रहण का जप , अग्निहोत्र देवता पूजन , एवं अतिथि पूजन अधिमास में ग्राह्य है ।
अधिमास में नहीं करने योग्य कर्म-
1-अग्न्याधान , प्रथमवार तीर्थयात्रा देवप्रतिष्ठा , तालाब , बागीचा , यज्ञोपवित , समावर्तन , वृषोत्सर्ग , आदि कर्म अधिमास में निष्क्रिय हो जाते हैं ।
2-राज्याभिषेक , चूणाकर्म , अन्नप्राशन , गृहारम्भ , गृहप्रवेश , प्रायश्चित गोदान , इत्यादि कर्म अधिमास में वर्जित है ।
3-श्रावण ( उपाकर्म ) राजादर्शन , दूर्ग ध्वज , का स्थापन हथियार आदि धारण कर्म मलमास ( अधिमास ) में नहीं करना चाहिए ।
अधिमास में दान-
1- सभी प्रकार के उद्देश्य पूर्ति के लिए पुआ ( पूपान ) दान करने से पृथ्वी दान का फल मिलता है ।
2-अधिमास में गुड़ , सरसों एवं तैतीस पुआ को प्रतिदिन घी एवं स्वर्ण के साथ ब्राह्मण को दान देना चाहिए ।
दो आश्विन का फल दो आश्विन में पृथ्वी में सेना, चौर, रोगभय तथा दक्षिण दिशा में शुभ होता है ।।
दान का संकल्प : –
देशकालौ सङ्कीर्त्यास्मिन् पुरुषोत्तमनामधेयमासि विपुललक्ष्मीपुत्रपौत्रा युरारोग्यैश्वर्यभुक्ति मुक्तिप्राप्तिपूर्वकं पृथ्वीदानसमफलप्राप्तये सकलान्तर्वाह्यमलदेहशुद्धिद्वारा श्रीभगत्पुरुषोत्तमनारायणप्रीतये च एतांस्त्रयस्त्रिंशदपूपानं कांस्यपात्रे धृतानपरकांस्यापात्राच्छादितान् हिरण्यघृत संयुक्तान् पुरुषत्तमदेवतान्पुरुषोत्तम स्वरुपाय ब्राह्माणायतुभ्यमहं सम्प्रददेइति द्विजकरे दद्यात् ।
ततःप्रार्थना : –
विष्णुरुपः सहस्त्रांशु सर्वपापप्रणाशनः । अपूपानप्रदानेन मम पापं व्यपोहतु । नारायण जगद्गबीज भास्करप्रतिरुपक । व्रतेन्यनेन पुत्रांश्च सम्पदामंपि वर्द्धय ।।
यस्याहस्ते गदा चक्रो गरुणो यस्य वाहनम् । शंखः करतले यस्य स मे विष्णुः प्रसीदतु । कलाकाष्ठदिरुपेण निमेषघटिकादिना । यो वञ्चयति भूतानि तस्मै कालात्मने नमः । कुरुक्षेत्रमयो देश : कालः सर्वद्विजो हरिः । पुथवीसममिदंदानं गृहाण पुरुषोत्तम । मलानाञ्च विशुदध्यर्थं पापप्रशमनाय चापुत्रपौत्रसमृद्धर्थ । तव – दास्यामि भास्कर ।।
मन्त्रेणानेन दद्यातूत्रयस्त्रिंशदपूपकान । प्राप्नोति विपुलांलक्ष्मीपुत्रपौत्रादिसम्पद इति।।
अधिमासे कृत्यानि :
सूतिकाक्रिया सामान्ययात्रादिक्रियाच कार्या ।
उकृञ्च – गर्भाद्यन्नशनान्तेषुन गुरुसितयोर्खाल्यावाटी चमौढ्यं जह्यात्कालस्य रोधाद्धरिगुरुमयनयाम्यमूनाधिमासाविति । तथा च गर्भे वाधुषिके मृत्यो श्राद्धकर्मणि मासिके । सपिण्डीकरणे नित्ये नाधिमासे विवर्जयेत् । अनिन्दुरिन्दुपूर्ण च हरिवारा बुधाष्टमी । नाधिमासे परित्याज्या सीमन्त प्राशनेशिशोः ।।
हेमाद्रि का वचन है कि जिस मास में अधिमास मिलता है उस मास के तैतीस देवता है ।
ये हैं अधिमास के तैंतीस देवता-
विष्णु , १ जिष्णु २ , महाविष्णु ३ , हरि ४ , कृष्ण ५ , भधोक्षज ६ , केशव ७ , माधव ८ , राम ९ , अच्युत १० , पुरुषोत्तम ११ , गोविन्द १२ , वामन १३ , श्रीश १४ , श्रीकान्त १५ , विश्वाक्षिभूणम् १६ , नारायण १७ , मधुरिपु १८ , अनिरुद्ध १ ९ , त्रिविक्रम २० , वासुदेव २१ , यगत्योनि २२ , अनन्त २३ , शेषशायिन २४ , संकर्षण २५ , प्रद्युम्न २६ , दैत्यारि २७ , विश्वतोमुख २८ , जनार्दन २ ९ , धरावास ३० , दामोदर ३१ , मधार्दन ३२ , श्रीपति ३३ , सैंतिस उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए ३३ पूपान ( पुआ ) को काँसे के पात्र में रख कर घी और सोना ब्राह्मण को दान दें ।
कुछ विशेष-
आश्विनमास के पर्व अधिमास में नहीं करना चाहिए । इसमें पराशर का मत है कि- जब सूर्य चान्द्रमास को लंबित करके आगे चला जाय उसको मलिम्लुच ( अधिमास ) मास कहते हैं , उस मास के कर्मशुद्ध अधिमास में करना चाहिए । प्रजापति का बचन – उपाकर्म और हवन , कामना वाला पर्वशुद्ध मास में करना चाहिर अधिमास में करने पर निष्फल हो जाता है । अन्य वचन बाचली , कुआं तालाब देव प्रतिष्ठा यज्ञ एवं महादान इत्यादि कर्म अधिमास में नहीं करना चाहिए । हेमाद्रि में शतातप का वचन यदि उसी मास में संवत्सरबदल जायतोपितृकार्य किया जा सकता है , परन्तु देवकर्म शुद्ध मास में करना चाहिए।