पेशे के अनुसार चुनें अपना रुद्राक्ष

रुद्राक्ष जानें कौन सा है आपके लिए

1) न्यायाधीश, न्यायमूर्ति – 2 मुखी और 14 मुखी रुद्राक्ष

2) अधिवक्ता, बैरिस्टर– 4 मुखी और 13 मुखी रुद्राक्ष

3) प्रशासनिक अधिकारी
1 मुखी और 13 मुखी रुद्राक्ष 4

4) बैंकिंग सेवा – 11 मुखी और 4 मुखी रुद्राक्ष

5) चार्टर्ड एकाउंटेंट – 8 मुखी और 12 मुखी रुद्राक्ष

6) राजनेता, मंत्री, एमएलए, एम.पी
1 मुखी और 14 मुखी रुद्राक्ष

7) प्रबंधक (एम.बी.ए.) 1 मुखी और गौरीशंकर रुद्राक्ष

8) लेखाकार 4 मुखी और 12 मुखी रुद्राक्ष

9) गायक 9 मुखी और 13 मुखी रुद्राक्ष

10) पुलिस और सैन्य अधिकारी
4 मुखी और 9 मुखी रुद्राक्ष

11) डॉक्टर और वैद्य 9 मुखी और 11 मुखी रुद्राक्ष

12) डॉक्टर (चिकित्सक) 10 मुखी और 11 मुखी रुद्राक्ष

13) डॉक्टर (सर्जन) 4 मुखी और 14 मुखी

14) नर्स, केमिस्ट, कंपाउंडर 3 मुखी और 4 मुखी रुद्राक्ष

15) होटल मालिक 14 मुखी, 1 मुखी और 13 मुखी रुद्राक्ष

16) नौसेना के व्यक्ति 12 मुखी और 8 मुखी रुद्राक्ष

17) उद्योगपति
14 मुखी और 12 मुखी रुद्राक्ष

18) सिविल इंजीनियर
8 मुखी और 14 मुखी रुद्राक्ष

19) विद्युत अभियंता
7 मुखी और 11 मुखी रुद्राक्ष

20) कंप्यूटर सॉफ्टवेयर इंजीनियर- 14 मुखी एवं गौरी शंकर रुद्राक्ष

21) रेल, बस कार चालक
10 मुखी और 7 मुखी रुद्राक्ष

22) पायलट, वायु सेना अधिकारी
10 मुखी और 11 मुखी रुद्राक्ष

23) प्रोफेसर, शिक्षक
6 मुखी और 14 मुखी रुद्राक्ष

24) क्लर्क, टाइपिस्ट, स्टेनो
8 मुखी और 11 मुखी रुद्राक्ष

25) ठेकेदार
11 मुखी, 13 मुखी और 14 मुखी रुद्राक्ष

26) प्रॉपर्टी डीलर 1 मुखी, 10 मुखी और 14 मुखी रुद्राक्ष

27) दुकानदार
10 मुखी, 13 मुखी और 14 मुखी रुद्राक्ष

नोट: 5 मुखी रुद्राक्ष प्रत्येक के साथ आवश्यक है

आपकी जन्मकुंडली और भोजन संबंधी आदतें

क्या भोजन का जन्म कुंडली से भी संबंध है। हमारी जन्म लग्न और राशि भी हमारी भोजन सम्बन्धी आदतें बताती है। हमारी कुंडली से न सिर्फ समस्त जीवन का खाका खींचा जा सकता है बल्कि खानपान संबंधी आदतें भी कुंडली से बताई जा सकती हैं।

अपनी राशि के अनुसार करें भोजन


नोट- ज्योतिष एवं वास्तु के उपाय जन कल्याण हेतु दिए जाते हैं, यदि आपके मन में कोई संदेह है, या आप इन उपायों में विश्वास नहीं रखते हैं तो ये उपाय ना करें, परन्तु इनका उपहास एवं अनादर ना करें।

  • कुंडली के धन स्थान से भोजन का ज्ञान होता है। यदि इस स्थान का स्वामी शुभ ग्रह हो और शुभ स्थिति में हो तो व्यक्ति कम भोजन करने वाला होता है।
  • यदि धनेश पाप ग्रह हो, पाप ग्रहों से संबंध करता हो तो व्यक्ति अधिक खाने वाला (पेटू) होगा। यदि शुभ ग्रह पाप ग्रहों से दृष्ट हो या पाप ग्रह शुभ से (धनेश होकर) तो व्यक्ति औसत भोजन करेगा।
  • लग्न का बृहस्पति अतिभोजी बनाता है मगर यदि अग्नि तत्वीय ग्रह (मंगल, सूर्य बृहस्पति) निर्बल हों तो व्यक्ति की पाचन शक्ति गड़बड़ ही रहेगी।
  • धनेश शुभ ग्रह हो, उच्च या मूल त्रिकोण में हो या शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो व्यक्ति आराम से भोजन करता है।
  • धनेश मेष, कर्क, तुला या मकर राशि में हो या धन स्थान को शुभ ग्रह देखें तो व्यक्ति जल्दी खाने वाला होता है।
  • धन स्थान में पाप ग्रह हो, पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो व्यक्ति बहुत धीरे खाता है।

खाने में पसंद आने वाली चीजों की सूचना छठे भाव से मिलती है।

  • छठे स्थान में बुध या बृहस्पति हो तो नमकीन वस्तुएँ पसंद आती हैं।
  • बृहस्पति बलवान होकर राज्य या धन स्थान में हो तो मीठा खाने का शौकीन होता है।
  • शुक्र, मंगल छठे स्थान में हों तो खट्टी वस्तुएँ पसंद आती हैं।
  • शुक्र-बुध की युति हो या छठे स्थान पर गुरु-शुक्र की दृष्टि हो तो मीठी वस्तुएँ पसंद आती हैं।
  • छठे स्थान में सिंह राशि हो तो तामसी भोजन (मांस-अंडे) पसंद आता है। वृषभ राशि हो तो चावल अधिक खाते हैं।
  • बुध पाप ग्रहों से युक्त होने पर मीठी वस्तुएँ बिलकुल नहीं भातीं।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हर राशि के लिए उपयुक्त स्वास्थ्यवर्धक भोजन इस प्रकार है. जैसे:-

मेष लग्न —–

इस लग्न में जन्में जातक तेज जिंदगी जीते है. जिससे शारीरिक शक्ति का अधिक व्यय होता है. यह मस्तिष्क प्रधान राशि है और इसका सिर पर आधिपत्य होता है. इसलिए इन जातकों को मस्तिष्क और शरीर दोनों को शक्तिदायक वस्तुएँ अपने भोजन में सम्मिलित करनी चाहिए. जैसे विटामिन और खनिज तत्वों से भरपूर पालक, गाजर, ककड़ी, मूली, प्याज, गोभी, दूध, दही, पनीर, मछली और दूसरे प्रोटीनयुक्त भोजन. मांस बहुत कम खाना चाहिए और उत्तेजक पदार्थ बिलकुल नहीं लेने चाहिए.

