हिन्दुओं का प्रमुख पर्व- दीपावली
दीपावली त्यौहार पाँच दिनों तक मानाया जाता है । प्रत्येक दिनों में अलग-अलग पांच कृत्य होते हैं। आइए जानते हैं किस दिन क्या होता है। यह कार्तिक कृष्णपक्ष त्रयोदशी से शुक्लपक्ष की द्वितीया पर्यन्त मनाया जाता है ।
1- दीपावली पर्व को दीपमालिका दिवाली भी कहा जाता है । यह हिन्दुओं के चार प्रमुख त्यौहारों मे से एक है। वर्णभेद के अनुसार यह वैश्यवर्ग में आता है किन्तु सभी वर्ग के लोग इसे उत्साहपूर्वक मनाते हैं । यह सम्पूर्ण भारत में प्रचलित है ।
2- दीपमालिका कार्तिक मास की अमावस्या को मनायी जाती है। इस अवसर पर घरों की सफाई एवं सजावट होती है तथा रात्रि में दीपदान होता है । दीपों की मालायें सजायी जाती है इसीलिये इसका एक नाम दीपमालिका पर्व भी है । इस दिन कुबेर , महालक्ष्मी तथा सिद्धिदाता गणेश की पूजा होती है ।
3- साधक लोग रात्रि पर्यन्त जागरण कर जप , ध्यान एवं मन्त्रसिद्धि करते हैं। कुछ लोग अपना भाग्य आजमाने के लिये द्यूत खेलते हैं । यद्यपि द्यूतक्रीड़ा निषिद्ध कार्य है वेद इसे घृणित कार्य मानता है तथापि यह परम्परा कब से किन परिस्थितियों में प्रारम्भ हुई अज्ञात है, अब इसे बन्द कर देना चाहिए ।
4- दीपावली त्यौहार पाँच दिनों तक मानाया जाता है । प्रत्येक दिनों में अलग – अलग पांच कृत्य होते हैं । यह कार्तिक कृष्णपक्ष त्रयोदशी से शुक्लपक्ष की द्वितीया पर्यन्त मनाया जाता है । कार्तिककृष्णपक्ष त्रयोदशी को धनवन्तरी जयन्ती अथवा धनतेरस भी कहते हैं । चिकित्सक लोग धन्वन्तरि पर्व को सोत्साह मनाते हैं । अन्य लोग इस दिन कोई नयापात्र ( बर्तन ) आदि खरीदते हैं । इसी दिन से लोग दीप प्रकाश एवं पटाखे छोड़ते हैं ।
5- कार्तिककृष्ण चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी भी कहते हैं । इसका कारण यह है कि नरक से बचने के लिये यमराज को प्रसन्न रखना पड़ता है । भगवान् विष्णु के वराहावतार में इसी तिथि में नरकासुर की उत्पत्ति हुई थी अतः नरकचतुर्दशी नरकासुर के नाम पर प्रसिद्ध है यह पुराणों की मान्यता है ।
6- इस दिन नरक से बचने के लिये तेल मालिश कर स्नान करना चाहिए , सिर पर अपामार्ग ( चिचिड़ी ) की टहनियों को घुमाना चाहिए , इसके बाद तिल युक्त जल का तर्पण यमराज के लिये करना चाहिए | चतुर्दशी होने से यमराज के चौदह नाम लिये जाते हैं । यथा – यमाय धर्मराजाय मृत्यवे चान्तकाय च।वैवस्वताय कालाय सर्वभूतक्षयाय च ।।औदुम्बराय दहनाय नीलाय परिमेष्ठिने ।वृकोदराय चित्राय चित्रगुप्ताय वै नमः ।।
7- यमराज के प्रसन्नार्थ कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के सांयकाल में अकालमृत्यु से बचने के लिये घर से बाहर चौराहों पर चौमुखी दीपदान करना चाहिए। मन्त्र इस प्रकार है- मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन यमया सह। त्रयोदश्यां दीपदानात्सूर्यजः प्रीयतां मम ।।
8- इसी दिन हनुमज्जयन्ती भी होती है अतः प्रातः बेला में हनुमद्दर्शन भी करना चाहिए।कार्त्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या अति महत्त्वपूर्ण है । इसी दिन को मुख्य रुप से दीपावली की संज्ञा दी गयी है । इस दिन लक्ष्मी की बड़ी बहन दरिद्रा को हटाने के लिये लक्ष्मी पूजा की जाती है । स्त्रियों को स्वयं दीपदान करना चाहिए ।
9- इसी दिन व्यापारी लोग विशेष रुप से अपने बही खातों की पूजा करते हैं पुराने खाते बन्द कर नये खाते खोलते हैं । इस दिन सभी को बालक , बृद्ध एवं रोगियों को छोड़कर रात्रि जागरण करना चाहिए , ब्रह्ममुहूर्त में निद्रा सताती है अत: महिलाये सूप, चलनी , ढोलक आदि पीटकर शोरगुल करके अपने घर से अलक्ष्मी ( दरिद्रा ) को भगाती हैं तथा सबको जागने के लिये विवश करती हैं ।
10- कार्तिकशुक्ल प्रतिपदा को बलि पूजन किया जाता है । राजा बलि के लिये चन्दन , धूप , दीप , नैवेद्य आदि से पूजन करके प्रार्थना करनी चाहिए। जिसका मन्त्र इस प्रकार है – बलिराज नमस्तुभ्यं विरोचनसुत प्रभो । भविष्येन्द्र सुराराते पूजनं प्रतिगृह्यताम् ।। बलि प्रतिपदा के दिन द्यूतक्रीड़ा भी होती है। वामन पुराण में इसे द्यूतप्रतिपदा भी कहा गया है । पुराणों के अनुसार इस दिन माता पार्वती ने द्यूतक्रीड़ा में शंकर जी को हराया था , जिससे शिवजी दुखी एवं मां प्रसन्न हुई थी । इसदिन राजा बलि के लिये दीपदान किया जाता है । गोवर्धन पूजा भी इसी दिन होती है ।
11- इसी गोवर्धन पूजा को अन्नकूट ( अन्न का पर्वत ) भी कहा गया है । प्रायः इस समय तक नवीन अन्न आ जाता है । वैदिक काल में इसे ही “नवसस्येष्टि” भी कहा जाता था ।
12-कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमद्वितीया या भ्रातृद्वितीया ( भैयादूइज ) भी कहते हैं । यमराज को यमुनाजी इसी दिन निमन्त्रित किया था । इसी से इसे यमद्वितीया कहते हैं । भाइयों को चाहिए वै इस दिन अपने घर भोजन न करके बहन के यहाँ भोजन करें । बहिनों को उन्हें उपहार देना चाहिए । ऐसा करने से सुखशान्ति एवं धन की वृद्धि होती है तथा सर्वदा के लिये यम का भय मिट जाता है |