वृष लग्न —–

इस लग्न में जन्मे जातकों का शरीर पुष्ट होता है और वे स्वाद ले कर भोजन करते है. विभिन्न स्वाद का भोजन करने से उनका गला खराब रहता है, इसलिए मोटापे से ह्रदय रोग का भय रहता है. इन्हें मिठाई, केक, पेस्ट्री, मक्खन और दूसरे अधिक चिकिनाई वाले भोजन कम लेने चाहिए. स्वस्थ रहने के लिए विटामिन और खनिज तत्वों से पूर्ण फल, सब्जियां, सलाद, निम्बू, इत्यादि मात्रा में लेने चाहिए.

मिथुन लग्न—-

यह राशि मानसिक और स्नायु प्रधान है. जातक के अधिक मानसिक परिश्रम करने से तथा पाचन क्रिया गड़बड़ होने पर वह बीमार होता है. इन जातकों को वे सब भोज्य पदार्थ, जो मस्तिष्क और स्नायु तंत्र के लिए शक्तिदायक हों, लेने चाहिए. विटामिन बी प्रधान भोजन को प्राथमिकता देनी चाहिए. दूध और फल लाभदायक होते है. मांस बहुत कम खाना चाहिए.

कर्क लग्न—–

इस लग्न के जातक खाने के शौकीन होते है, परन्तु उनकी पाचन क्रिया कमजोर होती है. इसलिए वे वस्तुएं नहीं खानी चाहिए जिनसे पेट में उतेजना बढे और गैस बने. मांस, पेस्ट्री, शराब हानिकारक होते है. दूध, दही, फल, सब्जी, सलाद, नींबू, मेवे और मछली अनुकूल होते है. इन जातकों को सोने से पहले और सुबह उठते ही पानी पीना चाहिए.

सिंह लग्न——

यह कार्यशील राशि है. जिससे जातक अधिक ऊर्जा खर्च करता है. ऐसा भोजन जो सुपाच्य हो, जिससे अधिक ऊर्जा मिले और रक्त में लाल कण बढ़ें, लाभदायक होते है. मोटापा बढाने वाली चरबीदार वस्तुएं ह्रदय के लिए हानिकारक होती है. शाकाहारी भोजन, फल और मेवे जिसमें विटामिन और खनिज प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो, लाभदायक होते है.

कन्या लग्न—–

इस राशि में जन्मे जातकों की पाचन प्रणाली कमजोर होने के कारण इनकों अपने भोजन पर विशेष ध्यान देना चाहिए. दूध, फल, सुपच आहार और रोचक पदार्थ लाभदायक होते है. इन्हें एक बार में थोड़ा और भली प्रकार से पकाया भोजन लेना चाहिए. जिससे इनकी मल विसर्जन प्रणाली ठीक रहे.

तुला लग्न——-

इस लग्न वाले जातकों को अच्छे खाने का शौक होता है, पर उनकी मल विसर्जन प्रणाली कमजोर होती है. इन्हें फल और दूध प्रधान भोजन लेना चाहिए. सब्जियों में गाजर, चुकंदर, मटर और फलों में सेवा और अंजीर उतम होते है. अधिक मिठाई और चिकनाई वाले पदार्थ से परहेज करना चाहिए. शराब भी कम ही लेनी चाहिए. जिससे गुर्दों पर बुरा असर न पड़े

आइए जाने सिंदूर का क्या है – महत्व

सिंदूर

यदि पत्नी के माँग के बीचो बीच सिन्दूर लगा हुआ है तो उसके पति की अकाल मृत्यू नही हो सकती है।
जो स्त्री अपने माँग के सिन्दूर को बालो से छिपा लेती है उसका पति समाज मे छिप जाता है

जो स्त्री बीच माँग मे सिन्दूर न लगाकर किनारे की तरफ सिन्दूर लगाती है उसका पति उससे किनारा कर लेता है।

यदि स्त्री के बीच माँग मे सिन्दूर भरा है तो उसके पति की आयु लम्बी होती है।

रामायण मे एक प्रसंग आता है जब बालि और सुग्रीव के बीच युध्द हो रहा था तब श्रीराम ने बालि को नही मारा।

जब बालि के हाथो मार खाकर सुग्रीव श्रीराम के पास पहुचा तो श्रीराम ने कहा की तुम्हारी और बालि की शक्ल एक सी है इसिलिये मै भ्रमित हो गया
अब आप ही बताइये श्री राम के नजरो से भला कोई छुप सकता है क्या?

असली बात तो यह थी जब श्रीराम ने यह देख लिया की बालि की पत्नी तारा का माँग सिन्दूर से भरा हुआ है तो उन्होने सिन्दूर का सम्मान करते हुये बालि को नही मारा ।

दूसरी बार जब सुग्रीव ने बालि को ललकारा तब तारा स्नान कर रही थी उसी समय भगवान ने देखा की मौका अच्छा है और बाण छोड दिया अब आप ही बताइये की जब माँग मे सिन्दूर भरा हो तो परमात्मा भी उसको नही मारते फिर उनके सिवाय कोई और क्या मारेगा।

यह पोस्ट मै इसीलिये कर रहा हूँ की आजकल फैसन चल रहा है सिन्दूर न लगाने की या हल्का लगाने की या बीच माँग में न लगाकर किनारे लगाने की ।

माँ दुर्गा के 51 शक्तिपीठों का संक्षिप्त विवरण

हिंदू धर्म में पुराणों का विशेष महत्‍व है। इन्‍हीं पुराणों में माता के शक्‍तिपीठों का भी वर्णन है। पुराणों की ही मानें तो जहां जहां देवी सती के अंग के टुकड़े वस्‍त्र और आभूषण गिरे वहां वहां मां के शक्‍तिपीठ बन गए। ये शक्तिपीठ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हैं। देवी भागवत में 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का जिक्र है। वहीं देवी पुराण में 51 शक्तिपीठ बताए गए हैं।

आइए जानें कहांकहां हैं ये शक्तिपीठ

  1. किरीट शक्तिपीठ
    पश्चिम बंगाल के हुगली नदी के तट लालबाग कोट पर स्थित है किरीट शक्तिपीठ, जहां सती माता का किरीट यानी शिराभूषण या मुकुट गिरा था। यहां की शक्ति विमला अथवा भुवनेश्वरी तथा भैरव संवर्त हैं। इस स्थान पर सती के ‘किरीट (शिरोभूषण या मुकुट)’ का निपात हुआ था। कुछ विद्वान मुकुट का निपात कानपुर के मुक्तेश्वरी मंदिर में मानते हैं।
  2. कात्यायनी पीठ
    वृन्दावन मथुरा में स्थित है कात्यायनी वृन्दावन शक्तिपीठ जहां सती का केशपाश गिरा था। यहां की शक्ति देवी कात्यायनी हैं। यहाँ माता सती ‘उमा’ तथा भगवन शंकर ‘भूतेश’ के नाम से जाने जाते है।
  3. करवीर शक्तिपीठ
    महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित ‘महालक्ष्मी’ अथवा ‘अम्बाईका मंदिर’ ही यह शक्तिपीठ है। यहां माता का त्रिनेत्र गिरा था। यहां की शक्ति ‘महिषामर्दिनी’ तथा भैरव क्रोधशिश हैं। यहां महालक्ष्मी का निज निवास माना जाता है।
  4. श्री पर्वत शक्तिपीठ
    यहां की शक्ति श्री सुन्दरी एवं भैरव सुन्दरानन्द हैं। कुछ विद्वान इसे लद्दाख (कश्मीर) में मानते हैं, तो कुछ असम के सिलहट से 4 कि.मी. दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्यकोण) में जौनपुर में मानते हैं। यहाँ सती के ‘दक्षिण तल्प’ (कनपटी) का निपात हुआ था।
  5. विशालाक्षी शक्तिपीठ
    उत्तर प्रदेश, वाराणसी के मीरघाट पर स्थित है शक्तिपीठ जहां माता सती के दाहिने कान के मणि गिरे थे। यहां की शक्ति विशालाक्षी तथा भैरव काल भैरव हैं। यहाँ माता सती का ‘कर्णमणि’ गिरी थी। यहाँ माता सती को ‘विशालाक्षी’ तथा भगवान शिव को ‘काल भैरव’ कहते है।
  6. गोदावरी तट शक्तिपीठ
    आंध्र प्रदेश के कब्बूर में गोदावरी तट पर स्थित है यह शक्तिपीठ, जहाँ माता का वामगण्ड यानी बायां कपोल गिरा था। यहां की शक्ति विश्वेश्वरी या रुक्मणी तथा भैरव दण्डपाणि हैं। गोदावरी तट शक्तिपीठ आन्ध्र प्रदेश देवालयों के लिए प्रख्यात है। वहाँ शिव, विष्णु, गणेश तथा कार्तिकेय (सुब्रह्मण्यम) आदि की उपासना होती है तथा अनेक पीठ यहाँ पर हैं। यहाँ पर सती के ‘वामगण्ड’ का निपात हुआ था।
  7. शुचींद्रम शक्तिपीठ
    तमिलनाडु में कन्याकुमारी के त्रिासागर संगम स्थल पर स्थित है यह शुचींद्रम शक्तिपीठ, जहाँ सती के ऊर्ध्वदंत (मतान्तर से पृष्ठ भागद्ध गिरे थे। यहां की शक्ति नारायणी तथा भैरव संहार या संकूर हैं। यहाँ माता सती के ‘ऊर्ध्वदंत’ गिरे थे। यहाँ माता सती को ‘नारायणी’ और भगवान शंकर को ‘संहार’ या ‘संकूर’ कहते है। तमिलनाडु में तीन महासागर के संगम-स्थल कन्याकुमारी से 13 किमी दूर ‘शुचीन्द्रम’ में स्याणु शिव का मंदिर है। उसी मंदिर में ये शक्तिपीठ है।
  8. पंच सागर शक्तिपीठ
    इस शक्तिपीठ का कोई निश्चित स्थान ज्ञात नहीं है लेकिन यहां माता के नीचे के दांत गिरे थे। यहां की शक्ति वाराही तथा भैरव महारुद्र हैं। पंच सागर शक्तिपीठ में सती के ‘अधोदन्त’ गिरे थे। यहाँ सती ‘वाराही’ तथा शिव ‘महारुद्र’ हैं।
  9. ज्वालामुखी शक्तिपीठ
    हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा में स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां सती का जिह्वा गिरी थी। यहां की शक्ति सिद्धिदा व भैरव उन्मत्त हैं। यह ज्वालामुखी रोड रेलवे स्टेशन से लगभग 21 किमी दूर बस मार्ग पर स्थित है। यहाँ माता सती ‘सिद्धिदा’ अम्बिका तथा भगवान शिव ‘उन्मत्त’ रूप में विराजित है। मंदिर में आग के रूप में हर समय ज्वाला धधकती रहती है।
  10. हरसिद्धि शक्तिपीठ
    (उज्जयिनी शक्तिपीठ) इस शक्तिपीठ की स्थिति को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं। कुछ उज्जैन के निकट शिप्रा नदी के तट पर स्थित भैरवपर्वत को, तो कुछ गुजरात के गिरनार पर्वत के सन्निकट भैरवपर्वत को वास्तविक शक्तिपीठ मानते हैं। अत: दोनों ही स्थानों पर शक्तिपीठ की मान्यता है। उज्जैन के इस स्थान पर सती की कोहनी का पतन हुआ था। अतः यहाँ कोहनी की पूजा होती है।
  11. अट्टहास शक्तिपीठ
    अट्टाहास शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के लाबपुर (लामपुर) रेलवे स्टेशन वर्धमान से लगभग 95 किलोमीटर आगे कटवा-अहमदपुर रेलवे लाइन पर है, जहाँ सती का ‘नीचे का ह

शिव पूजन और रुद्राभिषेक से मिलता है आश्चर्यजनक लाभ

रुद्राभिषेक से हमारे जीवन के महापाप भी जलकर भस्म हो जाते हैं और हममें शिवत्व का उदय होता है, तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भी प्राप्त होता है। भगवान सदाशिव के पूजन से समस्त मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं। एवं सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है।

शिव पूजन और रुद्राभिषेक से मिलता है आश्चर्यजनक लाभ


रुद्राभिषेक के विभिन्न पदार्थों से पूजन एवं पूजन से होने वाले लाभ इस प्रकार हैं—
१ :- जल से अभिषेक करने पर वर्षा होती है।
२ :- असाध्य रोगों को शांत करने के लिए कुशोदक से रुद्राभिषेक करें।
३ :- भवन-वाहन के लिए दही से रुद्राभिषेक करें।
४ :- लक्ष्मी प्राप्ति के लिए गन्ने के रस से रुद्राभिषेक करें।
५ :- धनवृद्धि के लिए शहद एवं घी से अभिषेक करें।
६ :- तीर्थ के जल से अभिषेक करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।
७ :- इत्र मिले जल से अभिषेक करने से बीमारी नष्ट होती है।
८ :- पुत्र प्राप्ति के लिए दुग्ध से और यदि संतान उत्पन्न होकर मृत पैदा हो तो गोदुग्ध से रुद्राभिषेक करें।
९ :- रुद्राभिषेक से योग्य तथा विद्वान संतान की प्राप्ति होती है।
१० :- ज्वर की शांति हेतु शीतल जल अथवा गंगाजल से रुद्राभिषेक करें।
११ :- सहस्रनाम मंत्रों का उच्चारण करते हुए घृत की धारा से रुद्राभिषेक करने पर वंश का विस्तार होता है।
१२ :- प्रमेह रोग की शांति भी दुग्धाभिषेक से हो जाती है।
१३ :- शकर मिले दूध से अभिषेक करने पर जड़बुद्धि वाला भी विद्वान हो जाता है।
१४ :- सरसों के तेल से अभिषेक करने पर शत्रु पराजित होता हैं।
१५ :- शहद के द्वारा अभिषेक करने पर यक्ष्मा (तपेदिक) दूर हो जाता है।
१६ :- पातकों को नष्ट करने की कामना होने पर भी शहद से रुद्राभिषेक करें।
१७ :- गोदुग्ध से तथा शुद्ध घी द्वारा अभिषेक करने से आरोग्यता प्राप्त होती है।

श्रावण मास एवं श्रावण सोमवार में करें भगवान शिव जी का राशि अनुसार पूजन होंगे अत्‍यंत प्रसन्‍न।।

श्रावण महीने एवं श्रावण मास के सोमवार में श‍िवजी की पूजा का व‍िशेष महत्‍व माना गया है, इस समय आप अपनी राश‍ि के अनुसार भोलेनाथ जी की पूजा करें तो श‍िवजी अत्‍यंत प्रसन्‍न होते हैं आचार्य धीरज द्विवेदी “याज्ञिक” जी ने बताया कि इस वर्ष श्रावण माह 25 जुलाई से प्रारंभ हो रहा हैं, इस सावन मास में राश‍ि अनुसार महाकाल जी की पूजा से मनोवांछित सभी कामनाओं की पूर्ति होती है, तो आइए जानते हैं क‍ि क‍िस राशि वालों को भोले शंकर की क‍िस तरह आराधना करनी चाहिए….


१:- मेष राशि :- मेष राश‍ि के जातकों को भगवान शिव जी का अभिषेक गाय के कच्चे दूध में शहद मिलाकर करना चाहिए। तथा चंदन और सफेद पुष्‍प चढ़ाने चाहिए। इसके बाद श्रद्धानुसार 11, 21, 51 और 108 बार ‘ऊं नमः शिवाय’ मंत्र का जप करना चाहिए।ऐसा करने से भोले बाबा समस्‍त मनोकामनाएं पूरी करते हैं।


२:- वृष राशि :- वृष राश‍ि के जातकों को श‍िव शंकर का दही से अभिषेक करना चाहिए। दही से अभिषेक करने से जातक को धन, पशु, भवन तथा वाहन की प्राप्ति होने का योग बनता है। इसके अलावा सफेद फूल तथा बेलपत्र चढ़ाने चाहिए।इससे जीवन की सभी समस्‍याओं का हल म‍िलने लगता है.!


३:- मिथुन राशि :- मिथुन राश‍ि के जातकों को भोलेनाथ का गन्ने के रस से अभिषेक करना चाहिए। मान्‍यता है सावन भर प्रत‍िद‍िन गन्‍ने के रस से अभिषेक करने से भोलेनाथ जल्‍दी ही सारी मनोकामनाएं पूरी कर देते हैं। इसके अलावा इस राशि के जातकों को श‍िवजी को धतूरा पुष्प,तथा बेलपत्र अर्पित करना चाहिए। शिव चालीसा का पाठ भी करना चाहिए.!


४:-कर्क राशि :- कर्क राशि के जातकों को भोलेनाथ का दूध में शक्कर मिलाकर अभिषेक करना चाहिए। इससे मन शांत होता है और शुभ कार्यों को करने की प्रेरणा म‍िलती है। इसके साथ ही मंदार के श्वेत फूल,धतूरा पुष्प और बेलपत्र भी शिवजी को अर्पित करना चाहिए। साथ ही रुद्राष्टक का पाठ करना भी शुभ होगा।


५:- सिंह राशि :- सिंह राशि के जातकों को भोलेनाथ का मधु अथवा गुड़ युक्त जल से अभिषेक करना चाहिए। भगवान शिव को कनेर का पुष्प तथा लाल रंग का चंदन अर्पित करना चाहिए। गुड़ और चावल से बनी खीर चढ़ा सकते हैं। यह अत्‍यंत शुभ होता है। सूर्योदय के समय श‍िवजी की पूजा करने से सभी इच्‍छाओं की पूर्ति जल्‍दी होती है। महामृत्युंजय मंत्र का जप करना चाहिए। इससे सेहत संबंधी सभी समस्‍याएं दूर हो जाती हैं।


६:- कन्या राशि :- कन्‍या राशि के जातकों को शंभूनाथ का गन्‍ने के रस से अभिषेक करना चाहिए। इसके अलावा शिवजी को दुर्वा,पान तथा बेलपत्र चढ़ाएं। ‘ऊं नमः शिवाय मंत्र’ का जप करें। शीघ्र ही मनोकामनाएं पूर्ण होगी। शिव चालीसा का पाठ करना भी बेहतर होगा।


७:- तुला राशि :- तुला राशि के जातकों को भगवान शिव का गाय के घी, इत्र या सुगंधित तेल या फिर मिश्री मिले दूध से अभिषेक करना चाहिए। सफेद फूल भी पूजा में शिवजी को चढ़ाने चाहिए। दही, शहद अथवा श्रीखंड का प्रसाद चढ़ाना चाहिए। भगवान शिव के सहस्त्रनाम का जाप करने से जीवन में सुख-समृद्धि तथा लक्ष्मी का आगमन होगा।


८:- वृश्चिक राशि :- वृश्चिक राशि के जातकों को पंचामृत अथवा शहद युक्त जल से भगवान शिव जी का अभिषेक करना चाहिए। लाल फूल, लाल चंदन भी शिवजी को चढ़ाने चाहिए। बेलपत्र अथवा बेल के पौधे की जड़ चढ़ाने से भी कार्यों में सफलता मिलती है। रूद्राष्टक का पाठ करना भी श्रेयस्कर रहेगा।


९:- धनु राशि :- धनु राशि के जातकों को भोलेनाथ का दूध में हल्दी अथवा पीला चंदन मिलाकर अभिषेक करना चाहिए। इसके अलावा पीले रंग के फूलों या फिर गेंदे के फूल चढ़ाने चाहिए। खीर का भोग लगाना भी शुभ रहेगा ॐ नमः शिवाय का जप और श‍िव चालीसा का पाठ करना चाहिए।


१०:-मकर राशि :- मकर राशि के जातकों को भोलेशंकर का फल के रस से अथवा गंगा जल से अभिषेक करना चाहिए। ऐसा करने से जातक को सभी कामों में सफलता मिलेगी। त्रयंबकेश्वर का ध्यान करते हुए भगवान शिव जी को बेलपत्र, धूतरा पुष्प, शमी के फूल, अष्टगंध अर्पित करने चाहिए। उड़द से बनी मिठाई का भोग लगाने से शनि की पीड़ा समाप्त होती है। नीले कमल का फूल भी भगवान को अवश्य चढ़ाएं।


११:- कुंभ राशि :- कुंभ राशि के जातकों को सावन महीने में शंकर भगवान को प्रत‍िद‍िन यक्ष कर्दम के रस से, सरसों के तेल अथवा तिल के तेल से भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए। इसके अलावा शिवाष्टाक का पाठ करना चाहिए। इससे जातकों के बिगड़े काम बनेंगे। साथ ही धन-समृद्धि में वृद्धि होगी। शमी के फूल पूजा में अर्पित करें। शिवजी की कृपा से यह शनि पीड़ा को कम करता है।


१२:- मीन राशि :- मीन राशि के जातकों को सावन भर भोलेनाथ का केसर मिश्रित जल से जलाभिषेक करना चाहिए। इसके अलावा शंकरजी की पूजा में पंचामृत, दही, दूध और पीले पुष्पों का प्रयोग करना चाहिए। साथ ही ‘ॐ नमः शिवाय का जप करना चाहिए। शिव चालीसा का पाठ करना भी शुभ रहेगा। इससे जीवन की सारी समस्या दूर हो जाती है।


आचार्य धीरज द्विवेदी “याज्ञिक”
(ज्योतिष शास्त्र, वास्तुशास्त्र, एवं वैदिक अनुष्ठानों के विशेषज्ञ)

फेफड़ों को नुकसान पहुंचाने वाली गैसें सोख लेता है ऐरेका पाम

1. मेडागास्कर मूल का यह खूबसूरत पौधा अंडमान , जमैका , प्यूटो रिको और हैती जैसे द्वीपों पर भी काफी पाया जाता है । इसका वैज्ञानिक नाम क्राइसिलेजोकार्पस ल्यूटसेंस और बोटेनिकल ( वानस्पतिक ) नाम डिप्सिस ल्यूटसेंस है ।

आइए जानें एरिका पाम के फायदे

2. इस पौधे का जीवनकाल लगभग 10 वर्ष का होता है । इसे अन्य नामों जैसे गोल्डन केन पाम , येलो पाम या बटरफ्लाई पाम के नाम से भी जाना जाता है । लंबी पंख रूपी पत्तियों के कारण इसे बटरफ्लाई पाम कहा जाता है ।

3. वानस्पतिक रूप से फूलदार पौधा होने के बावजूद इसमें फूल बहुत कम आते हैं , मुख्य रूप से यह सजावटी पौधे के रूप में ही जाना जाता है ।

खुद तैयार करें नए पौधे

1. एक पौधा लगाने के बाद खुद नया पौधा तैयार कर सकते हैं । इसके लिए दो से तीन साल पुराने पौधे को लें । उसमें पतियों की कम से कम आठ से दस डंडियां होनी चाहिए ।

2. गमले से बाहर निकालकर किसी बड़े चाकू या आरी की मदद से सावधानी से जड़ से पौधे को दो हिस्सों में काट दें । फिर जड़ों की थोड़ी छंटाई करके दोनों पौधों को अलग – अलग गमलों में लगा दें ।

3. इसकी जड़ें तेजी से बढ़ती हैं , इसलिए इस पौधे को ऐसे गमले में लगाएं जो इसकी जड़ से दो गुना हो । अच्छी ग्रोथ के लिए एक साल बाद री – पॉट करें और गमले में नई मिट्टी भरें ।

50 से अधिक हैं प्रजातियां ऐरेका पाम की दुनियाभर में 50 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं । इस पौधे को भारत , बांग्लादेश , ताइवान , मलेशिया और अन्य एशियाई देशों में उगाया जाता है ।

खासियत

1. एयरकंडीशनर चलने की वजह से कमरे की हवा में नमी की मात्रा कम हो जाती है । यह पौधा इस कमी को दूर करता है और हवा में नमी की मात्रा को बढ़ाता है ।

2. छह फीट लंबा पौधा 24 घंटे में एक लीटर पानी हवा में छोड़ता है। यह फेफड़ों को नुकसान पहुंचाने वाली गैसों जैसे कार्बन मोनोआक्साइड , फोर्मेल्डिहाइड , जाइलीन , टोलुईन , नाइट्रोजन डाइआक्साइड और ओजोन को सोख लेता है ।

3. सूक्ष्म कणों को खत्म कर हवा को शुद्ध बनाता है वनस्पति विज्ञानियों के अनुसार गर्भवती महिलाओं के कमरे में इसे लगाने से भ्रूण के विकास में सहायता मिलती है ।

देखभाल के टिप्स

एरिका पाम

पौधे को पानी तभी दें जब गमले की ऊपरी एक से दो इंच तक की मिट्टी सूख जाए । ज्यादा पानी देने से इस पौधे की जड़ें सड़ जाती हैं। आमतौर पर इसे 10 से 15 दिन पर पानी देना सही रहता है , लेकिन मिट्टी बीच – बीच में चेक करते रहें । नमकयुक्त या खारा पानी देने से बचें , इससे पौधा मर जाता है ।

इस पौधे पर सूर्य की सीधी किरणें न पड़ने दें , इससे पत्तियां जल जाती हैं । सुबह की एक – दो घंटे की सूर्य की रोशनी से दिक्कत नहीं होगी , लेकिन उसके बाद की धूप से पौधे को बचाएं।

वर्ष में एक बार ऊपर से दो इंच तक मिट्टी निकाल कर उसमें बराबर मात्रा में खाद मिलाकर दोबारा गमलों मे डाल सकते हैं । पौधे को खाद देने से पहले ध्यान रखें कि नमक की मात्रा अधिक होने पर पत्तियों में धब्बे पड़ सकते हैं । इसके अलावा गर्मियों के मौसम में आर्गेनिक तरल खाद ( लिक्विड फर्टीलाइजर ) भी जरूर डालें । सर्दी के मौसम में खाद न दें ।

जाने वो 6 पेड़ जिनसे बनती है सबसे ज्‍यादा ऑक्‍सीजन, जो रखते हैं पर्यावरण को शुद्ध

भारत में इस समय कोविड-19 का कहर जारी है, ऑक्‍सीजन की कमी कई मरीजों की मौत की वजह बन रही है, इन सबके बीच ही जर्मनी से मोबाइल ऑक्‍सीजन प्‍लांट्स को एयरलिफ्ट करने और फाइटर जेट की टेक्‍नोलॉजी की मदद से ऑक्‍सीजन बनाने की खबरें आ रही हैं, लेकिन इन दोनों ही विकल्‍पों में यह बात सबसे अहम है कि आपके वातावरण में कितनी ऑक्‍सीजन है आइए उन पेड़ों के बारे में जानते हैं जो सबसे ज्‍यादा ऑक्‍सीजन जनरेट करते हैं…….
पर्यावरण के लिए वरदान हैं ये 6 पेड़:- ये वो 6 पेड़ हैं जो आपको अक्‍सर कहीं न कहीं दिख जाएंगे, आपके बगीचे में अगर ये पेड़ नहीं हैं तो तुरंत इन्‍हें लगाएं, ये आपको भी स्‍वस्‍थ रखेंगे और आपके वातावरण को भी….


1:-पीपल का पेड़:- हिंदु धर्म में पीपल तो बौद्ध धर्म में इसे बोधी ट्री के नाम से जानते हैं, कहते हैं कि इसी पेड़ के नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्‍त हुआ था,पीपल का पेड़ 60 से 80 फीट तक लंबा हो सकता है,यह पेड़ सबसे ज्‍यादा ऑक्‍सीजन देता है, इसलिए पर्यावरणविद पीपल का पेड़ लगाने के लिए बार-बार कहते हैं।


2:-बरगद का पेड़:- इस पेड़ को भारत का राष्‍ट्रीय वृक्ष भी कहते हैं,इसे हिंदू धर्म में बहुत पवित्र भी माना जाता है,बरगद का पेड़ बहुत लंबा हो सकता है और यह पेड़ कितनी ऑक्‍सीजन उत्‍पादित करता है ये उसकी छाया कितनी है, इस पर निर्भर करता है।


3:-नीम का पेड़:- एक और पेड़ जिसके बहुत से फायदे हैं, नीम का पेड़,इस पेड़ को एक एवरग्रीन पेड़ कहा जाता है और पर्यावरणविदों की मानें तो यह एक नैचुरल एयर प्‍यूरीफायर है,ये पेड़ प्रदूषित गैसों जैसे कार्बन डाई ऑक्‍साइड,सल्‍फर और नाइट्रोजन को हवा से ग्रहण करके पर्यावरण में ऑक्‍सीजन को छोड़ता है,इसकी पत्तियों की संरचना ऐसी होती है कि ये बड़ी मात्रा में ऑक्‍सीजन उत्‍पादित कर सकता है ऐसे में हमेशा ज्‍यादा से ज्‍यादा नीम के पेड़ लगाने की सलाह दी जाती है,इससे आसपास की हवा हमेशा शुद्ध रहती है।


4:-अशोक का पेड़:- अशोक का पेड़ न सिर्फ ऑक्‍सीजन उत्‍पादित करता है बल्कि इसके फूल पर्यावरण को सुंगधित रखते हैं और उसकी खूबसूरती को बढ़ाते हैं, यह एक छोटा सा पेड़ होता है जिसकी जड़ एकदम सीधी होती है, पर्यावरणविदों की मानें तो अशोक के पेड़ को लगाने से न केवल वातावरण शुद्ध रहता है बल्कि उसकी शोभा भी बढ़ती है, घर में अशोक का पेड़ हर बीमारी को दूर रखता है,ये पेड़ जहरीली गैसों के अलावा हवा के दूसरे दूषित कणों को भी सोख लेता है।


5:-अर्जुन का पेड़:- अर्जुन के पेड़ के बारे में कहते हैं कि यह हमेशा हरा-भरा रहता है,इसके बहुत से आर्युवेदिक फायदे हैं, इस पेड़ का धार्मिक महत्‍व भी बहुत है और कहते हैं कि ये माता सीता का पसंदीदा पेड़ था,हवा से कार्बन डाई ऑक्‍साइड और दूषित गैसों को सोख कर ये उन्‍हें ऑक्‍सीजन में बदल देता है।


6:-जामुन का पेड़:- भारतीय अध्‍यात्मिक कथाओं में भारत को जंबूद्वीप यानी जामुन की धरती के तौर पर भी कहा गया है,जामुन का पेड़ 50 से 100 फीट तक लंबा हो सकता है,इसके फल के अलावा यह पेड़ सल्‍फर ऑक्‍साइड और नाइट्रोजन जैसी जहरीली गैसों को हवा से सोख लेता है,इसके अलावा कई दूषित कणों को भी जामुन का पेड़ ग्रहण करता है।

नवरात्रि में माँ दुर्गा पूजन हेतु घट स्थापन अथवा पूजन कैसे करें ? विस्तार से हिंदी में


स्नानादि से निवृत्त होकर ऊंनी आसान पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठकर सर्वप्रथम गंगाजल ऊपर छिड़क कर तीन बार भगवान का नाम स्मरण करते हुए आचमन करें पुनः चंदन अक्षत पुष्प से पृथ्वी मैया का पूजन करें इसके बाद दीपक प्रज्वलित करें दीपक अपने बाय एवं देवताओं के दाहिने रहेगा दीपक का भी दीप देवतायै नमः इस मंत्र से चंदन पुष्प अक्षत से पूजन करें। फिर हाथ में अक्षत पुष्प लेकर अपने गुरुदेव भगवान माता पिता और अपने इष्ट देवता का स्मरण करें। फिर हाथ में जल अक्षत दूर्वा पुष्प फल और दक्षिणा रखकर संकल्प करें। संकल्प करते समय तीन बार भगवान विष्णु का नाम लें और बोलें आज इस पुण्य समय में भारतवर्ष के उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जनपद के (अपने गांव या मोहल्ले का नाम ले) ग्राम में आनंद नामक संवत्सर चैत्र मास शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि दिन मंगलवार को भगवती महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती के प्रसन्नता और कृपा प्राप्ति के लिए समस्त परिवार के कल्याण हेतु तथा दुर्गा देवी के प्रीति हेतु घट स्थापन तथा भगवान गणेश गौरी जी और कलश में भगवान वरुण गंगाद नदियां सप्तसागर और चारों वेद ब्रह्म विष्णु महेश का आवाहन तथा नवग्रह देवताओं का आवाहन तत्पश्चात भगवती का आवाहन कर यथा उपलब्ध सामग्री के द्वारा पूजन करूंगा। ऐसा बोलकर हाथ का अक्षत पुष्प सामने छोड़ दें। फिर गणेश जी गौरी जी के मूर्ति में अथवा सुपारी में रक्षा लपेटकर गणेश जी और गाय के गोबर का गौरी बनाकर ओम गं गणपतये नमः। ओम गौर्यै नमः आवाहयामि ऐसा बोलकर थोड़ा थोड़ा अक्षत गणेश गौरी जी के ऊपर छोड़ दें। गंगा जी के मिट्टी में जव बोकर उसके ऊपर कलश रखें कलश के गले में रक्षा बाधें कलश में सुपारी पैसा गंगा जी की मिट्टी दुर्गा अक्षत हल्दी गांठ सतावर और गंगाजल डालकर आम की टेरी डालकर प्याला या कटोरी में चावल भरकर कलश के मुख पर रखें और उस प्याले के ऊपर जलभरा नारियल में कपड़ा बांधकर रखें फिर हाथ में अक्षत लेकर ओम वं वरुणाय नमः, ओम गंगादि नदिभ्यो नमः, सप्तसागरेभ्यो नमः, सर्वान्तीर्थ्यो नमः, ब्रह्मणे नमः ,विष्णवे नमः, रुद्राय नमः, ऋग्वेदाय नमः यजुर्वेदाय नमः सामवेदाय नमः अथर्ववेदाय नमः,मातृभ्यो नमः आवाहयामि ऐसा बोलकर कलश के ऊपर डाल दें। कलश के बांयी तरफ किसी चौकी आदि में 16 जगह चावल का पुंज और दूसरे चौकी पर सात जगह चावल का पुंज रखें चौकी ना हो तो किसी प्याला या दियली में चावल भरकर सुपारी में रक्षा लपेटकर रखकर 16 पुंज वाले में ओम सगणेश षोडसमातृभ्यो नमः आवाहयामि ऐसा बोलकर चावल छोड़कर आवाहन करें। 7 पुंज वाले पर ओम सप्तघृत मातृभ्यो नमः आवाहयामि ऐसा बोलकर चावल छोड़कर आवाहन करें। फिर कलश के दाहिने तरफ किसी चौकी पर 9 जगह चावल रखें अथवा किसी प्याला या दियली में रक्षा लपेटकर सुपारी रखें और बाएं हाथ में चावल लेकर दाहिने हाथ से ओम सूर्याय नमः आवाहयामि, ॐ सोमाय नमः आवाहयामि, ओम मंगलाय नमः आवाहयामि, ओम बुद्धाय नमः आवाहयामि, ॐ बृहस्पतये नमः आवाहयामि, ॐ शुक्राय नमः आवाहयामि, ओम शनैश्चराय नमः आवाहयामि, ॐ राहवे नमः आवाहयामि, ओम केतवे नमः आवाहयामि ऐसा बोलते अक्षत छोड़ते जाएं। फिर देवी जी के मूर्ति आप फोटो के आगे हनुमान जी महाराज का आवाहन ओम हनुमते नमः आवाहयायि, देवी जी के मूर्ति या फोटो के पीछे ओम भैरवाय नमः आवाहयामि ऐसा बोलकर अक्षत छोड़ें। ओम नमः शिवाय बोलकर शंकर जी का ध्यान करें। ओम श्री विष्णवे नमः बोलकर भगवान नारायण का ध्यान करें और फिर हाथ में अक्षत पुष्प लेकर ओम श्री महाकाल्यै नमः, श्री महालक्ष्म्यै नमः, श्री महा सरस्वत्यै नमः आवाहयामि ऐसा बोलकर अथवा श्री दुर्गा देव्यै नमः आवाहयामि ऐसा बोलकर अक्षत पुष्प भगवती के ऊपर छोड़कर पूजन करें। भगवान गणेश जी और गौरी जी से शुरू कर सबको गंगाजल से स्नान वस्त्र के लिए रक्षा सूत्र जनेऊ फिर चंदन अक्षत पुष्प गणेश जी को दूब सभी देवताओं को बेलपत्र शमी पत्र नारायण जी को तुलसी पत्र चढ़ाएं अबीर रोली सिंदूर चढ़ाएं इत्र लगाएं धूप दिखाएं दीपक दिखाएं मिठाई फल पान सुपारी इलाइची लोंग चढ़ाकर भोग लगाएं आचमन करायें और दक्षिणा चढ़ाएं फिर हाथ में अक्षत पुष्प लेकर के गणेश गौरी सहित सभी देवताओं से नमस्कार प्रणाम प्रार्थना करें और भगवती से भी प्रार्थना करें कि आप मेरा पूजन स्वीकार करिए इसके बाद पाठ आदि करके आरती करें।
आपका मंगल हो भगवती की कृपा सपरिवार आप पर बनी रहे इसी मंगल कामना के साथ जय माता की।

शमी (खेजड़ी) वृक्ष का महत्त्व एवं पूजन विधि


शमी वृक्ष की पूजा करने के नियम
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स्नानोपरांत साफ कपड़े धारण करें। फिर प्रदोषकाल में शमी के पेड़ के पास जाकर सच्चे मन से प्रमाण कर उसकी जड़ को गंगा जल, नर्मदा का जल या शुद्ध जल चढ़ाएं। उसके बाद तेल या घी का दीपक जलाकर उसके नीचे अपने शस्त्र रख दें।
फिर पेड़ के साथ शस्त्रों को धूप, दीप, मिठाई चढ़ाकर आरती कर पंचोपचार अथवा षोडषोपचार पूजन करें। साथ ही हाथ जोड़ कर सच्चे मन से यह प्रार्थना करें।

‘शमी शम्यते पापम् शमी शत्रुविनाशिनी।
अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शिनी।।
करिष्यमाणयात्राया यथाकालम् सुखम् मया।
तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वं भव श्रीरामपूजिता।।’

इसका अर्थ है- हे शमी वृक्ष आप पापों को नाश और दुश्मनों को हराने वाले है। आपने ही शक्तिशाली अर्जुन का धनुश धारण किया था। साथ ही आप प्रभु श्रीराम के अतिप्रिय है। ऐसे में आज हम भी आपकी पूजा कर रहे हैं। हम पर कृपा कर हमें सच्च व जीत के रास्ते पर चलने की प्रेरणा दें। साथ ही हमारी जीत के रास्ते पर आने वाली सभी बांधाओं को दूर कर हमें जीत दिलाए।

यह प्रार्थना करने के बाद अगर आपको पेड़ के पास कुछ पत्तियां गिरी मिलें तो उसे प्रसाद के तौर पर ग्रहण करें। साथ ही बाकी की पत्तियों को लाल रंग के कपड़े में बांधकर हमेशा के लिए अपने पास रखें। इससे आपके जीवन की परेशानियां दूर होने के साथ दुश्मनों से छुटकारा मिलेगा। इस बात का खास ध्यान रखें कि आपकी पेड़ से अपने आप गिरी पत्तियां उठानी है। खुद पेड़ से पत्तों को तोड़ने की गलती न करें।

शमी वृक्ष के गुण एवं महत्त्व
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शमी को गणेश जी का प्रिय वृक्ष माना जाता है और इसकी पत्तियाँ गणेश जी की पूजा में भी चढ़ाई जाती हैं। जिसमें शिव का वास भी माना गया है, जो श्री गणेश के पिता हैं और मानसिक क्लेशों से मुक्ति देने वाले देव हैं। यही कारण है कि शमी पत्र का चढ़ावा श्री गणेश की प्रसन्नता से बुद्धि को पवित्र कर मानसिक बल देने वाला माना गया है। अगर आप भी मन और परिवार को शांत और सुखी रखना चाहते हैं तो नीचे बताए विशेष मंत्र से श्री गणेश को शमी पत्र अर्पित करें –

त्वत्प्रियाणि सुपुष्पाणि कोमलानि शुभानि वै।
शमी दलानि हेरम्ब गृहाण गणनायक।।

शमी भगवान श्री राम का प्रिय वृक्ष था और लंका पर आक्रमण से पहले उन्होंने शमी वृक्ष की पूजा कर के उससे विजयी होने का आशीर्वाद प्राप्त किया था। आज भी कई स्थानों पर ‘रावण दहन’ के बाद घर लौटते समय शमी के पत्ते स्वर्ण के प्रतीक के रूप में एक दूसरे को बाँटने की प्रथा हैं, इसके साथ ही कार्यों में सफलता मिलने कि कामना की जाती है।

शमी शमयते पापं शमी शत्रु विनाशिनी।
अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शिनी।।
करिष्यमाणयात्राया यथाकालं सुखं मया।
तत्र निर्विघ्न कर्तृत्वं भवश्रीरामपूजिता।।

शमी पापों का नाश करने वाले और दुश्मनों को पराजित करने वाले है.अर्जुन का धनुष धारण करने वाले ; श्रीराम को प्रिय है.जिस तरह श्रीराम ने आपकी पूजा करी , हम भी करते है. अच्छाई की जीत में आने वाली सभी बाधाओं को दूर कर उसे सुखमय बना देते है।

यह वृक्ष जेठ के महीने में भी हरा रहता है। ऐसी गर्मी में जब रेगिस्तान में जानवरों के लिए धूप से बचने का कोई सहारा नहीं होता तब यह पेड़ छाया देता है। जब खाने को कुछ नहीं होता है तब यह चारा देता है, जो लूंग कहलाता है।

इसका फूल मींझर कहलाता है। इसका फल सांगरी कहलाता है, जिसकी सब्जी बनाई जाती है। यह फल सूखने पर खोखा कहलाता है जो सूखा मेवा है।

इसकी लकडी मजबूत होती है जो किसान के लिए जलाने और फर्नीचर बनाने के काम आती है। इसकी जड़ से हल बनता है।

वराहमिहिर के अनुसार जिस साल शमीवृक्ष ज्यादा फूलता-फलता है उस साल सूखे की स्थिति का निर्माण होता है। विजयादशमी के दिन इसकी पूजा करने का एक तात्पर्य यह भी है कि यह वृक्ष आने वाली कृषि विपत्ती का पहले से संकेत दे देता है जिससे किसान पहले से भी ज्यादा पुरुषार्थ करके आनेवाली विपत्ती से निजात पा सकता है।

अकाल के समय रेगिस्तान के आदमी और जानवरों का यही एक मात्र सहारा है। सन १८९९ में दुर्भिक्ष अकाल पड़ा था जिसको छपनिया अकाल कहते हैं, उस समय रेगिस्तान के लोग इस पेड़ के तनों के छिलके खाकर जिन्दा रहे थे।

इस पेड़ के नीचे अनाज की पैदावार ज्यादा होती है।

पांडवों द्वारा अज्ञातवास के अंतिम वर्ष में गांडीव धनुष इसी पेड़ में छुपाए जाने के उल्लेख मिलते हैं।

शमी या खेजड़ी के वृक्ष की लकड़ी यज्ञ की समिधा के लिए पवित्र मानी जाती है। वसन्त ऋतु में समिधा के लिए शमी की लकड़ी का प्रावधान किया गया है। इसी प्रकार वारों में शनिवार को शमी की समिधा का विशेष महत्त्व है।

शमी शनि ग्रह का पेड़ है. राजस्थान में सबसे अधिक होता है . छोटे तथा मोटे काँटों वाला भारी पेड़ होता है.

कृष्ण जन्मअष्टमी को इसकी पूजा की जाती है . बिस्नोई समाज ने इस पेड़ के काटे जाने पर कई लोगों ने अपनी जान दे दी थी।

कहा जाता है कि इसके लकड़ी के भीतर विशेष आग होती है जो रगड़ने पर निकलती है. इसे शिंबा; सफेद कीकर भी कहते हैं।

घर के ईशान में आंवला वृक्ष, उत्तर में शमी (खेजड़ी), वायव्य में बेल (बिल्व वृक्ष) तथा दक्षिण में गूलर वृक्ष लगाने को शुभ माना गया है।

कवि कालिदास ने शमी के वृक्ष के नीचे बैठ कर तपस्या कर के ही ज्ञान की प्राप्ति की थी।

ऋग्वेद के अनुसार आदिम काल में सबसे पहली बार पुरुओं ने शमी और पीपल की टहनियों को रगड़ कर ही आग पैदा की थी।

कवियों और लेखकों के लिये शमी बड़ा महत्व रखता है। भगवान चित्रगुप्त को शब्दों और लेखनी का देवता माना जाता है और शब्द-साधक यम-द्वितीया को यथा-संभव शमी के पेड़ के नीचे उसकी पत्तियों से उनकी पूजा करते हैं।

नवरात्र में मां दुर्गा की पूजा भी शमी वृक्ष के पत्तों से करने का शास्त्र में विधान है। इस दिन शाम को वृक्ष का पूजन करने से आरोग्य व धन की प्राप्ति होती है।कहते है एक आक के फूल को शिवजी पर चढ़ाना से सोने के दान के बराबर फल देता है , हज़ार आक के फूलों कि अपेक्षा एक कनेर का फूल, हज़ार कनेर के फूलों के चढाने कि अपेक्षा एक बिल्व-पत्र से मिल जाता है। हजार बिल्वपत्रों के बराबर एक द्रोण या गूमा फूल फलदायी। हजार गूमा के बराबर एक चिचिड़ा, हजार चिचिड़ा के बराबर एक कुश का फूल, हजार कुश फूलों के बराबर एक शमी का पत्ता, हजार शमी के पत्तो के बराबर एक नीलकमल, हजार नीलकमल से ज्यादा एक धतूरा और हजार धतूरों से भी ज्यादा एक शमी का फूल शुभ और पुण्य देने वाला होता है। इसलिए भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए एक शमी का पुष्प चढ़ाएं क्योंकि यह फूल शुभ और पुण्य देने वाला होता है।

इसमें औषधीय गुण भी है. यह कफनाशक ,मासिक धर्म की समस्याओं को दूर करने वाला और प्रसव पीड़ा का निवारण करने वाला पौधा है. शन्नोदेवीरभीष्टय आपो भवन्तु पीतये
शन्नोदेवीरभीष्टय

शमी पोधे की पूजा करने से आपको क्या क्या लाभ मिलता है।
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शमी शनिदेव को प्रिय है इसलिए शमी की पूजा सेवा करने से शनि की कृपा प्राप्त होती है और समस्त संकटों का नाश होता है।

आइये जानते हैं शमी के पौधे के क्या-क्या उपाय किए जा सकते हैं:
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यदि परिवार में धन का अभाव बना हुआ है। खूब मेहनत करने के बाद भी धन की कमी है और खर्च अधिक है तो किसी शुभ दिन शमी का पौधा खरीदकर घर ले आएं। शनिवार के दिन प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर नए गमले में शुद्ध मिट्टी भरकर शमी का पौधा लगा दें। इसके बाद शमी पौधे की जड़ में एक पूजा की सुपारी. अक्षत पौधे पर गंगाजल अर्पित करें और पूजन करें। पौधे में रोज पानी डालें और शाम के समय उसके समीप एक दीपक लगाएं। आप स्वयं देखेंगे धीरे-धीरे आपके खर्च में कमी आने लगेगी और धन संचय होने लगेगा।

शनिवार को शाम के समय शमी के पौधे के गमले में पत्थर या किसी भी धातु का एक छोटा सा शिवलिंग स्थापित करें। शिवलिंग पर दूध अर्पित करें और विधि-विधान से पूजन करने के बाद महामृत्युंजय मंत्र की एक माला जाप करें। इससे स्वयं या परिवार में किसी को भी कोई रोग होगा तो वह ल्दी ही दूर हो जाएगा।

कई सारे युवक-युवतियों के विवाह में बाधा आती है। विवाह में बाधा आने का एक कारण जन्मकुंडली में शनि का दूषित होना भी है। किसी भी शनिवार से प्रारंभ करते हुए लगातार 45 दिनों तक शाम के समय शमी के पौधे में घी का दीपक लगाएं और सिंदूर से पूजन करें। इस दौरान अपने शीघ्र विवाह की कामना व्यक्त करें। इससे शनि दोष समाप्त होगा और विवाह में आ रही बाधाएं समाप्त होंगी।

जन्मकुंडली में यदि शनि से संबंधित कोई भी दोष है तो शमी के पौधे को घर में लगाना और प्रतिदिन उसकी सेवा-पूजा करने से शनि की पीड़ा समाप्त होती है।

जिन लोगों को शनि की साढ़े साती या ढैया चल रहा हो उन्हें नियमित रूप से शमी के पौधे की देखभाल करना चाहिए। उसमें रोज पानी डालें, उसके समीप शाम के समय दीपक लगाएं। शनिवार को पौधे में थोड़े से काले तिल और काले उड़द अर्पित करें। इससे शनि की साढ़ेसाती का दुष्प्रभाव कम होता।

यदि आप बार-बार दुर्घटनाग्रस्त हो रहे हों तो शमी के पौधे के नियमित दर्शन से दुर्घटनाएं रुकती हैं।